क़ुतुब मीनार ‘विष्णु स्तंभ’ नहीं, मंदिरों के पुनर्निर्माण की मांग बेमानी: एएसआई के पूर्व अफ़सर

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बीआर मणि ने विश्व हिंदू परिषद के इस दावे को ‘कपोल कल्पना’ क़रार दिया कि क़ुतुब मीनार मूल रूप से एक ‘विष्णु स्तंभ’ था और आगाह किया कि परिसर में संरचनाओं के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप 1993 में यूनेस्को द्वारा मिला विश्व धरोहर का दर्जा रद्द कर दिया जाएगा.

वर्ष 1890 के आसपास कुतुब मीनार. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Clifton & Co - Leiden University Library, KITLV)

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बीआर मणि ने विश्व हिंदू परिषद के इस दावे को ‘कपोल कल्पना’ क़रार दिया कि क़ुतुब मीनार मूल रूप से एक ‘विष्णु स्तंभ’ था और आगाह किया कि परिसर में संरचनाओं के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप 1993 में यूनेस्को द्वारा मिला विश्व धरोहर का दर्जा रद्द कर दिया जाएगा.

वर्ष 1890 के आसपास कुतुब मीनार. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Clifton & Co – Leiden University Library, KITLV)

नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बीआर मणि ने सोमवार को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के इस दावे को ‘कपोल कल्पना’ करार दिया कि कुतुब मीनार मूल रूप से एक ‘विष्णु स्तंभ’ था और आगाह किया कि परिसर में संरचनाओं के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप 1993 में यूनेस्को द्वारा मिला विश्व धरोहर का दर्जा रद्द कर दिया जाएगा.

हालांकि, मणि ने कहा कि यह एक तथ्य है कि 27 हिंदू मंदिरों को उस जगह पर ध्वस्त कर दिया गया था और उनके अवशेषों का इस्तेमाल कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद और कुतुब मीनार के निर्माण में भी किया गया था, लेकिन इन मंदिरों के पुनर्निर्माण की मांग ‘बेमानी’ है. स्थल पर इन मंदिरों के स्थान का कोई निशान नहीं है.

विश्व हिंदू परिषद ने शनिवार को मांग की कि सरकार कुतुब मीनार परिसर में सभी 27 हिंदू मंदिरों का पुनर्निर्माण कराए और हिंदू अनुष्ठानों को फिर से शुरू करने की अनुमति दे.

विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने यह भी दावा किया कि 73 मीटर ऊंची कुतुब मीनार मूल रूप से एक हिंदू शासक के समय में निर्मित भगवान विष्णु के मंदिर पर एक ‘विष्णु स्तंभ’ था.

विहिप के दावे के बारे में पूछे जाने पर मणि ने कहा, ‘मैं भी यह मानता हूं कि 27 मंदिर थे. इसके समर्थन में सबूत हैं. इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है. लेकिन कोई नहीं जानता कि वे 27 मंदिर कहां स्थित थे, उनका स्वरूप क्या था, संरचना क्या थी.’

तीन दशकों से अधिक समय से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से जुड़े रहे मणि वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सोसायटी के उपाध्यक्ष हैं, जो पुरातत्व के बारे में सभी पहलुओं में ज्ञान को बढ़ावा देता है और उसका प्रसार करता है.

मणि ने कहा कि यह कुतुबुद्दीन ऐबक के शिलालेख पर लिखा है कि कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण स्थल पर ध्वस्त किए गए 27 मंदिरों के मलबे का उपयोग करके किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘मंदिरों के अवशेष पूरे स्थल पर फैले हुए हैं, लेकिन वहां कोई ऊंचाई वाला मंच, चबूतरा या कोई अन्य चीज नहीं मिली जो उन मंदिरों के स्थान का पता लगाने में मदद कर सके. अधिष्ठान (आधार मंच) जैसा कुछ मिलना चाहिए था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, मणि ने कहा, ‘उन्होंने (मुस्लिम शासकों ने) आक्रमण के समय सब कुछ नष्ट कर दिया था. उसके बाद हिंदू मंदिरों के मलबे का उपयोग करके कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण किया और उस पर मीनार खड़ी कर दी. इसलिए उनके पुनर्निर्माण का कोई अर्थ नहीं है.’

मणि ने एएसआई में अपनी 31 साल की लंबी सेवा के दौरान अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल सहित भारत में 20 पुरातात्विक उत्खनन का निर्देश दिया था.

विहिप के इस दावे को खारिज करते हुए कि कुतुब मीनार मूल रूप से विष्णु मंदिर पर बना एक ‘विष्णु स्तम्भ’ था, मणि ने कहा कि 1967 में स्मारक की नींव को मजबूत करने के लिए मौके पर 20-25 फुट गहरी खुदाई की गई थी, लेकिन किसी भी मंदिर का कोई निशान नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘यह केवल कल्पना है. वहां कुछ भी नहीं था, वहां कोई मंदिर नहीं मिला.’ उन्होंने कहा कि ‘विष्णु स्तम्भ’ पहले से ही एक लोहे के स्तंभ के रूप में स्थल पर खड़ा है.

उन्होंने कहा कि मध्य एशिया में इसी अवधि की कई तरह की मीनारें हैं, जिन्हें कोई भी देख सकता है.

उन्होंने कहा, ‘मीनार पर कोई संदेह करना उचित नहीं है. लोगों ने इसका बहुत अच्छा अध्ययन किया है. अगर इसे अलग धारणा देने की कोई कोशिश की जाती है तो यह सही नहीं है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)