पूर्व नौकरशाहों ने यूपी के ‘बुलडोज़र जस्टिस’ को ख़त्म करने के लिए सीजेआई के हस्तक्षेप की मांग की

पूर्व नौकरशाहों के कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने देश के मुख्य न्यायाधीश को लिखे एक खुले पत्र में कहा कि अब समस्या केवल स्थानीय स्तर पर पुलिस और प्रशासन की 'ज़्यादतियों' की नहीं है बल्कि तथ्य यह है कि क़ानून के शासन, उचित प्रक्रिया और 'दोषी साबित न होने तक निर्दोष माने जाने' के विचार को बदला जा रहा है.

सीजेआई एनवी रमना. (फोटो: पीटीआई)

पूर्व नौकरशाहों के कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने देश के मुख्य न्यायाधीश को लिखे एक खुले पत्र में कहा कि अब समस्या केवल स्थानीय स्तर पर पुलिस और प्रशासन की ‘ज़्यादतियों’ की नहीं है बल्कि तथ्य यह है कि क़ानून के शासन, उचित प्रक्रिया और ‘दोषी साबित न होने तक निर्दोष मानने’ के विचार को बदला जा रहा है.

सीजेआई एनवी रमना. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सेवानिवृत नौकरशाहों के एक समूह ने मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना को पत्र लिखकर कहा है कि वे ‘बुलडोजर द्वारा किए जा रहे न्याय’ के मामले में हस्तक्षेप करें और इस कवायद को समाप्त करें. उन्होंने कहा कि यह चलन अब अपवाद के बजाय कई राज्यों में आम होता जा रहा है.

कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) का हिस्सा 90 पूर्व लोक सेवकों ने सीजेआई के नाम एक खुला पत्र लिखते हुए कहा है कि पैगंबर मोहम्मद पर भाजपा प्रवक्ताओं की टिप्पणियों के खिलाफ प्रदर्शनों के बाद उत्तर प्रदेश में ‘अवैध हिरासत, बुलडोजर से लोगों के मकान गिराने और प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की हिंसा’ का सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए.

उन्होंने पत्र में कहा है, ‘ (उत्तर प्रदेश में) तोड़फोड़ अभियान और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए म्युनिसिपल व नागरिक कानूनों का दुरुपयोग प्रशासन और पुलिस प्रणाली को क्रूर बहुसंख्यक दमन के साधन में तब्दील करने की एक बड़ी नीति का सिर्फ एक अंश है.’

पूर्व सरकारी अधिकारियों ने दावा किया कि किसी भी विरोध को बुरी तरह कुचलने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 और उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स व असमाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम-1986 लगाने के ‘स्पष्ट निर्देश’ हैं.

पत्र में कहा गया है, ‘इस नीति को सरकार के शीर्ष स्तर से मंजूरी प्राप्त है और जबकि शक्तियों के निरंकुश व मनमाने इस्तेमाल के लिए स्थानीय स्तर के अधिकारी और पुलिसकर्मी निस्संदेह जवाबदेह होते हैं, इसलिए वास्तविक दोष राजनीतिक कार्यपालिका के शीर्षतम स्तर में निहित है. यह संवैधानिक शासन के ढांचे का वह भ्रष्टाचार है जिसके लिए जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट आगे आकर इसके और अधिक फैलने से पहले इसके खिलाफ कार्रवाई करे.

इसमें आगे कहा गया है, ‘इससे भी अधिक चिंताजनक ‘बुलडोजर न्याय (बुलडोजर जस्टिस)’ का विचार है, जिसके तहत जो नागरिक कानूनी तरीके से विरोध करने या सरकार की आलोचना करने या कानूनी तरीके से असंतोष व्यक्त करने का साहस करते हैं उन्हें कठोर सजा दी जाती है. यह कई भारतीय राज्यों में अब अपवाद के बजाय आम होता जा रहा है.’

पूर्व नौकरशाहों का कहना है कि समस्या अब केवल स्थानीय स्तर पर पुलिस और प्रशासन की ‘ज्यादतियों’ की नहीं है बल्कि तथ्य यह है कि कानून के शासन, उचित प्रक्रिया, ‘दोषी न साबित होने तक निर्दोष माने जाने’ के विचार को बदला जा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘हमने प्रयागराज (इलाहाबाद), कानपुर, सहारनपुर और अन्य शहरों- जहां बड़ी मुस्लिम आबादी है- में देखा है कि एक पैटर्न का पालन किया जाता है और वह राजनीतिक रूप से निर्देशित होता है.’

सीसीजी ने कहा कि यह दंड से मुक्ति का भाव और बहुसंख्यक सत्ता का अहंकार है जो संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों की इस अवहेलना के अभियान को चलाता प्रतीत होता है.

हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व केंद्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई, पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी जूलियो रिबेरो, अविनाश मोहनाने, मैक्सवेल परेरा व एके सामंत और पूर्व सामाजिक न्याय सचिव अनीता अग्निहोत्री शामिल हैं.

पूर्व लोकसेवकों ने 14 जून 2022 को सीजेआई को भेजी उस याचिका का भी समर्थन किया जिसमें उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के पूर्व जजों और प्रमुख वकीलों के किसी समूह ने उनसे उत्तर प्रदेश में हाल की कार्रवाईयों का स्वत:संज्ञान लेने का अनुरोध किया था.

कथित अवैध निर्माणों को गिराने के खिलाफ एक जनहित याचिका जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा जस्टिस बोपन्ना और विक्रम नाथ की पीठ के समक्ष दायर की गई है. प्रारंभिक सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘सब कुछ न्यायसंगत होना चाहिए’ और अधिकारियों को कानून के तहत उचित प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना चाहिए.

बता दें कि भाजपा ने 5 जून को अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को निलंबित कर दिया था और अपने दिल्ली मीडिया प्रमुख नवीन कुमार जिंदल निष्कासित कर दिया था. यह कदम उनकी टिप्पणियों के चलते खड़े हुए राजनयिक विवाद के चलते उठाया गया था.

पूर्व 90 लोक सेवकों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया, ‘हम मानते हैं कि जब तक उच्चतम स्तरीय न्यायपालिका हस्तक्षेप करने के लिए आगे नहीं आती है, तब तक पिछले बहत्तर सालों में इतनी सावधानी से निर्मित संवैधानिक शासन की पूरी इमारत ढहने की संभावनाएं हैं.’

यह पूरा पत्र पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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