पैगंबर पर टिप्पणी: उत्तर प्रदेश में ध्वस्तीकरण अभियान के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जमीयत

मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में दो नई याचिकाएं दायर कर उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की कि राज्य में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और निर्माण न गिराया जाए तथा इस तरह की कवायद पर्याप्त नोटिस देने के बाद ही की जाए. बीते 10 जून को हिंसा के बाद प्रशासन ने​ कई आरोपियों के घरों को बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिया है.

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(फोटो: पीटीआई)

मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में दो नई याचिकाएं दायर कर उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की कि राज्य में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और निर्माण न गिराया जाए तथा इस तरह की कवायद पर्याप्त नोटिस देने के बाद ही की जाए. बीते 10 जून को हिंसा के बाद प्रशासन ने​ कई आरोपियों के घरों को बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिया है.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में दो नई याचिकाएं दायर कर उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की कि राज्य में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और निर्माण न गिराया जाए तथा इस तरह की कवायद पर्याप्त नोटिस देने के बाद ही की जाए.

संगठन ने इससे पहले राष्ट्रीय राजधानी के जहांगीरपुरी इलाके में इमारतों को ढहाने के मुद्दे पर याचिका दायर की थी.

इन आवदनों में कहा गया है कि मामले में पिछली सुनवाई के बाद कुछ नए घटनाक्रम हुए हैं, जिनके बारे में इस अदालत का ध्यान आकर्षित करने की जरूरत है.

एक याचिका में कहा गया है, ‘कुछ दिनों पहले दो नेताओं द्वारा कुछ टिप्पणियां (पैगंबर मोहम्मद को लेकर) की गई थीं, जिन्हें लेकर देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया. दोनों नेताओं की टिप्पणियों के विरोध में कानपुर में कुछ लोगों द्वारा बंद का आह्वान किया गया था.’

याचिका के मुताबिक, ‘बंद के दिन हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच झड़प और पथराव हुआ. कानपुर में हिंसा के बाद कई अधिकारियों ने मीडिया में कहा है कि संदिग्धों/अभियुक्तों की संपत्ति को जब्त कर उसे ध्वस्त कर दिया जाएगा. यहां तक ​​कि राज्य के मुख्यमंत्री ने भी मीडिया में कहा है कि आरोपियों के घरों को बुलडोजर के जरिये ध्वस्त किया जाएगा.’

याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस तरह के अवैध उपायों को अपनाना स्पष्ट रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, खासकर उस सूरत में, जब शीर्ष अदालत वर्तमान मामले की सुनवाई कर रही हो.

इसमें कहा गया है, ‘मौजूदा मामले में यह ध्यान देने योग्य है कि इस माननीय न्यायालय ने उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में समान परिस्थितियों में एक दंडात्मक उपाय के तौर पर किए जा रहे विध्वंस पर रोक लगाने का आदेश दिया था. इसलिए, यह देखते हुए कि उपरोक्त मामला फिलहाल इस माननीय न्यायालय के समक्ष लंबित है, ऐसे उपायों पर अमल करना और भी खतरनाक है.’

याचिका के अनुसार, ‘किसी भी तरह का विध्वंस अभियान स्पष्ट रूप से निर्धारित कानूनों के तहत और केवल इस न्यायालय द्वारा अनिवार्य रूप से प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को उचित नोटिस व सुनवाई का अवसर दिए जाने के बाद ही चलाया जाना चाहिए.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश (भवन संचालन का विनियमन) अधिनियम, 1958 की धारा 10 के अनुसार भी किसी भवन को तब तक नहीं गिराया जाएगा, जब तक कि प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर नहीं दिया जाता है.

इसके अलावा उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 की धारा 27 में यह भी आवश्यक है कि विध्वंस के साथ आगे बढ़ने से पहले प्रभावित व्यक्ति को सुना जाए और उसे कम से कम 15 दिनों का नोटिस दिया जाए.

इसके अलावा अधिनियम के अनुसार विध्वंस के आदेश से व्यथित व्यक्ति आदेश के 30 दिनों की अवधि के भीतर इसके खिलाफ अध्यक्ष के पास अपील करने का हकदार है.

कानपुर में तीन जून को हुई हिंसा का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है, ‘उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश जारी करें कि कानपुर जिले में किसी भी आपराधिक मामले में किसी भी आरोपी की आवासीय या वाणिज्यिक संपत्ति के खिलाफ निर्धारित कानून के दायरे से बाहर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए.’

संगठन ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की भी मांग की है कि किसी भी तरह का विध्वंस अभियान स्पष्ट रूप से निर्धारित कानूनों के अनुसार और प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को उचित नोटिस व सुनवाई का अवसर दिए जाने के बाद ही चलाया जाए.

याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहे कि पुलिसकर्मियों को सांप्रदायिक दंगों और स्थितियों से निपटने के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाए.

इसमें कहा, ‘अंत में यह भी अनुरोध की जाती है कि यह निर्देश दिया जाए कि मंत्रियों, विधायकों और आपराधिक जांच से असंबद्ध किसी भी व्यक्ति को आपराधिक कार्रवाई के संबंध में आपराधिक जिम्मेदारी को सार्वजनिक रूप से या किसी भी आधिकारिक संचार माध्यम से आपराधिक अदालत द्वारा निर्धारित किए जाने तक विभाजित करने से रोका जाए.’

मालूम हो कि पैगंबर मोहम्मद को लेकर टिप्पणी के लिए भाजपा ने बीते पांच जून को अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को निलंबित कर दिया और दिल्ली इकाई के प्रवक्ता नवीन जिंदल को निष्कासित कर दिया था.

उत्तर प्रदेश के कानपुर में शुक्रवार 3 जून को शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी के खिलाफ दुकान बंद करने को लेकर दो पक्षों में ​विवाद के बाद हिंसा भड़क गई थी.

उसके बाद कानपुर में पुलिस ने मोहम्मद इश्तियाक से जुड़ी एक संपत्ति को ध्वस्त कर दिया. पुलिस ने कहा था कि इश्तियाक 3 जून को कानपुर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के मुख्य आरोपी जफर हयात हाशमी से जुड़ा था. विवादित संपत्ति स्वरूपनगर में स्थित थी, जो उस जगह से तीन किलोमीटर दूर है, जहां कानपुर में हिंसा हुई थी.

नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के बयानों के​ विरोध में इलाहाबाद में हुई हिंसा के संबंध में उत्तर प्रदेश पुलिस ने वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के नेता और सीएए विरोधी प्रदर्शनों में एक प्रमुख चेहरा रहे जावेद मोहम्मद उर्फ जावेद पंप को 10 अन्य लोगों के साथ ‘मुख्य साजिशकर्ता’ बताया है.

इलाहाबाद के अटाला और करेली में बीते 10 जून को हुए पथराव और हिंसा के बाद बीते 12 जून को जावेद मोहम्मद के करेली स्थित दो मंजिला घर को इलाहाबाद प्रशासन ने अवैध बताते हुए बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया.

इसके अलावा सहारनपुर में 10 जून को हुई हिंसा के दो आरोपियों के मकानों को पुलिस ने 11 जून को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया था.

शीर्ष अदालत ने इससे पहले जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिका पर राष्ट्रीय राजधानी के हिंसा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में इमारतों को गिराने के मुद्दे पर केंद्र सरकार व अन्य को नोटिस जारी किया था.

इस याचिका में दावा किया गया था कि सांप्रदायिक हिंसा के आरोपी मुस्लिमों के निर्माण को ढहाया जा रहा है.

जहांगीरपुरी में बीते 16 अप्रैल को हनुमान जयंती के अवसर पर निकाली गई शोभायात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच झड़प हो गई थी, जिसमें आठ पुलिसकर्मी और एक स्थानीय निवासी घायल हो गया था.

हिंसा की घटना के बाद बीते 20 अप्रैल को भाजपा शासित उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) द्वारा इस इलाके अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया था, जिस पर विवाद खड़ा हो गया था.

आरोप है कि अभियान के तहत आरोपियों के कथित अवैध निर्माणों को तोड़ा जा रहा था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के बाद भी कार्रवाई नहीं रोकी गई थी. कुछ घंटे बाद जब याचिकाकर्ता के वकील वापस शीर्ष अदालत पहुंचे, तब तोड़-फोड़ की कार्रवाई रुकी थी.

इसके बाद 21 अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एनडीएमसी के तोड़फोड़ अभियान पर दो हफ्ते की रोक लगा दी थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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