खरगोन हिंसा: पीएम आवास योजना के तहत बना मकान तोड़ने के बाद सरकार परिवार का पुनर्वास करेगी

मध्य प्रदेश के खरगोन शहर में रामनवमी पर हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद ज़िला प्रशासन द्वारा कई घरों और दुकानों को गिराने की कार्रवाई की गई थी. इसमें हसीना फ़ख़रू का भी मकान अवैध बताकर बुलडोज़र से ढहा दिया गया था, जबकि उनके पास उपलब्ध दस्तावेज़ बताते हैं कि वह मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत स्वीकृत था.

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मध्य प्रदेश के खरगोन में कथित आरोपियों के घरों को 'अवैध निर्माण' बताते हुए हुई कार्रवाई. (फोटो साभार: ट्विटर)

मध्य प्रदेश के खरगोन शहर में रामनवमी पर हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद ज़िला प्रशासन द्वारा कई घरों और दुकानों को गिराने की कार्रवाई की गई थी. इसमें हसीना फ़ख़रू का भी मकान अवैध बताकर बुलडोज़र से ढहा दिया गया था, जबकि उनके पास उपलब्ध दस्तावेज़ बताते हैं कि वह मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत स्वीकृत था.

मध्य प्रदेश में रामनवमी पर हुई हिंसा के आरोपियों के कथित अवैध निर्माण गिराने के दौरान की एक तस्वीर.

खरगोन: मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी के दिन हुई हिंसा के बाद जिला प्रशासन द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बना हसीना फखरू का मकान ढहाए जाने के कुछ दिनों बाद ही सरकार ने परिवार से संपर्क किया और उसे राशन उपलब्ध कराया व उनके पुनर्वास के विकल्पों को खंगाला.

बता दें कि खरगोन के खसखसबाड़ी इलाके में 60 वर्षीय हसीना का मकान था, जो रामनवमी पर निकले जुलूस के दौरान हुई सांप्रदायिक झड़प के अगले ही दिन आरोपियों के अवैध निर्माण बताकर ढहाए गए 12 मकानों में से एक था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, शनिवार (16 अप्रैल) दोपहर जिला प्रशासन और नगर निगम के अधिकारी हसीना और उनके परिवार से मिलने पहुंचे. जिन्होंने पास ही स्थित एक सुनसान मस्जिद में शरण ले रखी है. उन्हें राशन उपलब्ध कराने के बाद, अधिकारियों ने परिवार के सदस्यों के अंगूठे के निशान लिए और सूचित किया कि उन्हें रहने के लिए मल्टीप्लेक्स में भेजा जाएगा.

हसीना के बेटे अमजद खान ने बताया, ‘उन्होंने (अधिकारियों ने) पहले हमें बताया कि वे हमें मल्टीप्लेक्स में शिफ्ट करेंगे, लेकिन वह इमारत एक सांप्रदायिक इलाके में है, इसलिए हमने जाने से इनकार कर दिया. फिर टीम ने हमसे पूछा कि हमारा पुराना मकान कहां था. हमने उन्हें बताया कि हम खसखसबाड़ी में तीन दशकों से रह रहे थे, लेकिन वे फिर भी स्थानीय लोगों के साथ अलग-अलग इलाकों में हमारे घर की तलाश कर रहे हैं.’

खरगोन जिला कलेक्टर अनुग्रहा पी ने अखबरा को बताया, ‘सरकार परिवार का पुनर्वास करेगी.’

बहरहाल, कार्रवाई के दौरान जिला प्रशासन का कहना था कि हसीना फखरू का परिवार जिस जमीन पर रह रह रहा था वह राजस्व विभाग की थी, लेकिन अमजद खान ने 2017-18 से भरे जा रहे संपत्ति कर की रसीद और बिजली के बिल दिखाए, जिनके आधार पर उनके पिता फखरू पठान ने पीएम आवास योजना के तहत लाभांवित होने के लिए आवेदन दिया था. उन्होंने बताया था कि खसखसबाड़ी में जमीन के उस टुकड़े पर उनका परिवार तीन दशकों से कच्चे मकान में रह रहा था.

फखरू पठान की सितंबर 2020 में मौत हो गई, जिसके बाद मकान हसीना के नाम हो गया. योजना के तहत एक लाख रुपये की पहली किश्त हसीना के बैंक खाते में 28 अक्टूबर 2020 को आई थी.

अमजद खान के मुताबिक, वे इस दौरान ज़मीन पर एक अस्थायी झोपड़ी बनाकर रहने लगे और कच्चे मकान की जगह अपना पक्का मकान बनाना शुरू कर दिया.

उन्होंने बताया, ‘हमें एक लख रुपये की दूसरी किश्त 31 मार्च 2021 को मिली. हमने हमारी बचत के एक लाख रूपये भी निर्माण में लगाए. हमें 50,000 रुपये की आखिरी किश्त 4 अप्रैल 2022 को मिली.’

पीएम आवास योजना के तहत निर्माण पूरा होने के तुरंत बाद हसीना फखरू को 17 सितंबर 2021 को खरगोन तहसीलदार से एक नोटिस मिला, जिसमें कहा गया था कि भूखंड सरकारी जमीन पर है.

उनसे 29 सितंबर तक स्पष्टीकरण पेश करने के लिए कहा गया, जिसमें कहा गया कि उनके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई हो सकती है और उन्हें ज़मीन से बेदखल किया जा सकता है.

अमजद ने बताया, ‘हम 29 सितंबर को तहसीलदार के ऑफिस गए, उन्होंने हमें सारे दिन बैठाए रखा, और एक और तारीख दे दी. हम दिहाड़ी मजदूर हैं और सारा दिन सरकारी कार्यालयों में नहीं बैठे रह सकते हैं, लेकिन हम फिर भी वहां जाते रहे.’

उनकी मां की ओर से तहसीलदार कार्यालय में पेश किए गए जवाब के हवाले से अमजद ने कहा, ‘महिला (हसीना) विधवा है. उनके पास इसके अलावा कोई और भूखंड नहीं है. अगर जरूरत हो तो इसकी जांच करके पुष्टि की जा सकती है. हम न्याय की गुहार लगाते हैं.’

इस बीच, अमजद खान को निगम के अधिकारियों का फोन आया कि वे आकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा जारी वह प्रमाण-पत्र ले जाएं, जिसमें मुख्यमंत्री ने उनके परिवार को पीएम आवास योजना के तहत मकान बनाने पर बधाई दी है.

इस दौरान, हसीना के बैंक खाते में 4 अप्रैल 2022 को योजना के तहत तीसरी और आखिरी किश्त डाली गई, तीन दिन बाद ही उन्हें 7 अप्रैल को नोटिस भी मिल गया कि उनका मकान अतिक्रमण की हुई ज़मीन पर बनाया गया है, इसलिए खाली करें. इसमें उनसे तीन दिन में जवाब पेश करने के लिए कहा गया या फिर मकान गिराए जाने का सामना करने के लिए.

अमजद ने कहा, ‘हमने 9 अप्रैल को अपना जवाब तैयार कर लिया था, लेकिन इस दिन शनिवार था तो हम इसे तहसीलदार के कार्यालय में पेश नहीं कर सके. 10 अप्रैल को शहर में कर्फ्यू (सांप्रदायिक झड़प के चलते) लगा दिया गया और हम बाहर नहीं निकल सके. अगले दिन, अधिकारियों की एक टीम आ गई और बुलडोजर से हमारा मकान गिरा दिया. ‘

पांच बेटों और दो बेटियों की मां हसीना कहती हैं, ‘मेरी शादीशुदा बेटी के पास घर है, लेकिन यह हम सबके लिए बहुत छोटा है. तब हमारे समुदाय के लोग हमारी मदद के लिए आगे आए. अकरम भाई ने हमें इस बाड़े में रहने के लिए जगह दी.’

अकरम खान कहते हैं कि यह मायने नहीं रखता कि जरूरतमंद अमजद है या अक्षय, मैंने मानवता के नाते अपने घर के दरवाजे उनके लिए खोल दिए, जब तक कि वे कहीं और रहने के लिए छत नहीं ढूंढ़ लेते.

अकरम खान की गोशाला में पुलिस के साथ जिलाधिकारियों की एक टीम हसीना के परिवार से मिली और फोटो लिए व वीडियो बनाए.

हसीना कहती हैं, ‘उन्होंने हमसे पूछा कि क्या हम धर्मशाला में शिफ्ट होना चाहेंगे जहां हमें खाना मिलेगा, लेकिन हमने इनकार कर दिया. हमने उन्हें बताया कि हम कहीं नहीं जाना चाहते हैं और अपनी सुरक्षा व जीवन को लेकर चिंतित हैं. हमारे सिर पर एक छत हमारे समुदाय द्वारा दी गई है और हम यहां रह रहे हैं.’

हिंसा के बाद चुनिंदा तोड़-फोड़ अभियान के खिलाफ उच्च न्यायालय जाएगा मुस्लिम समुदाय

इस बीच, खरगोन और कुछ अन्य स्थानों पर 10 अप्रैल को रामनवमी पर हुई हिंसा में शामिल आरोपियों के ठिकानों को ध्वस्त करने के लिए चलाए जा रहे मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सरकार के तोड़-फोड़ अभियान के खिलाफ मुस्लिम समुदाय के कुछ सदस्यों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है.

एक मौलवी ने कहा कि तोड़-फोड़ अभियान ने कई लोगों को बेघर कर दिया है. उन्होंने राज्य सरकार से पूछा कि आखिर कथित तौर पर दंगों में शामिल लोगों के परिवार के सदस्यों को क्यों दंडित किया जा रहा है? राज्य सरकार ने रामनवमी के जुलूस के दौरान पथराव और अन्य तरह की हिंसा में शामिल लोगों की कथित रूप से ‘अवैध’ संपत्ति को तोड़ने-फोड़ने का अभियान शुरू किया है.

राज्य के कई मुस्लिम धार्मिक नेता पहले आरोप लगा चुके हैं कि हिंसा के बाद अधिकारियों द्वारा समुदाय के सदस्यों को गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है और कुछ मामलों में बिना उचित प्रक्रिया के मकानों को तोड़ा-फोड़ा जा रहा है.

भोपाल शहर के काजी सैयद मुश्ताक अली नदवी ने शनिवार को पीटीआई-भाषा से कहा, ‘मैंने अपने समुदाय के अधिवक्ताओं से राज्य में चल रहे चयनात्मक तोड़-फोड़ अभियान के खिलाफ उच्च न्यायालय में जाने के लिए कहा है. हम निश्चित तौर पर इस एकतरफा अभियान के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख करने जा रहे हैं.’

खरगोन में अब तक मुसलमानों के कितने मकान तोड़े जा चुके हैं, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि कर्फ्यू हटने के बाद ही यह पता चल सकेगा. मौलवी ने कहा, ‘समाज कानून से चलता है. अपराध करने वाले को सजा मिलनी चाहिए, उसके परिवार को नहीं. अगर परिवार का एक सदस्य कुछ गलती करता है तो मकानों को क्यों तोड़ा जा रहा है.’ उन्होंने कहा कि इस अभियान के कारण कई परिवार बेघर हो गए हैं.

इससे पहले गुरूवार को नदवी ने कहा था, ‘हमने भोपाल में (मस्जिदों में) सीसीटीवी कैमरे लगाना शुरू कर दिया है. मैंने मौलवियों से पूरे मध्य प्रदेश में ऐसा ही करने का अनुरोध किया है. सीसीटीवी कैमरे पत्थर फेंकने वालों पर नकेल कसेंगे.’ नदवी ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज से पता लग सकेगा कि ऐसी घटनाओं के दौरान पत्थर कहां से फेंके गए. उन्होंने यह भी कहा कि खरगोन में कथित तौर पर हिंसा में शामिल लोगों के अवैध निर्माणों को गिराना पूरी तरह गलत है.

बता दें कि इस सप्ताह की शुरुआत में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चेतावनी दी थी कि उनकी सरकार दंगों में लिप्त पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को हीं बख्शेगी. उन्होंने खरगोन हिंसा में कथित रूप से शामिल लोगों से संबंधित अवैध मकानों को गिराने की कार्रवाई को भी उचित ठहराया.

गौरतलब है कि रविवार 10 अप्रैल को खरगोन में रामनवमी के जुलूस पर पथराव के बाद आगजनी और हिंसा की घटनाएं हुई थी, जिसके बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)