पंजाब: विधानसभा में चंडीगढ़ को राज्य के हवाले करने का प्रस्ताव पारित

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 27 मार्च को घोषणा की थी कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों की सेवा शर्तें अब केंद्रीय सिविल सेवाओं के अनुरूप होंगी. इसके मद्देनज़र पंजाब विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें भाजपा के अतिरिक्त सभी दलों ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए केंद्र के क़दम को पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 का उल्लंघन क़रार देते हुए असंवैधानिक बताया.

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पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान मुख्यमंत्री भगवंत मान. (फाइल फोटो: पीटीआई)

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 27 मार्च को घोषणा की थी कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों की सेवा शर्तें अब केंद्रीय सिविल सेवाओं के अनुरूप होंगी. इसके मद्देनज़र पंजाब विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें भाजपा के अतिरिक्त सभी दलों ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए केंद्र के क़दम को पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 का उल्लंघन क़रार देते हुए असंवैधानिक बताया.

पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान मुख्यमंत्री भगवंत मान. (फोटो: पीटीआई)

चंडीगढ़: पंजाब विधानसभा ने चंडीगढ़ को तत्काल राज्य को हस्तांतरित करने की मांग करने वाला प्रस्ताव शुक्रवार को पारित कर दिया.

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन और अन्य साझा संपत्तियों में संतुलन बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.

मुख्यमंत्री मान ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो विधायकों की अनुपस्थिति में यह प्रस्ताव पेश किया. इन विधायकों ने सदन से बहिर्गमन कर दिया था.

भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के सदस्य और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के इकलौते विधायक इस प्रस्ताव के समर्थन में आए और केंद्र के कदम को ‘तानाशाही और निरंकुश’ बताया.

विधानसभा का यह एक दिवसीय विशेष सत्र केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की उस घोषणा के परिप्रेक्ष्य में बुलाया गया जिसमें कहा गया है कि केंद्रीय सेवा नियम, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर भी लागू होंगे.

अमित शाह ने 27 मार्च को घोषणा की थी कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों की सेवा शर्तें अब केंद्रीय सिविल सेवाओं के अनुरूप होंगी. इसका मतलब यह हुआ कि चंडीगढ़ के कर्मचारी, जो अब तक पंजाब सिविल सेवा नियम के अधीन आते थे, अब केंद्रीय सेवा नियमों के तहत आएंगे, जो कि 1 अप्रैल से लागू हो गए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यह कदम चंडीगढ़ प्रशासन के तहत काम करने वाले 16,000 कर्मचारियों को प्रभावित करता है.

नियमों के तहत, चंडीगढ़ में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल से बढ़ाकर 60 साल कर दी गई है और महिला कर्मचारियों को बच्चे की देखभाल के लिए एक साल के बजाय दो साल की छुट्टी मिलेगी. केंद्र ने नियमों को अधिसूचित कर दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कई संघ इस बदलाव से खुश हैं. एक केंद्र शासित कैडर के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इससे निश्चित तौर पर प्रशासन में कार्यप्रणाली व्यवस्थित होगी. अभी, पंजाब और केंद्र के नियमों के मिश्रण से भ्रम की स्थिति पैदा होती है.

वहीं, द प्रिंट के मुताबिक, संशोधित नियमों के चलते मान सरकार पर दबाव बढ़ेगा क्योंकि पंजाब प्रशासन के कर्मचारी अपना वेतन चंडीगढ़ के कर्मचारियों जितना करने की मांग कर सकते हैं.

बता दें कि चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है.

बहरहाल, मान ने कहा कि आने वाले दिनों में वे इस मुद्दे पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मुलाकात का वक्त मांगेंगे और सदन को आश्वस्त किया कि उनके समक्ष पंजाब का पक्ष मजबूती से रखा जाएगा.

उन्होंने सभी दलों से पंजाब के हितों की रक्षा के लिए एक साथ आने का भी अनुरोध किया. उन्होंने कहा, ‘मैं पंजाब के लोगों को गारंटी देता हूं कि हम मजबूती से लड़ेंगे और राज्य के अधिकारों की रक्षा करेंगे, चाहे विधानसभा में हो या संसद या किसी अन्य मंच पर.’

विधानसभा अध्यक्ष ने सदन में बार-बार मुख्यमंत्री के बयान में व्यवधान डालने के लिए निर्दलीय विधायक राणा इंदर प्रताप सिंह का नाम लिया.

सदन में प्रस्ताव पेश करते हुए मान ने केंद्र से संविधान में प्रदत्त संघवाद के सिद्धांतों का सम्मान करने और ऐसा कोई कदम न उठाने के लिए कहा, जिससे चंडीगढ़ का प्रशासन और साथ ही अन्य साझा संपत्तियों का संतुलन बिगड़ता हो.

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘पंजाब पुनर्गठन कानून-1966 के जरिये पंजाब का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पंजाब राज्य का, हरियाणा राज्य, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में पुनर्गठन किया गया और पंजाब के कुछ हिस्से तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए.’

इसमें कहा गया है, ‘तब से पंजाब और हरियाणा राज्य के उम्मीदवारों को कुछ अनुपात में प्रबंधन पदों को देकर साझा संपत्तियों जैसे कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के प्रशासन, में संतुलन रखा गया. हाल के अपने कई कदमों से केंद्र सरकार इस संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.’

प्रस्ताव के अनुसार, केंद्र सरकार ने बीबीएमबी के सदस्यों के पद का विज्ञापन सभी राज्यों और केंद्र सरकार के अधिकारियों के लिए खोला, जबकि इन पदों पर पारंपरिक रूप से पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों की भर्ती होती है. इसी तरह चंडीगढ़ का प्रशासन हमेशा पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों ने 60:40 के अनुपात में किया है.

इसमें कहा गया है, ‘बहरहाल, हाल में केंद्र सरकार ने बाहर के अधिकारियों को चंडीगढ़ में तैनात किया और चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सिविल सेवा नियम लागू किए जो पूर्व में बनी सहमति के बिल्कुल खिलाफ है. चंडीगढ़ शहर को पंजाब की राजधानी के तौर पर बनाया गया. पूर्व में जब भी किसी राज्य को विभाजित किया गया तो राजधानी मूल राज्य के पास रही है. इसलिए पंजाब चंडीगढ़ को पूरी तरह पंजाब को हस्तांतरित करने के लिए अपना दावा पेश कर रहा है.’

मान ने कहा कि पहले भी इस सदन में चंडीगढ़ को पंजाब को हस्तांतरित करने का केंद्र सरकार से अनुरोध करते हुए कई प्रस्ताव पारित हुए हैं.

सदन में मुख्यमंत्री मान द्वारा लाए गए प्रस्ताव के अनुसार, ‘सौहार्द बनाए रखने और लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह सदन एक बार फिर चंडीगढ़ को तत्काल पंजाब को हस्तांतरित करने के मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने की सिफारिश करता है.’

प्रस्ताव पेश होने के बाद चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि यह अत्यधिक महत्वपूर्ण मामला है और उन्होंने मान से पंजाब के महाधिवक्ता के साथ विचार-विमर्श करने तथा राज्य के पास उपलब्ध सभी कानूनी विकल्पों को तलाशने का अनुरोध किया.

उन्होंने राज्य सरकार से इस मुद्दे को प्रधानमंत्री तथा केंद्रीय गृह मंत्री के समक्ष उठाने का भी अनुरोध किया. बाजवा ने वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा के पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों पर राज्य के हितों को नजरअंदाज करने के आरोप पर कड़ी आपत्ति जताई.

कांग्रेस विधायक तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा ने भगवंत मान की अगुवाई वाली सरकार से इस लड़ाई को आगे ले जाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि पूरा सदन सत्तारूढ़ दल के साथ है. उन्होंने डर जताया कि अब केंद्र, राज्य के पानी को छीनने की कोशिश करेगा.

उन्होंने कहा, ‘पंजाब के लोगों ने आपको (आम आदमी पार्टी को ) भारी जनादेश दिया है. आपको यह लड़ाई आगे ले जानी होगी. पंजाब के हितों की रक्षा के लिए जो भी जरूरी होगा, उसके लिए हम आपके साथ हैं.’

आम आदमी पार्टी के विधायक अमन अरोड़ा ने कृषि कानून लागू करने और बीएसएफ मुद्दे (सीमा सुरक्षा बल का अधिकार क्षेत्र बढ़ाने) के केंद्र के पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए उस पर पंजाब के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया.

अरोड़ा ने राज्य में अपने 24 साल के शासन के दौरान इस प्रस्ताव को न लाने के लिए कांग्रेस पर भी निशाना साधा.

शिअद विधायक मनप्रीत सिंह अयाली ने कहा कि वह इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन करते हैं.

कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैड़ा ने केंद्र के हाल के कदम को ‘पूरी तरह गलत, एकतरफा, निरंकुश, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक’ बताया.

प्रस्ताव का विरोध करते हुए भाजपा विधायक अश्विनी शर्मा ने कहा कि पंजाब पुनर्गठन कानून के नियमों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ. वह बोलने की अनुमति न मिलने के बाद भाजपा के अन्य विधायक जांगी लाल महाजन के साथ सदन से बाहर चले गए.

आप विधायक जीवन ज्योत कौर ने केंद्र के कदम को ‘निरंकुश फैसला’ बताया.

भले ही, पंजाब के कांग्रेसी विधायक प्रस्ताव के समर्थन में रहे हों लेकिन कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला के बोल उनसे अलग हैं. सुरजेवाला का कहना है कि चंडीगढ़, पंजाब एवं हरियाणा, दोनों की राजधानी है तथा इस प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं है.

उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह प्रस्ताव पारित करवाया है.

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुरजेवाला ने ट्वीट किया, ‘सस्ती लोकप्रियता हासिल करने व अख़बार की खबर बनाने के लिए भगवंत मान जी बेसिर-पैर के प्रस्ताव पारित कर रहे हैं. चंडीगढ़ हरियाणा व पंजाब की राजधानी है. हरियाणा का अधिकार कोई नहीं छीन सकता. सच यही है.’

उन्होंने जोर देकर कहा, ‘पंजाब विधानसभा का प्रस्ताव काग़ज़ का एक टुकड़ा है, जिसके कोई मायने नहीं.’

हरियाणा और पंजाब दोनों की संयुक्त राजधानी रहेगा चंडीगढ़: खट्टर

इस बीच हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुक्रवार को कहा  कि चंडीगढ़, हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बना रहेगा.

खट्टर ने संवाददाताओं से कहा, ‘चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी रहेगा. दोनों राज्यों के पास चर्चा के लिए  चंडीगढ़ के अलावा कई अन्य मुद्दे हैं.’

उन्होंने केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्रीय सेवा नियम लागू करने के केंद्र सरकार के कदम की भी सराहना की और पंजाब सरकार पर इस मुद्दे को लेकर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया.

भाजपा नेता खट्टर ने कहा कि केंद्र सरकार ने केंद्र शासित प्रदेशों के कर्मचारियों की मांगों और हितों पर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पंजाब सरकार के प्रस्ताव को ‘एकपक्षीय’ और ‘अर्थहीन’ करार देते हुए खट्टर ने कहा, ‘पंजाब सरकार के एकपक्षीय प्रस्ताव का कोई अर्थ नहीं है. ऐसा प्रस्ताव पहली बार नहीं आया है, पहले भी आ चुके हैं. इस तरह के प्रस्ताव की सिफारिश करने का कोई मतलब नहीं है… चूंकि यह सिर्फ पंजाब का विषय नहीं है, हरियाणा का भी है, यहां तक कि हिमाचल प्रदेश के लोग भी अपने हिस्से का दावा करते हैं.’

चंडीगढ़ पर हिमाचल प्रदेश के दावे के संबंध में उन्होंने कहा, ‘यह एक अलग मसला है कि हिमाचल प्रदेश ने शिमला को अपनी राजधानी घोषित किया है. इसलिए तीन राज्यों की इसमें (चंडीगढ़) हिस्सेदारी है.’

उन्होंने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक बार आदेश दिया था कि हिमाचल प्रदेश को पंजाब पुनर्गठन अधिनियम-1966 के तहत चंडीगढ़ की 7.19 फीसदी ज़मीन पर अधिकार है. हरियाणा और हिमाचल प्रदेश पांच दशक से भी पहले पंजाब से अलग हुए थे.

साथ ही, खट्टर ने केंद्र सरकार के केंद्रीय सेवा नियम लागू करने के संबंध में कहा कि इससे कर्मचारियों को बहुत लाभ होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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