मुंबईः कोर्ट ने कहा- लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन मौलिक अधिकार, पांच को बरी किया

साल 2015 में पानी की नियमित सप्लाई की मांग को लेकर कुछ महिलाएं मुंबई में प्रदर्शन कर रही थीं. इन्हें ट्रैफिक रोकने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया था. इनमें से दो वरिष्ठ नागरिक हैं. अदालत ने कहा कि पुलिस के पास इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं था.

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(इलस्ट्रेशनः परिप्लब चक्रबर्ती)

साल 2015 में पानी की नियमित सप्लाई की मांग को लेकर कुछ महिलाएं मुंबई में प्रदर्शन कर रही थीं. इन्हें ट्रैफिक रोकने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया था. इनमें से दो वरिष्ठ नागरिक हैं. अदालत ने कहा कि पुलिस के पास इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं था.

(इलस्ट्रेशनः परिप्लब चक्रबर्ती)

नई दिल्लीः लोकतंत्र में शांतिपूर्ण आंदोलन को मौलिक अधिकार बताते हुए मुंबई की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने 2015 में गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने की आरोपी पांच महिलाओं को बरी कर दिया.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, ये महिलाएं अपने क्षेत्र में पानी की नियमित सप्लाई की मांग को लेकर मुंबई के ईस्टर्न फ्री वे पर प्रदर्शन कर रही थीं. इन्हें ट्रैफिक रोकने के लिए हिरासत में लिया गया था. इनमें से दो वरिष्ठ नागरिक हैं.

मजिस्ट्रेट आरएस पाजनकर ने कहा कि पुलिस के पास उनके खिलाफ कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं था.

रिपोर्ट के मुताबिक, मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘लोकतांत्रिक देश में शांतिपूर्ण आंदोलन मौलिक अधिकार है. महिलाएं प्रदर्शन कर रही थीं क्योंकि कुछ दिनों से उनके इलाके में पानी की आपूर्ति नहीं हो रही थी. पुलिस ने समझाबुझाकर उन्हें घर भेज दिया था इसलिए पुलिस के पास उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और उन्हें गिरफ्तार करने का कोई कारण नहीं था.’

मजिस्ट्रेट ने यह भी कहा कि जांचकर्ता अधिकारी द्वारा पेश किए गए सबूतों का दो स्वतंत्र गवाहों ने खंडन किया, एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई और इसका कोई उल्लेख भी नहीं किया गया.

अदालत ने यह भी पूछा कि सिर्फ एक महिला को ही गिरफ्तार क्यों किया गया था. मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘यह अजीब है कि घटना के समय वहां 35 से 40 महिलाएं थीं लेकिन पुलिस ने उस दिन केवल एक आरोपी महिला को ही गिरफ्तार किया और अन्य महिलाओं को गिरफ्तार नहीं किया.’

अदालत ने निष्कर्ष में कहा कि महिलाएं शांतिपूर्ण और वैध रूप से प्रदर्शन कर रही थीं और इसलिए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का कोई आधार नहीं है.

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग आंदोलन और विवादित कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट की विवादित टिप्पणियों के बाद से विरोध करने के नागरिकों का अधिकार कानूनी बहस का विषय रहा है.

साल 2021 में शाहीन बाग मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विरोध प्रदर्शन निश्चित स्थानों पर ही होने चाहिए.

जस्टिस संजय कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ ने कहा, ‘लोकतंत्र और असंतोष साथ-साथ चलते हैं लेकिन असहमति जताने वाले विरोध प्रदर्शन निश्चित स्थानों पर ही होने चाहिए. मौजूदा मामला एक स्थान पर हो रहे प्रदर्शन का नहीं बल्कि इसकी वजह से सार्वजनिक मार्ग अवरुद्ध करने का है, जिससे यात्रियों को भारी असुविधा हुई. हम याचिकाकर्ताओं की याचिका को स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि लोग शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करने के लिए इकट्ठा हो सकते हैं.’

2021 में ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की सीमाओं पर विवादित कृषि कानूनों (अब निरस्त हो चुके) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को फटकार लगाते हुए कहा था, ‘आपने पूरे शहर का गला घोंट दिया है और अब आप शहर के भीतर दाखिल होना चाहते हैं और यहां भी प्रदर्शन शुरू करना चाहते हैं.’

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