पेट्रोल-डीज़ल मूल्यवृद्धि: विरोध से लेकर समर्थन करने तक भाजपा का सुर कैसे बदल गया

भाजपा ने ईंधन की क़ीमतों में बढ़ोतरी को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, हालांकि सत्ता में आने पर उसने पेट्रोल, डीज़ल के दामों को कम करने के अपने वादे को पूरा नहीं किया और इसके लिए अंतरराष्ट्रीय कारकों को ज़िम्मेदार बताने लगी.

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2014 के आम चुनाव से पहले भाजपा द्वारा जारी किया गया एक पोस्टर. (फाइल फोटो, साभार: भारतीय जनता पार्टी)

भाजपा ने ईंधन की क़ीमतों में बढ़ोतरी को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, हालांकि सत्ता में आने पर उसने पेट्रोल, डीज़ल के दामों को कम करने के अपने वादे को पूरा नहीं किया और इसके लिए अंतरराष्ट्रीय कारकों को ज़िम्मेदार बताने लगी.

Srinagar: People line up outside a petrol pump in Srinagar, Friday, Aug. 2, 2019. An advisory asking tourists and Amar Nath Yatris to cut short their stay in Kashmir was put out by the army. (PTI Photo/S. Irfan)(PTI8_2_2019_000194B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मई 2012 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने तत्कालीन सरकार द्वारा ईंधन की कीमतों में अत्यधिक बढ़ोतरी को कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की विफलता के एक प्रमुख उदाहरण के तौर पर पेश किया.

भाजपा और उसके नेताओं ने मनमोहन सिंह सरकार पर हमलावर होने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने वादा किया कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो ईंधन की कीमतों में कमी लाएंगे.

वर्षों बाद, उस वादे को साकार होता देखना नागरिकों के लिए केवल दूर का सपना इसलिए प्रतीत होता है क्योंकि मोदी सरकार ने ईंधन की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि की है.

2014 के आम चुनाव से पहले भाजपा द्वारा जारी किया गया एक पोस्टर. (फाइल फोटो, साभार: भारतीय जनता पार्टी)

पिछले नौ दिनों में देश में आठ बार ईंधन की कीमतें बढ़ी हैं. 30 मार्च बुधवार को पेट्रोल के दामों में 80 पैसे की वृद्धि हुई. इस तरह एक सप्ताह के समयांतराल में पेट्रोल के दामों में 5.60 रुपये की वृद्धि हुई है. दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत अब 101.01 रुपये है.

पिछले एक हफ्ते में डीजल की कीमतों में भी तेजी आई है. दिल्ली में एक लीटर डीजल की कीमत अब 92.27 रुपये है.

कुकिंग गैस की कीमत में भी 50 रुपये की वृद्धि की गई है. 14.2 किलो भार वाला गैर-सब्सिडी वाला सिलेंडर अब राष्ट्रीय राजधानी में 949.50 रुपये का मिलेगा.

जैसा कि कई वैश्विक संगठनों और विपक्षी दलों ने भविष्यवाणी की थी कि पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद वृद्धि होगी, वही हुआ. चुनावी मौसम के दौरान करीब साढ़े चार महीनों तक ईंधन की कीमतें स्थिर रहीं.

पांचवें चरण के चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 5 मार्च को ट्वीट किया था, ‘अपनी पेट्रोल की टंकिया पूरी भरवा लें. मोदी सरकार का ‘चुनावी’ ऑफर खत्म होने वाला है.’

 

यह समझाते हुए कि कैसे ईंधन की कीमतों में घटत-बढ़त भाजपा की चुनावी राजनीति से जुड़ी हुई है, शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने हाल ही में ट्विटर पर लिखा था, ‘चुनाव आयोग से आग्रह है कि कृपया आगामी राज्य विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की तुरंत घोषणा करें, इससे ईंधन की कीमतें स्वत: ही विनियमन मोड से निकलकर नियंत्रण में आ जाएंगी और भारतीयों को बढ़ती कीमतों से राहत दिलाएं. चुनाव = ईंधन में कोई मूल्यवृद्धि नहीं.’

2014 से पहले और बाद में ईंधन की कीमतों पर भाजपा का रुख़

2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने से पहले ईंधन की कीमत बढ़ोतरी पर भाजपा के बयान.

विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने मूल्यवृद्धि, विशेष रूप से ईंधन को लेकर सरकार पर हमला करने का अवसर कभी नहीं गंवाया था और इस मुद्दे को कांग्रेस के खिलाफ अपना प्रमुख हथियार बनाया था.

नमूने के तौर पर 2014 में सत्ता संभालने से पहले भाजपा और इसके नेताओं के इन बयानों को देखें:

प्रधानमंत्री बनने से पहले ईंधन की बढ़ती कीमतों पर नरेंद्र मोदी के बयान.

हालांकि, सत्ता में आने के बाद पार्टी बढ़ती कीमतों पर लगाम नहीं कस पाई है. ‘सरकार की विफलता’ के बजाय पार्टी अब ईंधन की बढ़ती कीमतों के लिए ‘वैश्विक तेल प्रवाह में आईं बाधाओं’ को जिम्मेदार बता रही है.

2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने से पहले ईंधन की कीमत बढ़ोतरी पर भाजपा के बयान.

बढ़ती ईंधन की कीमतों पर सरकार के बचाव में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक की सरकार को अपने बचाव में खींच लिया.

मुद्दे पर सीतारमण ने लोकसभा में कहा, ‘1951 में भी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि कोरियाई युद्ध ने भारतीय मंहगाई को प्रभावित किया है… लेकिन अगर आज वैश्विक तौर पर जुड़ी दुनिया में हम कहते हैं कि यूक्रेन (युद्ध) हमें प्रभावित कर रहा है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘हम अत्यधिक दबाव में नहीं लाए गए हैं. वैश्विक हालात, युद्ध जैसी स्थिति वह समय नहीं है जब हम प्रतिस्पर्धा की ओर देखें. इसका चुनावी समय से कुछ लेना-देना नहीं है. अगर तेल बाजार कंपनियां सोचती हैं कि वे 15 दिनों के औसत से अधिक दर पर खरीद कर रही हैं तो जाहिर तौर पर हमें बढ़ी कीमतों का भार सहना होगा.’

एक ओर जहां बढ़ती कीमतों पर चुप्पी साधे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा नेता आसमान छूते दामों के कारणों को समझाने के लिए समय-समय पर कुतर्क प्रस्तुत करते हैं.

अक्टूबर 2021 में विवाद को हवा देते हुए तत्कालीन केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री रामेश्वर तेली ने कहा कि सरकार को कोविड-19 टीका उपलब्ध कराने में मदद करने के लिए मध्यम वर्ग को उच्च कीमतों की पीड़ा को सहन करना चाहिए.

तेली ने कहा, ‘तेल की कीमतें बढ़ी हुई नहीं हैं लेकिन इसमें लगाया गया कर शामिल है. मुफ्त में टीका तो आपने लगवाया ही होगा, उसका पैसा कहां से आएगा? आपने पैसा नहीं चुकाया है, इसे इस तरह वसूला जा रहा है.’

वास्तव में ऐसी धारणा भाजपा के कई केंद्रीय और राज्य मंत्रियों द्वारा बिना किसी शर्म के दी जा रही हैं. ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने नोटबंदी के बाद किया था, जिसने करोड़ों भारतीयों को उस पीड़ा में धकेल दिया था, जिसे टाला नहीं जा सकता था और जिसका सामना करना मुश्किल था.

ईंधन की कीमतों को समझाने के लिए भाजपा की ओर से बचाव में एक और तर्क पेश किया जाता है कि पिछली कांग्रेस सरकार ने देश के वित्तीय हालातों को इतनी खराब स्थिति में छोड़ा था कि वर्तमान सरकार के पास पेट्रोल और डीजल पर उच्च कर लगाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है.

हालांकि, मोदी सरकार ईंधन की बढ़ती हुई कीमतों के लिए अंतरराष्ट्रीय हालात को दोष दे सकती है, लेकिन तथ्य यह है कि उनकी सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतें सर्वकालिक निम्न स्तर पर आने के बावजूद भी कर वसूली की दर को उच्चतम स्तर पर बनाए हुई थी.

मई 2014 में जब संप्रग (यूपीए) सरकार की विदाई हुई और मोदी ने सत्ता संभाली, तो क्रूड ऑइल (कच्चे तेल) की भारतीय बाजार में कीमत 113 डॉलर प्रति बैरल थी.

हालांकि, जनवरी 2015 तक छह महीनों के अंदर क्रूड ऑइल की कीमतें 50 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं. जनवरी 2016 में तो वे 29 डॉलर प्रति बैरल पर थीं.

लेकिन मोदी सरकार ने उपभोक्ताओं को राहत पहुंचाने के लिए दामों में कटौती नहीं की. इसके विपरीत इसने उच्चतम कर लगा दिया.

आकलनों के मुताबिक, पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क मई 2014 से सितंबर 2017 के बीच 12 बार बढ़ाया गया, और इसके बाद के वर्षों में भी बढ़ाया गया.

जब कोविड-19 महामारी ने कइयों को गरीबी में धकेल दिया, तब मार्च और मई 2020 के बीच मोदी सरकार ने पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 15 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया था. वास्तव में, महामारी के दौरान अप्रैल 2020 में भारतीय बाजार में क्रूड की कीमत 19 डॉलर प्रति बैरल थी.

हालांकि, तेल विपणन कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय हालातों के आधार पर अपनी कीमतें तय करने की अनुमति है, लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए कर हैं.

(जानकारी के लिए बता दें कि मनमोहन सिंह सरकार ने 2010 में तेल कंपनियों को पेट्रोल के दाम तय करने की छूट दी थी और पेट्रोल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया था, तो मोदी सरकार ने 2015 में डीजल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दाम बाजार के हवाले कर दिए थे.)

उदाहरण के लिए, दिल्ली में 100 रुपये की पेट्रोल पर ग्राहक 45.3 रुपये कर चुकाता है, जिसमें केंद्रीय कर के 29 रुपये हैं और राज्य कर के 16.3 रुपये शामिल हैं.

सोर्स: Stats of India.

स्टैट्स ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, विभिन्न राज्यों में 100 रुपये के पेट्रोल पर कर की दर अलग-अलग है, महाराष्ट्र में 100 रुपये के पेट्रोल पर 52.5 रुपये, आंध्र प्रदेश में 52.4, तेलंगाना में 51.6, राजस्थान में 50.8, मध्य प्रदेश में 50.6, केरल में 50.2 और बिहार में 50 रुपये कर के रूप में वसूले जाते हैं.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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