म्यांमार की अदालत ने आंग सान सू ची को भ्रष्टाचार के मामले में और पांच साल की सज़ा सुनाई

म्यांमार की एक अदालत ने अपदस्थ नेता आंग सान सू ची को भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया है, जबकि सू ची ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था कि उनके एक शीर्ष राजनीतिक सहकर्मी ने घूस के तौर पर सोना और हज़ारों डॉलर लिए थे. इससे पहले, अन्य मामलों में उन्हें छह साल की सज़ा सुनाई जा चुकी है.

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म्यांमार की अपदस्थ नेता आंग सान सू ची. (फोटो: रॉयटर्स)

म्यांमार की एक अदालत ने अपदस्थ नेता आंग सान सू ची को भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया है, जबकि सू ची ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था कि उनके एक शीर्ष राजनीतिक सहकर्मी ने घूस के तौर पर सोना और हज़ारों डॉलर लिए थे. इससे पहले, अन्य मामलों में उन्हें छह साल की सज़ा सुनाई जा चुकी है.

म्यांमार की अपदस्थ नेता आंग सान सू ची. (फोटो: रॉयटर्स)

बैंकॉक: सैन्य शासित म्यांमार की एक अदालत ने देश की पूर्व नेता आंग सान सू ची को भ्रष्टाचार के मामले में बुधवार को दोषी ठहराया और उन्हें पांच साल की जेल की सजा सुनाई.

सेना द्वारा पिछले साल फरवरी में तख्तापलट के बाद सत्ता से बाहर कर दी गईं सू ची ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था कि उनके एक शीर्ष राजनीतिक सहकर्मी ने घूस के तौर पर सोना और हजारों डॉलर लिए थे.

उनके समर्थकों और स्वतंत्र विधि विशेषज्ञों ने उनकी सजा की निंदा करते हुए इसे अनुचित और सू ची (76) को राजनीति से पूरी तरह बाहर करने के मकसद से उठाया गया कदम बताया. उन्हें अन्य मामलों में पहले ही छह साल की कैद की सजा सुनाई जा चुकी है और अभी उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के 10 और आरोप लगे हैं.

इस अपराध के तहत अधिकतम 15 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. अन्य मामलों में भी दोषी ठहराए जाने पर उन्हें कुल 100 साल से अधिक समय की जेल की सजा हो सकती है. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता सू ची सैन्य शासन की अवहेलना करने के लिए पहले ही कई वर्ष नजरबंदी में बिता चुकी हैं.

नाम उजागर ना करने की शर्त पर एक विधि अधिकारी ने सू ची को दी गई सजा की जानकारी दी. म्यांमार की राजधानी ‘ने पी ता’ में सू ची के मुकदमे की सुनवाई बंद कमरे में हुई और उनके वकीलों, राजनयिकों तथा वहां मौजूद लोगों के मीडिया से बात करने पर रोक लगा दी गई थी.

रॉयटर्स के मुताबिक, गोपनीयता की शर्त पर एक सूत्र ने बताया कि जज ने अदालत लगने के कुछ ही पलों में फैसला सुना दिया और कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया.

गौरतलब है कि एक फरवरी 2021 को म्यांमार की सेना ने देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी और सू ची तथा म्यांमार के कई बड़े नेताओं को हिरासत में ले लिया था. सू ची की पार्टी ने पिछले आम चुनाव में भारी जीत हासिल की थी, लेकिन सेना का कहना है कि चुनाव में व्यापक पैमाने पर धांधली हुई.

एक निगरानी समूह के अनुसार, सेना के देश की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद देशभर में हुए प्रदर्शनों को कुचलने के लिए सेना के भीषण बल प्रयोग से करीब 1800 लोगों की मौत हुई है.

साथ ही बताया कि सू ची फैसले से नाखुश थीं और अपील करेंगी.

यह स्पष्ट नहीं हुआ कि उन्हें सजा काटने के लिए जेल में भेजा जाएगा. उनकी गिरफ्तारी के बाद से उन्हें एक अज्ञात स्थान पर रखा गया है.

इस बीच, न्यूयॉर्क स्थित ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया उप निदेशक फिल रॉबर्टसन ने कहा कि एक स्वतंत्र महिला के रूप में सू ची के दिन प्रभावी रूप से समाप्त हो गए हैं.

ट्विटर पर, मलेशिया के विदेश मंत्री सैफुद्दीन अब्दुल्ला ने कहा कि वह सजा को लेकर बेहद चिंतित हैं, उन्होंने आग्रह किया कि मानव अधिकारों और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

सू की के अपदस्थ सत्तारूढ़ दल के एक पूर्व अधिकारी ने फो लाट ने कहा कि अदालत के फैसले अस्थायी हैं, क्योंकि सैन्य शासन लंबे समय तक नहीं रहेगा.

उन्होंने कहा, ‘मुझे परवाह नहीं है कि वे कितनी लंबी सजा देना चाहते हैं, चाहे एक साल हो या दो साल हो या जितनी भी वो देना चाहें. यह अंत तक नहीं टिकेगी.’

गौरतलब है कि म्यांमार में सेना ने एक फरवरी 2021 को तख्तापलट कर नोबेल विजेता आंग सान सू ची की निर्वाचित सरकार को बेदखल करते हुए और उन्हें तथा उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को नजरबंद करते हुए देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी.

म्यांमार की सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए कहा था कि उसने देश में नवंबर में हुए चुनावों में धोखाधड़ी की वजह से सत्ता कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लाइंग को सौंप दी है.

सेना का कहना है कि सू ची की निर्वाचित असैन्य सरकार को हटाने का एक कारण यह है कि वह व्यापक चुनावी अनियमितताओं के आरोपों की ठीक से जांच करने में विफल रहीं.

नवंबर 2020 में हुए चुनावों में सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी, जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था, लेकिन 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गई थीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)