यूपी चुनाव में मिली हार के बाद मायावती ने टीवी बहस में प्रवक्ताओं के शामिल होने पर रोक लगाई

उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर हाल ही में हुए चुनाव में बसपा का केवल एक उम्मीदवार विजयी हुआ है. यह सीट बलिया ज़िले की रसड़ा विधानसभा है. यहां से बसपा के मौजूदा विधायक और विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे हैं.

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बसपा सुप्रीमो मायावती. (फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर हाल ही में हुए चुनाव में बसपा का केवल एक उम्मीदवार विजयी हुआ है. यह सीट बलिया ज़िले की रसड़ा विधानसभा है. यहां से बसपा के मौजूदा विधायक और विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे हैं.

बसपा सुप्रीमो मायावती. (फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी हार के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने अपने सभी प्रवक्ताओं के टीवी बहस आदि कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी है.

बसपा प्रमुख ने शनिवार को एक ट्वीट में आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान मीडिया द्वारा ‘जातिवादी द्वेषपूर्ण व घृणित रवैया अपनाकर अम्बेडकरवादी बसपा आंदोलन को नुकसान पहुंचाने का काम किया गया.’ उन्होंने कहा कि इस हालत में पार्टी प्रवक्ताओं को भी नई जिम्मेदारी दी जाएगी.

उन्होंने कहा कि इसलिए पार्टी के सभी प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया, धर्मवीर चौधरी, डॉ. एमएच खान, फैजान खान व सीमा कुशवाहा अब टीवी बहसों आदि कार्यक्रमों में शामिल नहीं होंगे.

गौरतलब हैं कि 403 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में बसपा का केवल एक उम्मीदवार विजयी हुआ है. यह जीती हुई सीट बलिया जिले की रसड़ा विधानसभा है. यहां से बसपा के मौजूदा विधायक और विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे हैं.


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सीटों के लिहाज से यह उत्तर प्रदेश में बसपा के राजनीतिक इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन है. यूपी की राजनीति में 1989 में कदम रखने वाली बसपा को इससे पहले किसी भी चुनाव में सबसे कम सीट 1991 के विधानसभा चुनावों में मिली थीं. तब उसने 386 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और महज 12 सीटों पर ही उसे जीत मिली थी. वह पार्टी का दूसरा चुनाव था.

अगर मत प्रतिशत के लिहाज से भी देखें तो बसपा को वर्तमान विधानसभा चुनाव में 12.88 फीसदी मत प्राप्त हुए हैं. 1993 के बाद पहली बार बसपा को यूपी विधानसभा चुनावों में इतने कम मतों से संतोष करना पड़ा है.

1993 के बाद उसे कभी भी विधानसभा या लोकसभा चुनावों में 19 प्रतिशत से कम वोट नहीं मिला था. 1993 के चुनावों में उसे वर्तमान चुनावों से कम 11.1 फीसदी मत प्राप्त हुए थे, लेकिन फिर भी वह 67 सीट जीतने में कामयाब रही थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)