दंड प्रक्रिया विधेयक राज्यसभा में पारित, विपक्ष ने मानवाधिकार हनन होने की चिंता जताई

विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमारा क़ानून सख़्ती के मामले में अन्य देशों की तुलना में ‘बच्चा’ (हल्का) है. दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका जैसे देशों में अधिक कड़े क़ानून हैं, यही वजह है कि वहां सज़ा की दर बेहतर है. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि विधेयक असंवैधानिक है. इससे लोगों की स्वतंत्रता, निजता और गरिमा का उल्लंघन होगा.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमारा क़ानून सख़्ती के मामले में अन्य देशों की तुलना में ‘बच्चा’ (हल्का) है. दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका जैसे देशों में अधिक कड़े क़ानून हैं, यही वजह है कि वहां सज़ा की दर बेहतर है. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि विधेयक असंवैधानिक है. इससे लोगों की स्वतंत्रता, निजता और गरिमा का उल्लंघन होगा.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: अपराध की जांच को अधिक दक्ष बनाने और दोषसिद्धि दर में वृद्धि करने के उद्देश्य से औपनिवेशिक ब्रिटिश काल के दौरान कैदियों की पहचान संबंधी 1920 के कानून की जगह लेने वाले ‘दंड प्रक्रिया (शिनाख्त) विधेयक, 2022’ को बुधवार को राज्यसभा में पारित कर दिया गया.

उन्होंने कहा, ‘हमारा कानून सख्ती के मामले में  अन्य देशों की तुलना में ‘बच्चा’ (हल्का) है. दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका जैसे देशों में अधिक कड़े कानून हैं, यही वजह है कि उनकी सजा की दर बेहतर है.’

गृह मंत्री अमित शाह ने उच्च सदन में विधेयक पेश करते हुए कहा, ‘यह अत्यंत महत्वपूर्ण विधेयक है, जिसका उद्देश्य 100 साल पुराने विधेयक में आज की परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तित प्रौद्योगिकी का समावेश करना तथा दोषसिद्धि के प्रमाण को पुख्ता करना है.’

यह विधेयक लोकसभा में चार अप्रैल को पारित हो चुका है.

शाह ने कहा कि कितने भी अपराधियों को पकड़ लिया जाए, उनकी दोषसिद्धि जरूरी है. उन्होंने कहा कि कानून के अनुसार जीने वाले समाज के बहुत बड़े वर्ग में अपराधियों की दोषसिद्धि के बिना, कानून के प्रति विश्वास को मजबूत नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा, ‘1980 में विधि आयोग ने अपनी 87वीं रिपोर्ट में बंदी शिनाख्त अधिनियम पर पुनर्विचार करने की सिफारिश सरकार को भेजी थी. इस पर कई बार चर्चा हुई. हमने सरकार बनने के बाद राज्यों से चर्चा की, अनेक प्रकार के सुझाव लिए गए. सभी को समाहित करते हुए और दुनियाभर में अपराध प्रक्रिया में दोषसिद्धि के लिए इस्तेमाल अनेक प्रावधानों का अध्ययन करने के बाद यह विधेयक लाया गया है.’

आयोग की विभिन्न सिफारिशों के अलावा विभिन्न कानूनों फैसलों में भी इसी तरह की भावना सामने आई.

उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक से जांच, विश्लेषण, प्रदेश तथा जिले में अपराध का विश्लेषण आदि विभिन्न पहलुओं को शामिल कर यह विधेयक तैयार किया गया है.

इस विधेयक में दोषियों और अपराध के मामले में गिरफ्तार लोगों का विभिन्न प्रकार का ब्योरा एकत्र करने की अनुमति देने की बात कही गई है, जिसमें अंगुली एवं हथेली की छाप या प्रिंट, पैरों की छाप, फोटो, आंखों की पुतली, रेटिना और लिखावट के नमूने आदि शामिल हैं.

इसमें कहा गया है कि दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 ऐसे व्यक्तियों का समुचित शरीरिक माप लेने का विधिक उपबंध करता है. यह अपराध की जांच को अधिक दक्ष बना एगा और दोषसिद्धि दर में वृद्धि करने में सहायता करेगा.

द हिंदू के मुताबिक, अमित शाह ने समझाया कि विधेयक का उद्देश्य दोषसिद्धि की दर और फोरेंसिक क्षमता को बढ़ाना, वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र करना, अपराधों के आरोपियों के खिलाफ थर्ड-डिग्री विधियों को समाप्त करना है.

देश के नागरिकों की सुरक्षा चिंताओं पर विचार करते हुए राजनीति को बाहर रखे जाने की बात कहते हुए शाह ने कहा, ‘क्या हम आगे नहीं बढ़ना चाहते हैं? क्या हम राजनीति के गुल्ली-डंडा के बीच देश के बारे में नहीं सोचेंगे? जनता की सुरक्षा, दोषियों को सजा के सवाल पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘हम यह सुनिश्चित करेंगे कि राजनीतिक आंदोलनकारियों को अपने भौतिक और जैविक नमूने न देने पड़ें, लेकिन अगर नेताओं को आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो उन्हें अपने नमूने देने होंगे.’

इसके विरोध में कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि विधेयक असंवैधानिक है. इससे लोगों की स्वतंत्रता, निजता और गरिमा का उल्लंघन होगा. उन्होंने कहा, ‘विधेयक को प्रवर समिति के पास नहीं भेजा गया है.’

उन्होंने कहा कि सरकार ने सेल्वी और पुट्टस्वामी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों को ध्यान में नहीं रखा है.

चिदंबरम ने कहा, ‘सेल्वी मामले में अदालत ने कहा था कि पॉलीग्राफी, नार्को-एनालिसिस और ब्रेन इलेक्ट्रिकल एक्टिवेशन प्रोफाइल (बीईएपी) एक व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन है.’

उन्होंने विधेयक के एक अन्य खंड की ओर भी इशारा किया, जिसमें कहा गया है कि एकत्र किए गए रिकॉर्ड को किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसी के साथ साझा किया जा सकता है और कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसी की कोई परिभाषा नहीं है.

यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बिना सहमति के उंगलियों के निशान, डीएनए प्रोफाइल और सेलुलर नमूनों को रखना और भंडारण करना मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

भाकपा सांसद बिनॉय विश्वम ने कहा कि विधेयक कठोर है और केंद्र सभी को धमकाना चाहता है.

उन्होंने कहा, ‘आप सभी मानवाधिकारों को छीनना चाहते हैं. आप देश के लोकतांत्रिक आंदोलन का अधिकार लेना चाहते हैं. इस सरकार को आजादी की कोई फिक्र नहीं है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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