आज़मगढ़ उपचुनाव: क्या समाजवादी पार्टी के गढ़ को भेद पाने में कामयाब होगी भाजपा

विपक्ष की राजनीति का केंद्र मानी जाने वाली आज़मगढ़ लोकसभा सीट पर 23 जून को उपचुनाव होना है. आज तक यहां से कभी जीत हासिल न करने वाली भाजपा ने इस बार अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है, वहीं सपा और बसपा भी अपनी जीत के दावे के साथ जातीय समीकरण साधने में लगे हैं.

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चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ भाजपा प्रत्याशी दिनेश यादव 'निरहुआ'. (फोटो साभार: फेसबुक/निरहुआ)

विपक्ष की राजनीति का केंद्र मानी जाने वाली आज़मगढ़ लोकसभा सीट पर 23 जून को उपचुनाव होना है. आज तक यहां से कभी जीत हासिल न करने वाली भाजपा ने इस बार अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है, वहीं सपा और बसपा भी अपनी जीत के दावे के साथ जातीय समीकरण साधने में लगे हैं.

चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ भाजपा प्रत्याशी दिनेश यादव ‘निरहुआ’. (फोटो साभार: फेसबुक/निरहुआ)

आजमगढ़: 23 जून को उत्तर प्रदेश में लोकसभा के उपचुनाव ऐसे समय में हो रहे हैं जब हाल ही में पैगंबर मोहम्मद पर भाजपा नेताओं द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद 10 जून को उत्तर प्रदेश के कई प्रमुख शहरों में हुई हिंसा और उसके बाद दमन, गिरफ्तारी और मकानों को बुलडोजर से गिराने का शोर थमा भी नहीं था. यह हंगामा कम था कि सेना में भर्ती को लेकर केंद्र सरकार की ओर से घोषित अग्निपथ योजना के खिलाफ छात्र युवा बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतर आए. तमाम शहरों और कस्बों में आगजनी और हिंसा की घटनाएं घटी हैं. यह आक्रोश अभी पूरी तरह थमा नहीं है.

आजमगढ़ में यह सीट नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव द्वारा खाली की गई है जिस पर समाजवादी पार्टी (सपा) ने बदायूं से पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को उतारा है. वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भोजपुरी के स्टार गायक दिनेश यादव ‘निरहुआ’ पर फिर से दांव लगाया है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी अपने पुराने चेहरे और स्थानीय नेता गुड्डू जमाली को प्रत्याशी बनाया है.

आजमगढ़ इतिहास में भी विपक्ष की राजनीति का केंद्र रहा है. कम्युनिस्ट पार्टियां, जनता दल और 90 के बाद से यहां सपा या बसपा से ही कोई जीतता रहा है. भाजपा आज तक जीत नहीं सकी है लेकिन 2019 के चुनाव में वह हार भले गई हो, उसके प्रत्याशी निरहुआ को लगभग साढ़े तीन लाख मत मिले थे और पिछले विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ की सभी सीटों पर भाजपा नंबर दो की पार्टी बनकर उभरी है.

ऐसे में इस बार वह मौका नहीं चूकना चाहती और उसने ऊपर से लेकर बूथ स्तर तक तमाम मंत्रियों को लगाकर अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी सरकार के कामों को गिनाते हुए 19 जून को हुई सभा में कहा कि ‘यह आजमगढ़ को आर्यमगढ़ बनाने का मौका है इससे चूकिए मत.’

वह यहीं नहीं रुके और सपा बसपा पर हमला करते हुए कहा कि ‘इनकी सरकारों के समय आजमगढ़ की पहचान आतंक के गढ़ की रही है इसे बदल देना है.’

वहीं, सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव अपनी सरकार के समय के कार्यों की बात करते हुए भाजपा द्वारा किए जा रहे दमन, संविधान पर हमले और युवाओं की बेरोजगारी आदि को मुद्दा बना रहे हैं. बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली अपनी स्थानीय होने और लोगों के बीच एक लोकप्रिय छवि के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय के भीतर उनके अपने प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने की बात पर बल दे रहे हैं.

इन दावों- प्रतिदावों, आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच लोगों के भीतर चुनाव को लेकर बहुत उत्साह नहीं दिख रहा, इसलिए वोट प्रतिशत कम रहने की संभावना है.

विभिन्न सरकारों के समय आजमगढ़ का जिले से मंडल बनना, मेडिकल कॉलेज खोलना, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे बनाने और निर्माणाधीन हवाई अड्डे, नई यूनिवर्सिटी का शिलान्यास ही विकास के मापक गिनाए जा रहे हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य और उपलब्ध संस्थानों की हालत पर कोई बात नहीं कर रहा, जबकि रोजगार के लिए यहां कोई फैक्ट्री या उद्योग नहीं है और न ही उसके कोई आसार हैं.

सभी समुदायों से खाड़ी देशों में कमाने गए लोग और कृषि ही यहां का मुख्य पेशा है और इसकी हालत किसी से छिपी नहीं है. यहां वर्ष 2022 में सरकारी क्रय केंद्रों पर 15 जून तक अनुमानित गेहूं क्रय का लक्ष्य 71 हजार मीट्रिक टन था, जिसमें से मात्र 19% ही अर्थात 13 हजार 685 मीट्रिक टन ही खरीदा जा सका है.

किसानों से बात करने पर वह बताते हैं कि सरकार ने खेत की मेढ़ पर जाकर गेहूं खरीदने की बात की थी लेकिन पूरे जिले में मात्र 73 क्रय केंद्र खोले गए हैं अर्थात प्रति न्याय पंचायत एक केंद्र भी नहीं है. एमएसपी सरकार ने 2,050 रुपये प्रति कुंतल तय किया है जिसमें ऑनलाइन पर्ची कटवाना, अपना बोरा लेकर जाना, नमी के नाम पर पांच प्रतिशत काट लेना और क्रय केंद्र तक जाने का किराया भाड़ा खर्चा करना होता है.

यह ऐसी दुश्वारियां हैं जिनमें यदि स्थानीय व्यापारी उनके दरवाजे पर जाकर अट्ठारह सौ-उन्नीस सौ रुपये प्रति क्विंटल रेट भी दे दे तो वह उसे बेचना लाभदायक मानते हैं.

शहर के भीतर और गांव की सड़कें बरसों से खस्ताहाल हैं. स्वास्थ्य, शिक्षा, नागरिक सुविधाएं इन सबसे जिस तरह सब जगह हाथ खींचा जा रहा है आजमगढ़ भी उससे अछूता नहीं है. ऐसे में जब चुनाव अंततः जातीय समीकरणों से ही तय होना है और सभी उसी को साधने में जुटे हुए हैं .

अनुमानतः आजमगढ़ में यादव- मुस्लिम मतदाता 45% हैं. 20 प्रतिशत सवर्ण और लगभग इतने ही दलित बाकी में अन्य पिछड़ी जातियां हैं. अभी तक यादव मुस्लिम गठजोड़ ही जो मजबूती से सपा के पक्ष में खड़ा रहता है उसी के बल पर सपा जीतती रही है. जब भी इसमें से किसी हिस्से में टूट होती है सपा का संकट बढ़ जाता है.

2014 में जब मुलायम सिंह यहां चुनाव लड़ रहे थे, तब भाजपा ने स्थानीय बाहुबली रमाकांत यादव (जो अब सपा विधायक हैं) और बसपा ने गुड्डू जमाली को उतारकर उन्हें काफी संकट में डाला था. यादव और मुस्लिमों के कुछ-कुछ हिस्से यह तोड़ने में सफल रहे थे. इस बार भी कोशिश यही है, हालांकि परिस्थितियां थोड़ी भिन्न हैं.

जीयनपुर के पेशे से दंत चिकित्सक और दलित बुद्धिजीवी डॉ. शिवकुमार कहते हैं, ‘पिछले विधानसभा चुनाव के समय दलित वोटरों में जो बिखराव था वह बना हुआ है. बसपा के साथ दलितों में पुरानी प्रतिबद्धता नहीं है इसलिए उदासीनता है. ऐसे में उसके वोट जो पड़ेंगे वह बिखरे हुए ही होंगे.’

वे आगे कहते हैं, ‘बसपा को उनका एकमुश्त वोट नहीं मिलेगा. मुस्लिमों का आकर्षण थोड़ा जमाली के प्रति दिखता है और उनके समर्थक प्रचार भी कर रहे हैं कि एक सीट से सरकार पर क्या असर पड़ेगा. स्थानीय विधायकों और यहां तक कि शहर में उनके समर्थक बुद्धिजीवियों का भी कहना है कि प्रदेश में आज जो बुलडोजर राज की स्थिति बनी है और टारगेट करके हमला किया जा रहा है, ऐसे में यह आकर्षण बहुत वोट में शायद ही तब्दील होगा.’

शहर में बचपन से संघ के प्रति प्रतिबद्ध व्यापारी सुरेश अग्रवाल कहते हैं, ‘गुड्डू जमाली मुसलमानों के वोट में बड़ी टूट करवाने में सफल होंगे तभी भाजपा नंबर 2 से नंबर एक पर आएगी क्योंकि यादव पूरी तरह सपा के साथ है.’

आजम खान ने आजमगढ़ में 1 दिन में दो सभाएं की हैं. योगी आदित्यनाथ भी दो सभाएं करके लौट गए हैं. चार बार से सपा विधायक 84 वर्षीय आलम बदी जीत के प्रति आश्वस्त दिखते हैं. सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर ने भी लगातार सभाएं की हैं. हालांकि अखिलेश यादव का सभा करने न आना भी लोगों में चर्चा का विषय है.

उपचुनाव के परिणाम 26 जून को आएंगे लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि लोगों के और पार्टियों के अपने-अपने आकलन जमीन पर कितने सच साबित होते हैं. क्या भाजपा, सपा के इस गढ़ को भेद पाएगी?

(लेखक समकालीन जनमत मासिक पत्रिका के संपादक हैं.)

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