बिहार विधानसभा ने शराबबंदी क़ानून में नरमी से जुड़ा विधेयक पारित किया

संशोधित क़ानून के अनुसार, पहली बार अपराध करने वालों को जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से ज़मानत मिल जाएगी और यदि अपराधी जुर्माना राशि जमा करने में सक्षम नहीं है तो उसे एक महीने की जेल का सामना करना पड़ सकता है. 

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नीतीश कुमार. (फोटो: रॉयटर्स)

संशोधित क़ानून के अनुसार, पहली बार अपराध करने वालों को जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से ज़मानत मिल जाएगी और यदि अपराधी जुर्माना राशि जमा करने में सक्षम नहीं है तो उसे एक महीने की जेल का सामना करना पड़ सकता है.

नीतीश कुमार. (फोटो: रॉयटर्स)

पटना: बिहार विधानसभा ने बुधवार को निषेध एवं उत्पाद शुल्क संशोधन विधेयक, 2022 को ध्वनिमत से पारित कर दिया, जिसके तहत राज्य में पहली बार शराबबंदी कानून को कम सख्त बनाया गया है.

बिहार के मद्य निषेध एवं उत्पाद मंत्री सुनील कुमार द्वारा पेश उक्त संशोधन विधेयक में विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए कई संशोधनों को खारिज करते हुए सदन ने इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया.

संशोधित विधेयक को अधिसूचित होने से पहले राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा.

संशोधित कानून के अनुसार, पहली बार अपराध करने वालों को जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से जमानत मिल जाएगी और यदि अपराधी जुर्माना राशि जमा करने में सक्षम नहीं है तो उसे एक महीने की जेल का सामना करना पड़ सकता है.

इसके अनुसार, जब किसी को शराबबंदी कानूनों का उल्लंघन करते हुए पुलिस पकड़ेगी तो आरोपी को उस व्यक्ति का नाम बताना होगा जिसने शराब उपलब्ध करवाई.

साथ ही, गिरफ्तार शराब कारोबारियों की चल-अचल संपत्ति को जब्त कर लिया जाएगा जबकि बार-बार शराब पीने वालों को जुर्माने के साथ-साथ जेल भी भेजा जाएगा. शराब के धंधे में इस्तेमाल होने वाले वाहनों को जब्त कर नीलाम किया जाएगा.

सरकार ने पहली बार शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने वालों पर लगाए जाने वाले जुर्माने की राशि का तत्काल खुलासा नहीं किया है.

मद्य निषेध एवं उत्पाद मंत्री ने संशोधन विधेयक पेश करते हुए कहा, ‘निर्दोषों को परेशान नहीं किया जाएगा जबकि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.’

शराबबंदी को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही नीतीश कुमार सरकार ने बिहार शराब निषेध संशोधन विधेयक को राज्य विधानसभा में पेश करने का फैसला किया.

बता दें कि नीतीश कुमार सरकार ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम के तहत अप्रैल 2016 में राज्य में शराबबंदी लागू कर दी थी. जिसके तहत पूरे राज्य में शराब की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध है. यह कानून गंभीर अपराधों के लिए कैद की सजा के अलावा आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान करता है. कानून में 2018 में संशोधन किया गया, जिसके तहत कुछ प्रावधान हल्के कर दिए गए.

प्रतिबंध के बाद से बड़ी संख्या में लोग केवल शराब पीने के आरोप में जेलों में बंद हैं. उल्लंघन करने वालों में अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और गरीब लोगों में से हैं.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने पिछले साल कहा था कि 2016 में बिहार सरकार के शराबबंदी जैसे फैसलों ने अदालतों पर भारी बोझ डाला है.

रमना ने राज्य के शराबबंदी कानून को लेकर दूरदर्शिता की कमी का हवाला देते हुए कहा था कि इसकी वजह से हाईकोर्ट में बड़ी संख्या में जमानत याचिकाएं लंबित पड़ी हैं. एक साधारण जमानत याचिका के निपटान में एक साल तक का समय लग रहा है.

उन्होंने कहा था कि अदालतों में तीन लाख मामले लंबित हैं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि लोग लंबे समय से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं और अब शराब के उल्लंघन से संबंधित अत्यधिक मामले अदालतों पर अतिरिक्त बोझ डाल रहे हैं.

विधानसभा के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने आरोप लगाया, ‘संशोधित कानून पुलिसकर्मियों को अधिक अधिकार देगा. राज्य सरकार के इस कदम से पुलिस और शराब माफिया के बीच गठजोड़ और मजबूत होगा.’

इसी तरह की राय व्यक्त करते हुए राजद विधायक ऋषि कुमार ने कहा, ‘नया कानून जिसमें कहा गया है कि शराब पीते हुए लोगों को जेल नहीं होगी, काफी हास्यास्पद है. यह साबित करता है कि राज्य में शराबबंदी नीति विफल हो गई है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए.’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘शराब की तस्करी हो रही है. लोग मर रहे हैं और राज्य को राजस्व का भी नुकसान हो रहा है. यह प्रयास विफल हो गया है और मैं कहता हूं कि इसे समाप्त किया जाना चाहिए. मुख्यमंत्री शराब माफिया के दबाव में काम कर रहे हैं.’

इससे पहले भाजपा सदस्यों ने राज्य के 11 विधि कॉलेजों की बार काउंसिल ऑफ इंडिया की मान्यता वापस लेने का मुद्दा उठाया और सरकार से सदन में उन संस्थानों में कानून की पढ़ाई कर रहे छात्रों के शैक्षणिक करिअर को बचाने के लिए उचित कदम उठाने का आग्रह किया.

प्रश्नकाल के तुरंत बाद भाजपा विधायक संजय सरावगी और नीतीश मिश्रा ने शराबबंदी का मुद्दा उठाया.

मालूम हो कि बीते दो फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकारते हुए कहा था कि शराब की समस्या एक सामाजिक मुद्दा है और हर राज्य को इससे निपटने के लिए क़ानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस पर कुछ अध्ययन करना चाहिए था कि यह कितनी तादाद में मुक़दमे बढ़ाएगा, किस तरह का बुनियादी ढांचा चाहिए होगा और कितनी संख्या में न्यायाधीशों की ज़रूरत पड़ेगी.

बिहार में शराबबंदी के बाद से अक्टूबर 2021 तक  3.5 लाख मामले दर्ज हुए हैं और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गईं.

इन मामलों से जुड़ीं लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं निपटान के लिए पटना हाईकोर्ट और अन्य जिला अदालतों के समक्ष लंबित हैं.

बीते जनवरी में शराबबंदी कानून को लेकर बिहार सरकार की आलोचना के बाद राज्य सरकार ने कानून में संशोधन करने का फैसला लिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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