हर विश्वविद्यालय में उन्मादी छात्र होते हैं, जेएनयू भी अलग नहीं है: कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित

जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित ने एक साक्षात्कार में कहा कि वे विश्वविद्यालय की राष्ट्रविरोधी छवि बदलना चाहती हैं. साथ ही, उन्होंने कहा कि हम करदाताओं के पैसे पर निर्भर हैं और बहुत सारे लोग चाहते हैं कि 'जेएनयू बंद करो', पिछले प्रशासन के दौरान घटीं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद बहुत ज्यादा घृणा है.

शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित. (फोटो साभार: फेसबुक/DDNewsLive)

जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित ने एक साक्षात्कार में कहा कि वे विश्वविद्यालय की राष्ट्रविरोधी छवि बदलना चाहती हैं. साथ ही, उन्होंने कहा कि हम करदाताओं के पैसे पर निर्भर हैं और बहुत सारे लोग चाहते हैं कि ‘जेएनयू बंद करो’, पिछले प्रशासन के दौरान घटीं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद बहुत ज्यादा घृणा है.

शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित. (फोटो साभार: फेसबुक/DDNewsLive)

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति एवं विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित ने मंगलवार को कहा कि वह जेएनयू से प्यार करती हैं क्योंकि यह देश का सबसे अच्छा विश्वविद्यालय है, लेकिन इसको लेकर उन्हें जो चीज नापसंद है वो यह है कि यह (जेएनयू) एक ‘भ्रम’ है- एक ऐसी जगह जहां गैर जिम्मेदारी और ‘सब कुछ मुफ्त’ होने को स्वतंत्रता माना जाता है.

इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में उन्होंने यह भी कहा कि जेएनयू में अन्य विचारधाराओं के लिए कोई घृणा नहीं होनी चाहिए.

साक्षात्कार में उनसे पूछा गया कि वे जेएनयू के बारे में क्या दो चीज नापसंद करती हैं या उन्हें बदलना चाहती हैं, इस पर पंडित ने कहा, ‘दो चीजें जो मैं पसंद नहीं करती, उनमें पहला है कि यह (जेएनयू) एक भ्रम है. छात्रों को लगता है कि सब-कुछ मुफ्त है… जब वे बाहर जाते हैं तो उनमें से कुछ मानसिक रूप से इससे प्रभावित हो जाते हैं और वे जेएनयू छोड़ना नहीं चाहते हैं. क्योंकि दुनिया ऐसी नहीं है… और हम उन्हें यथार्थवादी नहीं बनाते.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें लगता है कि सब-कुछ जेएनयू जैसा ही है, आप शॉर्ट्स में घूम सकते हैं, आप कोई भी कपड़े पहन सकते हैं, यहां किसी को कोई परेशानी नहीं होती. लेकिन बाहरी दुनिया ऐसी नहीं है. यहां तक कि आजादी को लेकर भी उनकी सोच है कि आप कुछ भी करेंगे, आपके खिलाफ कोई भी मामला (पुलिस में) दर्ज नहीं होगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘जो दूसरी चीज मुझे नापसंद है, वो यह है कि मुझे लगता है कि (वहां) नफरत नहीं होनी चाहिए. अपनी विचारधारा और नजरिया रखें, लेकिन नफरत न करें. नफरत एक ऐसी चीज है जो बहुत नकारात्मक है, और मुझे लगता है कि क्योंकि हम करदाताओं के पैसे पर निर्भर हैं और बहुत सारे लोग चाहते हैं कि जेएनयू बंद हो, पिछले प्रशासन के दौरान घटीं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद बहुत घृणा है.’

उन्होंने आगे कहा कि छात्रों को भी समझना चाहिए कि यह जीवन का एक चरण है. इसे जियो, आनंद लो तथा बाहर जाओ और अच्छा करो जैसा हमने अपने समय में किया था. कुछ ऐसा मत करो जो आपको चोट पहुंचाए क्योंकि आप खुद अपना ही नुकसान कर रहे हैं.

हालांकि, पंडित ने कहा कि जेएनयू देश में सबसे अच्छा विश्वविद्यालय है और इसने उनके लिए एक ऐसी दुनिया के रास्ते खोल दिए जिसको लेकर वह कहती हैं, ‘मुझे कभी नहीं पता था कि अस्तित्व में है.’

उन्होंने साथ ही कहा कि जेएनयू में सबसे अच्छे शिक्षक हैं.

रामनवमी के दौरान जेएनयू कैंपस में हुई हालिया हिंसा के बारे में पंडित ने कहा कि प्रशासन को पता नहीं है कि यह कैसे भड़की और मामले में एक प्रॉक्टोरियल जांच चल रही है.

बता दें कि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ने पहले एक बयान में कहा था कि हवन आयोजित करने पर कुछ छात्रों के आपत्ति जताने के बाद झगड़ा शुरू हुआ था.

शांतिश्री ने कहा कि उस हिंसा के बाद अलग-अलग व्याख्याएं सामने आ रही हैं. दुर्भाग्यवश हमारे यहां कैमरे नहीं हैं क्योंकि उन्हें छात्रों द्वारा तोड़ डाला गया. इफ्तार पार्टी 10 दिनों से चल रही थी. केवल एक दिन वो रामनवमी मनाना चाहते थे. इसलिए हम नहीं जानते कि इसके पीछे क्या कारण था.

यह पूछने पर कि रजिस्ट्रार का कहना है कि हवन का आयोजन विवाद का कारण था, उन्होंने कहा, ‘यह भी सही है…कई पक्ष हैं और हम एक पक्ष को सही नहीं मान सकते.’

इन आरोपों पर कि रामनवमी के दिन कावेरी हॉस्टल में मांसाहारी खाना नहीं परोसने दिया जा रहा था, उन्होंने कहा, ‘प्रशासन की ऐसी कोई नीति नहीं है कि किसे क्या खाना चाहिए और किसे क्या पहनना चाहिए, (यहां) लोगों के निजी अधिकारों का सम्मान किया जाता है.’

पंडित ने यह भी कहा कि वे जेएनयू की राष्ट्रविरोधी छवि को बदलना चाहती हैं. उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह एक नारे के शब्द के रूप में ठीक है, लेकिन मैं बताना चाहूंगी कि 90 फीसदी छात्र गैर-राजनीतिक हैं. वे यहां करिअर बनाने के लिए आए हैं और इस तरह की कोई भी नकारात्मक ब्रांडिंग उन्हें यहां से बाहर जाने के लिए प्रभावित करेगी… हर विश्वविद्यालय में उन्मादियों का समूह होता है और जेएनयू भी दूसरों से अलग नहीं है.’

उन्होंने कहा कि वैचारिक तौर पर हम असहमत हो सकते हैं लेकिन एक इंसान के तौर पर हम असहमति से सहमत हो सकते हैं और जेएनयू समुदाय, ज्ञान समुदाय, देश के लिए काम करने के रूप में एक साथ रह सकते हैं.