जम्मू कश्मीर: जानलेवा हमलों के बीच प्रवासी मज़दूर छोड़ रहे हैं घाटी

दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा में 19 मार्च से 7 अप्रैल के बीच 5 बार प्रवासी मज़दूरों पर जानलेवा हमले हो चुके हैं. हमलावरों के बारे में पुलिस को कोई सुराग नहीं है. डर और दहशत में प्रवासी मज़दूर पुलवामा छोड़कर घाटी के अन्य इलाकों का रुख कर रहे हैं या फिर अपने-अपने घर लौट रहे हैं.

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Jammu: Panic-stricken migrant labourers arrive from Kashmir, in Jammu, Monday, Oct. 18, 2021. Four migrant labourers were shot dead in the valley by the terrorists in the past two days. (PTI Photo) (PTI10 18 2021 000041B)

दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा में 19 मार्च से 7 अप्रैल के बीच 5 बार प्रवासी मज़दूरों पर जानलेवा हमले हो चुके हैं. हमलावरों के बारे में पुलिस को कोई सुराग नहीं है. डर और दहशत में प्रवासी मज़दूर पुलवामा छोड़कर घाटी के अन्य इलाकों का रुख कर रहे हैं या फिर अपने-अपने घर लौट रहे हैं.

बीते अक्तूबर में भी जानलेवा हमलों के बाद प्रवासी मजदूर घाटी छोड़ने लगे थे. (फाइल फोटो: पीटीआई)

पुलवामा: पिछले 20 दिनों में कश्मीर में सात प्रवासी मजदूरों को गोली मारकर घायल कर दिया गया है. सारे हमले दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले में हो रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने संदेहियों को खोजने में कोई सफलता हासिल नहीं की है.

इसी डर और अनिश्चिचता के साये में कई प्रवासी मजदूर अपने गृह नगरों या घाटी के अन्य हिस्सों की ओर रुख कर रहे हैं.

पांच महीने पहले अक्टूबर माह में भी गैर-स्थानीय लोगों पर इसी तरह के हमले हुए थे, जिनमें पांच लोग मारे गए थे. इस बार हमलावर किसी की हत्या नहीं कर रहे हैं, बल्कि शरीर के अंगों को निशाना बना रहे हैं, लेकिन दैनिक वेतनभोगी जो कि काम खोने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, उनके लिए यह राहत की बात है.

गोलीबारी के ताजा क्रम में पहला हमला 19 मार्च को हुआ था, जब संदिग्ध आतंकवादियों ने उत्तर प्रदेश के एक बढ़ई मोहम्मद अकरम को गोली मार दी. आखिरी बार 7 अप्रैल को पंजाब के पठानकोट के एक मजदूर सोनू शर्मा पर पुलवामा के यादेर गांव में हमला किया गया था.

21 मार्च को बिहार के एक मजदूर बिस्वजीत कुमार को घायल किया गया, जबकि 3 अप्रैल को संदिग्ध आतंकियों ने पठानकोट के एक ड्राइवर और कंड़क्टर सुरिंदर और धीरज दत्त को गोली मार दी थी.

4 अप्रैल को बिहार के दो मजदूरों पाटलाश्वर कुमार और जक्कू चौधरी पर हमला हुआ था.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘वर्तमान में पुलवामा में करीब 6000-6,500 प्रवासी कामगार होंगे. यह (काम के) सीजन की शुरुआत है, लेकिन फिर संख्या बहुत कम है. एक सामान्य सीजन में इस समय हमारे यहां 20,000-30,000 प्रवासी कामगार होते हैं.

आधिकारिक अनुमान के मुताबिक, करीब तीन लाख प्रवासी मजदूर काम के सिलसिले में हर साल कश्मीर आते हैं. जिनमें ज्यादातर बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और झारखंड के होते हैं.

बिहार से आने वाले मजदूर कश्मीर को ‘भारत का दुबई’ बताते हैं, क्योंकि वे अपने घर की तुलना में घाटी में बेहतर मजदूरी पाते हैं. वहां उन्हें रोजना 200 रुपये मिलते हैं, जिसकी तुलना में यहां उन्हें 500-700 रुपये के बीच मिल जाते हैं.

कुछ पूरे साल के लिए आते हैं, तो कुछ यहां गर्म समय में मार्च से नवंबर माह के बीच आते हैं. वे ज्यादातर निर्माण क्षेत्र में काम करते हैं.

अगस्त 2019 में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद प्रवासी मजदूर आंतकियों के निशाने पर आ गए थे.

दक्षिण कश्मीर में आतंकवाद प्रभावित शोपियां में हमलों की एक श्रृंखला चली थी, जिसके बाद पिछले साल अक्टूबर में श्रीनगर और अन्य हिस्सों में हमले हुए.

हालिया हमले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के संसद में यह बताने के बाद होने शुरू हुए हैं कि जम्मू कश्मीर से बाहर के 30 लोगों ने इस केंद्रशासित प्रदेश में अचल संपत्ति खरीदी है, जो कि घाटी के लिए एक अहम मुद्दा है.

भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दलों ने हमलों की निंदा करके बयान तो जारी किए हैं, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल प्रवासी मजदूरों से मिला नहीं है.

पुलवामा हमलों के पीछे कौन हो सकता है, इस बारे में पुलिस खुद मानती है कि अब उन्हें भी इसका कोई सुराग नहीं है.

एक पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘चश्मदीदों के हवाले से हम सिर्फ इतना ही जानते हैं कि ये पिस्तौलधारी नकाबपोश लड़के हैं जो गोलीबारी कर रहे हैं. हमने पुलवामा से 50 से अधिक लड़कों को उठाया है, लेकिन हमें अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है.’

हमलावर अपने शिकारों को घातक चोट नहीं पहुंचा रहे हैं, इस पर पुलिस का मानना है कि उनका उद्देश्य शांति भंग करना और भय पैदा करना है.

हमलों के बाद पुलिस ने विशेष तौर पर रात में गस्त तेज कर दी है.

बिहार से आए एक प्रवासी मजदूर धीरज कुमार कहते हैं, ‘मुझे पता है कि वे (आतंकवादी) कश्मीर से बाहर के लोगों को निशाना बना रहे हैं. लेकिन हम क्या कर सकते हैं? अगर मैं यहां काम नहीं करता हूं, तो घर पर अपने परिवार को क्या खिलाऊंगा? मैं सिर्फ सावधानी बरत रहा हूं और उम्मीद करता हूं कि कुछ नहीं होगा.’

धीरज पुलवामा में 8 अन्य मजदूरों साथ रहते हैं. वे बताते हैं कि उन्होंने अंधेरा होने के बाद बाहर निकलना बंद कर दिया है. वे कहते हैं, ‘पुलिस ने हमें सुरक्षा का आश्वासन दिया है.’

लेकिन पंजाब के गुरदासपुर के टिंकू सिंह कोई जोखिम लेना नहीं चाहते हैं. वे सिर्फ पांच दिन में ही पुलवामा छोड़कर श्रीनगर चले गए. सिंह बताते हैं कि पुलवामा में वर्षों से रहने के कारण काम के लिए मेरे पास बहुत संपर्क हैं, लेकिन श्रीनगर में मुझे शून्य से शुरुआत करनी होगी.

हालांकि, वे कहते हैं, ‘वहां डर बहुत है. आपको नहीं पता कि कौन और कब आपको मार दे.’

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