दो साल से लापता बीएचयू छात्र को खोजता रहा परिवार, पुलिस ने लावारिस में कर दिया था अंतिम संस्कार

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र शिव कुमार त्रिवेदी 13 फरवरी 2020 से लापता थे. उसी रात उन्हें आखिरी बार एक पुलिस थाने में देखा गया था. तीन दिन बाद एक अन्य थाना क्षेत्र की झील में एक लावारिस शव मिला, जिसका पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया. पिता ने जब छात्र के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई तो पुलिस ने महीनों तक कोई कार्रवाई नहीं की. हाईकोर्ट के आदेश पर अपराध शाखा ने जांच की, तब पिता को बेटे की मौत की जानकारी मिली.

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(फोटो साभार: ट्विटर/यूपी पुलिस)

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र शिव कुमार त्रिवेदी 13 फरवरी 2020 से लापता थे. उसी रात उन्हें आखिरी बार एक पुलिस थाने में देखा गया था. तीन दिन बाद एक अन्य थाना क्षेत्र की झील में एक लावारिस शव मिला, जिसका पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया. पिता ने जब छात्र के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई तो पुलिस ने महीनों तक कोई कार्रवाई नहीं की. हाईकोर्ट के आदेश पर अपराध शाखा ने जांच की, तब पिता को बेटे की मौत की जानकारी मिली.

(फोटो साभार: ट्विटर/यूपी पुलिस)

वाराणसी: मध्य प्रदेश के रहने वाले 24 वर्षीय शिव कुमार त्रिवेदी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र थे, जो 13 फरवरी 2020 से लापता थे. आखिरी बार उन्हें इसी दिन शहर के लंका पुलिस थाने में देखा गया था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अब दो साल बाद उत्तर प्रदेश पुलिस की अपराध शाखा केंद्रीय जांच विभाग (सीबी-सीआईडी) की जांच में सामने आया है कि उस समय स्थानीय पुलिस द्वारा एक शव का अंतिम संस्कार किया गया था, वह शव शिव कुमार का ही था.

शिव कुमार, बीएचयू में बीएससी द्वितीय वर्ष के छात्र थे. शव की पहचान डीएनए टेस्ट के बाद हुई.

शव उसी साल 15 फरवरी को वाराणसी के रामनगर पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में एक झील में मिला था, जबकि अगले दिन ही पीड़ित के पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी ने उनके (शिव कुमार) लापता होने की शिकायत दर्ज कराई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, मौत का कारण डूबना बताया गया है.

20 अगस्त 2020 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस छात्र के लापता होने के संबंध में एक पत्र-याचिका का संज्ञान लिया.

नवंबर में हाईकोर्ट ने जांच सीबी-सीआईडी को सौंप दी थी. सीबी-सीआईडी ने अपनी जांच में पाया कि युवक का शव लंका पुलिस थाने से 5 किलोमीटर दूर एक झील में मिला था और उनका लावारिस शव के तौर पर अंतिम संस्कार किया गया था.

शिव कुमार के गायब होने के बाद उनके पिता ने दावा किया था कि पुलिस ने उन्हें इस संबंध में सूचित नहीं किया था कि गायब होने वाली रात उनका बेटा पुलिस थाने लाया गया था.

यह पता चला है कि एक कॉल आने के बाद शिव कुमार को थाने लाया गया था. प्रदीप का कहना है कि युवक को बीएचयू के एम्फीथिएटर ग्राउंड से कुछ पुलिसकर्मियों ने उठाया और थाने ले जाया गया.

हाईकोर्ट में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सरकारी वकील (एजीए) सैयद अली मुर्तजा ने शुक्रवार को कहा, ‘स्थानीय पुलिस के जांच अधिकारी ने एक झील में मिले लावारिस शव की अनदेखी की थी. लेकिन, सीबीसीआईडी ने दांतों और शरीर से निकाले गए बालों का डीएनए टेस्ट कराया. पिता के ख़ून के नमूने (ब्लड सैंपल) से डीएनए का मिलान हुआ.’

मामले में अगली तारीख 14 जुलाई लगी है.

सरकारी वकील ने कहा, ‘लापता होने वाले दिन एक कॉल आने के बाद छात्र को लंका पुलिस थाने लाया गया था. थाने में उसे खाना दिया गया और उसे वहीं रहने के लिए कहा गया. लेकिन, चूंकि उसकी मानसिक स्थिति स्थिर नहीं थी, वह बिना किसी को बताए वहां से चला गया. पुलिस प्रताड़ना का कोई मामला नहीं है.’

लापता छात्र के परिवार की पैरवी करने वाले वकील सौरभ तिवारी ने बताया कि उन्होंने मामले में पुलिस की जांच में चूक के बारे में कई सवाल उठाए हैं और अदालत ने उन्हें दावों के समर्थन में दस्तावेज जमा करने को कहा है.

वे कहते हैं, ‘मैंने अदालत को अवगत कराया कि कैसे छात्र संदिग्ध परिस्थितियों में पुलिस की हिरासत से गायब हो गया. साथ ही जजों को बताया कि इस दौरान पुलिस छात्र की खोजबीन के लिए दूसरे राज्यों में गई, लेकिन उन्होंने लावारिस शवों के लिए आस-पास के ही पुलिस थानों में नहीं देखा. पुलिस थाने में तीन सीसीटीवी कैमरे काम कर रहे थे, लेकिन पीड़ित के पिता को बताया गया कि उस दिन कोई भी कैमरा काम नहीं कर रहा था.’

वकीन ने कहा, ‘जब उन्होंने वाराणसी पुलिस आयुक्तालय में आरटीआई का आवेदन दिया, तो उन्हें बताया गया कि जिस दिन छात्र लापता हुआ था, तीनों कैमरे काम कर रहे थे.’

वे आगे कहते हैं, ‘सीसीटीवी फुटेज को जांच का हिस्सा नहीं बनाया गया. सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि लापता होने की शिकायत पर स्थानीय पुलिस थाने द्वारा छह महीने तक जांच नहीं की गई. मैंने इन सभी सवालों को कोर्ट में उठाया. अदालत ने कहा कि यह गंभीर मसला है.’

दो साल पहले क्या हुआ था

हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार, परिवार के मुताबिक दो साल पहले यानी 2020 में 13-14 फरवरी की रात बीएचयू में बीएससी की पढ़ाई कर रहे छात्र शिव कुमार त्रिवेदी अपने हॉस्‍टल से कैंपस में टहलने निकले. वह वहां कहीं बैठ गए. उसी दौरान एमएससी में पढ़ने वाले एक छात्र अर्जुन और उनके कुछ साथियों को लगा कि शायद कोई नशा करके कैंपस में बैठा है. उसने डॉयल-112 पर फोन करके पुलिस को इसकी जानकारी दे दी.

बताया जाता है कि थोड़ी देर बाद (लंका) पुलिस आई और शिव को वहां से ले गई. पुलिस को फोन करने वाले छात्र का कहना है कि उस समय कॉलेज बंद था और हॉस्‍टल में बच्‍चे नहीं थे इसीलिए उन्‍हें लगा कि कोई नशा करके बैठा है. उधर, इस घटना के बाद शिव लापता हो गए. न हॉस्‍टल लौटे न परिवार से कोई संपर्क हुआ. शिव का परिवार मध्‍य प्रदेश के पन्‍ना जिले बरगढ़ी खुर्द इलाके ब्रजपुर गांव में रहता है.

इस घटना के बाद उनके परिवार द्वारा उनकी खोज का सि​लसिला शुरू जो कथित तौर पर वाराणसी पुलिस द्वारा सहयोग न किए जाने से काफी मुश्किलों भरा रहा.

गांव कनेक्शन की 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, लापता शिव के पिता प्रदीप त्रिवेदी वाराणसी जिले के लंका थाने के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें उनसे बहुत कम मदद मिली है.

एसएसपी के हस्तक्षेप के बाद लंका स्टेशन पर पुलिस ने उनके पिता को बताया था कि शिव को एक कमरे (हिरासत) में रखा गया था और अगली सुबह छोड़ दिया गया था. पुलिस ने बताया था कि उनके पास शिव को मानसिक रूप से बीमार पाए जाने के अलावा और कोई जानकारी नहीं है.

उनकी दुर्दशा ने अधिवक्ता सौरभ तिवारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को यह कहते हुए पत्र लिखने के लिए प्रेरित किया कि शिव को उठाकर लंका थाने ले जाया गया और तब से वह लापता हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, तिवारी खुद बीएचयू के पूर्व छात्र हैं. हाईकोर्ट की पीठ ने उनके पत्र को याचिका के रूप में माना. अदालत ने तब से सुनवाई के दौरान मामले का पूरा विवरण दाखिल नहीं करने के लिए पुलिस की आलोचना की थी.

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