कोर्ट ने उमर ख़ालिद के भाषण को ‘घृणित, नफ़रत से भरा’ बताया, पर असल में उन्होंने क्या कहा था

उमर ख़ालिद ने फरवरी 2020 में महाराष्ट्र के अमरावती में दिए गए भाषण में मोदी सरकार की आलोचना की थी, सीएए विरोधी आंदोलन का उल्लेख किया था और नफ़रत को प्यार से जीतने की बात कही थी.

उमर खालिद. (फोटो: द वायर)

उमर ख़ालिद ने फरवरी 2020 में महाराष्ट्र के अमरावती में दिए गए भाषण में मोदी सरकार की आलोचना की थी, सीएए विरोधी आंदोलन का उल्लेख किया था और नफ़रत को प्यार से जीतने की बात कही थी.

उमर खालिद. (फोटो: द वायर)

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के अमरावती में 2020 में दिए गए उमर खालिद के भाषण को ‘घृणित, नफरत से भरा हुआ, आपत्तिजनक और प्रथमदृष्टया अस्वीकार्य’ बताया है.

2020 में उमर खालिद ने अमरावती में दिए अपने भाषण में मोदी सरकार की आलोचना की थी, सीएए विरोधी आंदोलन का उल्लेख किया था और नफरत को प्यार से जीतने का हवाला दिया था.

रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सिद्धार्थ मुदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की पीठ ने इस भाषण की भाषा का उल्लेख किया, जो एफआईआर संख्या (59/2020) का हिस्सा है और जिसमें दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश थी.

खालिद ने निचली अदालत द्वारा उन्हें जमानत दिए जाने से इनकार करने के फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी. अदालत ने इस अपील पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस मामले पर 27 अप्रैल को सुनवाई होगी.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, खालिद की ओर से मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पायस ने यह स्पष्ट करने की मांग की कि नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध खालिद के भाषण का संदर्भ था और वह चुनावी लोकतंत्र और कानून की स्थिति को उजागर कर रहे थे.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘यह आक्रामक और घृणित है. आपको नहीं लगता कि इस तरह की अभिव्यक्ति लोगों को उकसाने वाली नहीं है. यह आपत्तिजनक है. यह लगभग ऐसा है, जैसे हमें यह आभास होता है कि केवल एक समुदाय ने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी.’

उल्लेखनीय है कि द वायर  ने इससे पहले अमरावती में उमर द्वारा दिए इस भाषण का विश्लेषण किया था.

इसके चुनिंदा हिस्से लेकर भाजपा नेताओं ने संसद, जनसभाओं और सोशल मीडिया पर यह दावा किया था कि खालिद ने सड़कों को अवरुद्ध करने का आह्वान किया.

असल में खालिद ने अपने भाषण में कहा था, ’24 फरवरी को जब डोनाल्ड ट्रंप (अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति) भारत आएंगे, हम यह बताएंगे कि प्रधानमंत्री और भारत सरकार देश को बांटने की कोशिश कर रही है, वे महात्मा गांधी के मूल्यों को नष्ट कर रहे हैं और भारत के लोग इन शासकों के खिलाफ लड़ रहे हैं. अगर शासक भारत को बांटना चाहते हैं तो भारत के लोग देश को एकजुट रखने के लिए काम करने को तैयार हैं. हम सड़कों पर निकलेंगे. क्या आप लोगों सड़कों पर निकलेंगे?’

खालिद के भाषण का एक विशेष हिस्सा निकालकर इसे एक वीडियो क्लिप में इस्तेमाल किया गया ताकि यह दावा किया जा सके कि उन्होंने (खालिद) हिंसा का आह्वान किया था.

खालिद ने अपने पूरे भाषण में महात्मा गांधी और उनके तरीकों का उल्लेख किया और सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों को जारी रखने की जरूरत के बारे में बताया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस मृदुल ने कथित तौर पर मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘क्या कभी गांधी जी ने इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया? क्या शहीद भगत सिंह ने कभी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया? हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन आप कह क्या रहे हैं? क्या यह आईपीसी की धारा 153ए या 153बी के तहत नहीं आता.’

जस्टिस मृदुल ने मौखिक तौर पर कहा, ‘हम कह सकते हैं कि प्रथमदृष्टया यह स्वीकार्य नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र के चारों स्तंभों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में बाकी सब कुछ स्वीकार्य हो सकता है लेकिन यह स्वीकार्य नहीं है.’

खालिद ने अपने भाषण में भाजपा सरकार की आलोचना करते हुए सांप्रदायिक हिंसा का उल्लेख किया, जिनमें या तो इस तरह की हिंसा को प्रोत्साहित किया गया या फिर इसके लिए अपराधी को कोई दंड नहीं मिला. इनमें गौरक्षकों द्वारा लिंचिंग भी शामिल है.

उन्होंने अयोध्या भूमि विवाद के फैसले का भी उल्लेख करते हुए बताया कि इसे हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की जीत के रूप में देखा गया, जिन्होंने 1992 में एक मस्जिद तोड़ दी थी. इसके साथ ही कश्मीर से अचानक अनुच्छेद 370 हटाने और उसके बाद वहां कोई प्रदर्शन नहीं होने देने का भी हवाला दिया.

उन्होंने कहा, ‘वे (सरकार) सत्ता के नशे में इतने डूब गए हैं कि उन्होंने सोचना शुरू कर दिया है कि भारत के लोग इतने डरे हुए हैं कि वे कभी विरोध नहीं करेंगे. आज, हमने उन्हें बताया कि हम पर इतना अत्याचार कर और हमें बार-बार डराकर आपने हमारे दिलों से डर को खत्म कर दिया है.’

खालिद ने इसी भाषण में शांति और सौहार्द बनाए रखने का भी बार-बार आह्वान किया था.

उन्होंने कहा, ‘हम हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देंगे. हम नफरत का जवाब नफरत से नहीं देंगे. अगर वे नफरत फैलाएंगे तो हम प्यार फैलाकर उसका जवाब देंगे. अगर वे हमें लाठियों से मारेंगे तो हम तिरंगा लहराएंगे. अगर वे गोलियां चलाएंगे तो हम संविधान हाथ में लेकर अपना हाथ उठाएंगे. अगर वे हमें जेल में डाल देंगे तो हम खुशी से ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ गाते हुए जेल जाएंगे लेकिन हम उन्हें हमारे देश को तबाह नहीं करने देंगे.’

उमर खालिद ने देश को नफरत से नहीं बंटने देने का भी संकल्प लिया.

उन्होंने कहा, ‘हम महात्मा गांधी की कसम खाते हैं कि अब आपको हराना हमारी जिम्मेदारी है. आप बेशक 2019 में सीएए लेकर आए लेकिन हम 2020 में सीएए को खत्म करने के लिए लड़ेंगे. हम इस देश को नहीं बंटने देंगे, फिर बेशक आप इसके बांटने की कितनी भी कोशिश कर लें.’

वरिष्ठ अधिवक्ता पायस ने कहा कि खालिद पर साजिश करने का आरोप लगाया गया है लेकिन वह उस समय शहर में नहीं थे.

बता दें कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उमर खालिद को सितंबर 2020 में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था. उनकी गिरफ्तारी दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में हुई थी.

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