हफ़्ते में एक बार पारंपरिक परिधान पहनें कर्मचारी: त्रिपुरा जनजातीय परिषद

कर्मचारियों को सप्ताह में एक बार स्वदेशी पारंपरिक कपड़े पहनने की अपील संबंधी त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद की अधिसूचना पर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. भाजपा ने इस फैसले का विरोध करते हुए पूछा कि ऐसे कर्मचारी जो त्रिपुरा के बाहर के हैं वे क्या करेंगे. परंपरा, संस्कृति और भाषा को थोपा नहीं जाना चाहिए.

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त्रिपुरा के परिधान में युवतियां. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया/Bijayan Tripura)

कर्मचारियों को सप्ताह में एक बार स्वदेशी पारंपरिक कपड़े पहनने की अपील संबंधी त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद की अधिसूचना पर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. भाजपा ने इस फैसले का विरोध करते हुए पूछा कि ऐसे कर्मचारी जो त्रिपुरा के बाहर के हैं वे क्या करेंगे. परंपरा, संस्कृति और भाषा को थोपा नहीं जाना चाहिए.

त्रिपुरा के परिधान में युवतियां. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया/Bijayan Tripura)

अगरतला: त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) ने अपने कर्मचारियों को सप्ताह में एक बार पारंपरिक पोशाक पहनने को कहा है. परिषद के इस बयान के बाद राजनीतिक बहस छिड़ गई है.

अधिकारियों के मुताबिक, टिपरा मोथा द्वारा संचालित टीटीएएडीसी की कार्यकारी समिति ने प्रत्येक सोमवार को पारंपरिक पोशाक पहनने की शुरुआत करने का फैसला किया है.

अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुबल देबबर्मा द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया, ‘टीटीएएडीसी के सभी कर्मचारियों से इस सुझाव का अनुपालन करने का अनुरोध किया जाता है.’

पारंपरिक पोशाक पहनने का यह नियम मुख्य कार्यकारी सदस्य (सीईएम), अध्यक्ष, कार्यकारी सदस्यों (ईएम) और जिला परिषद सदस्य (एमडीसी) के सदस्यों पर भी लागू होगा. टीटीएएडीसी में करीब छह हजार कर्मचारी कार्यरत हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की​ रिपोर्ट के अनुसार, इस कदम को त्रिपुरा में रहने वाले 19 आदिवासी समुदायों की पारंपरिक जड़ों का सम्मान करने के संकेत के रूप में आगे बढ़ाया गया है, जिनमें से अधिकांश आदिवासी परिषद के अधिकार क्षेत्र में रहते हैं.

टीटीएएडीसी में सत्तारूढ़ टिपरा मोथा प्रमुख और शाही वंशज प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने कहा कि यह आदेश एक अपील अधिक है और यह किसी भी तरह से थोपना नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘हमारी स्वदेशी संस्कृति को उजागर करना महत्वपूर्ण है और दान घर से शुरू होता है. हमें स्वाभिमान और गर्व के साथ जागरूकता पैदा करके अपनी संस्कृति का सम्मान करना शुरू करना होगा.’

एडीसी में वर्तमान में लगभग छह हजार कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें से कई राज्य सरकार के कर्मचारी हैं, जिन्हें एडीसी क्षेत्रों में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया है.

उत्तर पूर्वी राज्यों में हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की हालिया टिप्पणियों पर प्रद्योत ने कहा कि वह इस कदम का स्वागत करते हैं, जब तक कि यह त्रिपुरी जनजातियों के बहुमत की भाषा ‘कोकबोरोक’ को परेशान नहीं करता है.

इस बीच, कर्मचारियों को सप्ताह में एक बार स्वदेशी पारंपरिक कपड़े पहनने की अधिसूचना को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस फैसले का विरोध करते हुए पूछा कि ऐसे कर्मचारी जो त्रिपुरा के बाहर के हैं वे क्या करेंगे.

भाजपा के एमडीसी बिमल चकमा ने कहा, ‘जनजातीय परिषद में लगभग 10-15 प्रतिशत कर्मचारी हैं, जो त्रिपुरा के बाहर के हैं. यदि टीटीएएडीसी के कर्मचारियों को पारंपरिक पोशाक पहनने के लिए मजबूर किया जाता है तो ऐसे कर्मचारी क्या पहनेंगे जो मूल रूप से त्रिपुरा के नहीं हैं? परंपरा, संस्कृति और भाषा को थोपा नहीं जाना चाहिए.’

भाजपा नेता नबेंदु भट्टाचार्य ने त्रिपुरा में आदिवासियों के बीच काम करने वाले विभिन्न मिशनरियों के परोक्ष संदर्भ में कहा, ‘हम जनजातियों (आदिवासी) की संस्कृति और पहचान की रक्षा के पक्ष में हैं. हमारी पार्टी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रीसा (हाथ से बुने हुए स्टोल) को लोकप्रिय बनाने वाली पहली पार्टी थी, लेकिन टिपरा मोथा की आंतरिक शक्ति शुरू से ही भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के पक्ष में रही है. विदेशी संस्कृति उन्हें ताकत दे रही है, जो लोग भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश करते हैं, वे टिपरा मोथा में शामिल हैं.’

भाजपा नेता ने यह भी आरोप लगाया कि आदिवासी बस्तियों में उम्मीद के मुताबिक विकास नहीं हुआ है. टिपरा मोथा प्रमुख के आरोपों कि भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पिछले साल सत्ता में आने के बाद से आदिवासी परिषद को पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं करा रही है, का जवाब देते हुए कि नबेंदु ने कहा, ‘ये आरोप अपनी विफलता को छिपाने के प्रयास हैं. वे अच्छा प्रशासन देने में विफल रहे हैं.’

टीटीएएडीसी के पूर्व मुख्य कार्यकारी सदस्य (सीईएम) और सीपीआई (एम) के वरिष्ठ नेता राधा चरण देबबर्मा ने कहा कि आदिवासी परिषद को आदिवासियों को आर्थिक रूप से समर्थन देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, विशेष रूप से झूम या शिफ्टिंग खेती पर निर्भर लोगों को, क्योंकि गरिया जैसे त्योहार आने वाले हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि मनरेगा के तहत अकुशल मजदूरी रोजगार आदिवासी क्षेत्रों में कम हो गया है और एडीसी को कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड पेश करने के बजाय गरीब आदिवासियों की मदद करनी चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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