कोविड-19: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मुआवज़े का दावा करने के लिए चार हफ़्ते का समय पर्याप्त नहीं

केंद्र सरकार ने कोविड-19 के कारण हुई मौत पर मृतक के परिजनों द्वारा मुआवज़े का दावा करने के लिए चार हफ़्ते की समयसीमा तय करने का अनुरोध किया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह समयसीमा उचित नहीं है, क्योंकि अगर कोई मौत होती है तो परिवार को उस दुख से उबरने में वक़्त लगेगा, तब वह दावा जताएगा.

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(फोटो: रॉयटर्स)

केंद्र सरकार ने कोविड-19 के कारण हुई मौत पर मृतक के परिजनों द्वारा मुआवज़े का दावा करने के लिए चार हफ़्ते की समयसीमा तय करने का अनुरोध किया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह समयसीमा उचित नहीं है, क्योंकि अगर कोई मौत होती है तो परिवार को उस दुख से उबरने में वक़्त लगेगा, तब वह दावा जताएगा.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 के कारण हुई मौत के मामले में प्राधिकारियों से अनुग्रह राशि (मुआवजे) के भुगतान का दावा करने के लिए केंद्र द्वारा चार हफ्तों की समयसीमा देना संभवत: पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इस दौरान मृतक के परिवार अपने परिजन को खोने के कारण व्यथित होंगे.

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने संकेत दिया कि ऐसे सभी लोगों को 60 दिन का समय दिया जाएगा, जो निर्धारित तिथि पर मुआवजे के लिए आवेदन देने के पात्र हैं और भविष्य के दावाकर्ताओं को 60 दिनों का वक्त दिया जाएगा.

पीठ ने कहा, ‘यह (चार हफ्ते) शायद उचित समयसीमा नहीं है क्योंकि संबंधित परिवार शोकाकुल होंगे और चार हफ्ते का समय शायद सही वक्त नहीं है. अगर कोई मौत होती है तो परिवार को उस दुख से उबरने में वक्त लगेगा और फिर वह दावा जताएगा.’

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को कोविड-19 से मौत के लिए मुआवजे के फर्जी दावों का पता लगाना चाहिए, क्योंकि उसे आपदा प्रबंधन कानून, 2005 के तहत शक्तियां दी गई हैं.

फर्जी दावों के सत्यापन के लिए सर्वेक्षण के नमूने देने का अनुरोध करने वाली केंद्र की अर्जी के संबंध में पीठ ने कहा कि यह दो-तीन राज्यों पर केंद्रित हो सकता है, जहां मौत के पंजीकरण और दावों में भिन्नता है.

सुनवाई की शुरुआत में केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोरोना वायरस के कारण हुई मौत पर प्राधिकारियों से मुआवजा मांगने का दावा करने के लिए चार हफ्ते की समयसीमा तय करने का सुझाव दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया और वह 23 मार्च को आदेश देगा.

इससे पहले केंद्र ने एक अर्जी दायर कर कोविड-19 के कारण हुई मौत पर प्राधिकारियों से मुआवजे का भुगतान करने का दावा करने के लिए चार हफ्ते की समयसीमा तय करने का अनुरोध किया था.

मेहता ने कहा कि कोई समयमीसा तय किए बिना (दावा करने की) मुआवजा भुगतान की प्रक्रिया जारी रखना सही नहीं है और शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि वह एक समय सीमा निर्धारित करे, जिसके भीतर मृतक के परिजन दावा करने के लिए अधिकारियों से संपर्क कर सकें.

मुआवजे के फर्जी दावों संबंधी मुद्दे में केरल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने पैरवी की और सुझाव दिया कि मामला राज्य पुलिस को नहीं सौंपा जाना चाहिए. साथ ही यह भी सुझाव दिया कि जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को दावों का सत्यापन करने के लिए कहा जा सकता है.

बता दें कि केंद्र ने पहले एक आवेदन दायर किया था, जिसमें कोविड-19 के कारण परिजनों की मृत्यु पर अधिकारियों से मुआवजे का दावा करने के लिए चार सप्ताह की समय सीमा निर्धारित करने की मांग की गई थी.

याचिका में कहा गया कि अगर कोविड-19 से अब कोई मौत होती है तो मुआवजे के पात्र दावेदार मौत होने के चार सप्ताहों के भीतर सक्षम प्राधिकारी से संपर्क करें.

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार के सदस्यों को मिलने वाली 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि पाने के लिए झूठे दावों पर चिंता जताई थी और कहा था कि उसने कभी सोचा भी नहीं था कि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है और उसे लगता था कि नैतिकता का स्तर इतना नीचे नहीं गिर सकता.

बता दें कि महामारी के कारण अपनी जान गंवाने वालों के परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि नहीं दिए जाने पर शीर्ष अदालत ने पूर्व में राज्य सरकारों को फटकार लगाई थी.

अदालत ने चार अक्टूबर 2021 को कहा था कि कोई भी राज्य कोविड-19 के कारण मरने वालों के परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने से केवल इस आधार पर इनकार नहीं करेगा कि मृत्यु प्रमाण-पत्र में मौत के कारण के रूप में कोरोना वायरस का उल्लेख नहीं है.

अदालत ने यह भी कहा था कि जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण या संबंधित जिला प्रशासन को आवेदन करने की तारीख से 30 दिन के भीतर अनुग्रह राशि का वितरण करना होगा.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि कोविड-19 के कारण मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को मुआवजे के भुगतान के उसके निर्देश बहुत स्पष्ट हैं और मुआवजा देने के लिए जांच समिति के गठन की कोई आवश्यकता नहीं है.

अदालत ने कहा था कि यह बहुत स्पष्ट किया गया है कि ऐसे मामले में भी, जहां मृत्यु प्रमाण-पत्र में मौत का कारण कोविड-19 नहीं दिखाया गया है, लेकिन यदि यह पाया जाता है कि जान गंवाने वाला व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित था और 30 दिन के भीतर उसकी मृत्यु हो गई तो स्वत: ही उसके परिवार के सदस्य बिना किसी शर्त के मुआवजे के हकदार हो जाते हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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