पुनर्वास के लिए देशभर में सड़क पर रहने वाले 20 हज़ार बच्चों की पहचान की गई: एनसीपीसीआर

भारत में अनुमानित 15 से 20 लाख बच्चों के सड़कों पर रहने को लेकर चिंता जताते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि कुछ राज्य सरकारों के उदासीन रवैये की वजह से उनकी पहचान कर पुनर्वास करना करना मुश्किल हो रहा है. इसके बावजूद वेब पोर्टल के ज़रिये क़रीब बीस हज़ार ऐसे बच्चों की पहचान की गई और उनका पुनर्वास किया जा रहा है.

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प्रतीकात्मक (फोटो: रॉयटर्स)

भारत में अनुमानित 15 से 20 लाख बच्चों के सड़कों पर रहने को लेकर चिंता जताते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि कुछ राज्य सरकारों के उदासीन रवैये की वजह से उनकी पहचान कर पुनर्वास करना करना मुश्किल हो रहा है. इसके बावजूद वेब पोर्टल के ज़रिये क़रीब बीस हज़ार ऐसे बच्चों की पहचान की गई और उनका पुनर्वास किया जा रहा है.

प्रतीकात्मक (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: पूरे भारत में करीब 20 हजार सड़क पर रहने वाले बच्चों की पहचान की गई है और उनके पुनर्वास की प्रक्रिया चल रही है. यह जानकारी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने दी.

भारत में सड़कों पर रह रहे बेघर बच्चों की स्थिति पर कानूनगो ने कहा कि सड़कों पर रह रहे बच्चों के लिए वेब पोर्टल ‘बाल स्वराज्य’ बनाया गया है जहां पर उनकी जानकारी अपलोड की जा सकती है और उनपर नजर रखने के साथ उनके पुनर्वास के लिए कार्य किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि अब तक करीब 20 हजार ऐसे बच्चों की पहचान की गई है जो पुनर्वासित किए जाने की प्रक्रिया में हैं.

वरिष्ठ अधिकारी ने हालांकि अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य ऐसे बच्चों का पुनर्वास और उनकी पहचान करने का कार्य प्रभावी तरीके से नहीं कर रहे हैं.

भारत में अनुमानत: 15 से 20 लाख बच्चों के सड़कों पर रहने को लेकर चिंता जताते हुए एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि कुछ राज्य सरकारों के उदासीन रवैये की वजह से उनकी पहचान कर पुनर्वास करना करना मुश्किल हो रहा है.

उन्होंने कहा कि इसके बावजूद करीब 20 हजार ऐसे बच्चों की पहचान वेब पोर्टल के जरिये की गई और उनका पुनर्वास किया जा रहा है.

कानूनगो ने कहा, ‘राज्य उतना प्रभावी तरीके से काम नहीं कर रहे हैं जितना उन्हें करना चाहिए. हम यथाशीघ्र काम करना चाहते हैं. राज्यों पर यह कार्य तत्काल करने के लिए दबाव डालना चाहिए. मध्य प्रदेश और कुछ क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल ने उनके पुनर्वास के लिए अच्छा काम किया है, लेकिन दिल्ली और महाराष्ट्र कुछ नहीं कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार की अकर्मण्यता के कारण केवल 1,800 बच्चों को ही पुनर्वास की प्रक्रिया में लाया गया है जबकि दो साल पहले हमें बताया गया था कि दिल्ली की सड़कों पर करीब 73 हजार बच्चे रह रहे हैं.

कानूनगो का आकलन है कि इस समय भारत में 15 से 20 लाख बच्चे सड़कों पर जीवनयापन कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘सड़क पर रहने वाले बेघर बच्चों में तीन तरह के बच्चे हैं. पहले वे जो अपने घरों से भागकर आए हैं या परिवार ने उन्हें छोड़ दिया है और वे अकेले रह रहे हैं. दूसरी श्रेणी उन बच्चों की है जो सड़क पर अपने परिवार के साथ रह रहे हैं और उनका परिवार सड़कों पर रह रहा है जबकि तीसरी श्रेणी उन बच्चों की है जो नजदीकी झुग्गियों में रहते हैं और दिन सड़क पर बिताते हैं व रात अपने घरों को चले जाते हैं.’

उन्होंने बताया कि एनसीपीसीआर ने तीनों श्रेणियों के बच्चों के पुनर्वास के लिए योजना बनाई है.

उन्होंने कहा, ‘इन श्रेणियों के बच्चों का पुनर्वास अलग-अलग तरह का है. उदाहरण के लिए, जो बच्चे अकेले रहते हैं, उन्हें बाल गृह में रखा जाता है, जो परिवार के साथ झुग्गियों में रहते हैं उन्हें उनके परिवारों के साथ कल्याणकारी योजनाओं से जोड़कर पुनर्स्थापित किया जाता है. वहीं, जो बच्चे अपने परिवार के साथ सड़क पर रहते हैं और इनमें से अधिकतर बेहतर अवसर के लिए गांवों से शहरों में आए हैं, उन्हें हम उनके गांवों में जीवनयापन करने के लिए कल्याणकारी योजनाओं से जोड़कर वापस भेजने की कोशिश करते हैं.’

कानूनगो ने बताया कि बाल अधिकार के शीर्ष निकाय ने छह स्तरीय पुनर्वास की योजना बनाई है.

उन्होंने बताया, ‘पहला बच्चे को बचाव और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष उसे पेश करना, बच्चे की सामाजिक जांच रिपोर्ट तैयार करना, तीसरा व्यक्ति की देखभाल की योजना बनाना, उसके बाद समिति पुनर्वास की सिफारिश करती है कि बच्चा कहां जाएगा, पांचवां बच्चे को कल्याणकारी योजना से जोड़ना और छठा बच्चे पर नजर रखना.’

कानूनगो ने बताया कि सड़क पर रहने वाले बच्चों की पहचान और उनके पुनर्वास के मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में चल रही है और पिछली सुनवाई में अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पुनर्वास नीति के सुझावों पर अमल का निर्देश दिया था और कहा था कि यह केवल कागज पर नहीं होना चाहिए.

जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा था  कि अभी तक सड़क पर रहने वाले केवल 17,914 बच्चों की जानकारी उपलब्ध कराई गई है, जबकि उनकी अनुमानित संख्या 15-20 लाख है.

इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होनी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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