हसदेव अरण्य में सभी कोयला खदान परियोजनाएं रद्द होने तक चलेगा विरोध प्रदर्शन: प्रदर्शनकारी

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान परियोजनाओं को मंजूरी देने के ख़िलाफ़ इस साल मार्च से ही विरोध प्रदर्शन चल रहा है. हालांकि, राज्य सरकार ने इन तीन कोयला खदान परियोजना से संबंधित सारी प्रक्रियाएं रोक दी हैं, लेकिन प्रदर्शनकारी इस परियोजना को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं. 

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हसदेव अरण्य क्षेत्र में जारी आदिवासियों का प्रदर्शन. (फोटो साभार: ट्विटर/@citizen_shweta)

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान परियोजनाओं को मंजूरी देने के ख़िलाफ़ इस साल मार्च से ही विरोध प्रदर्शन चल रहा है. हालांकि, राज्य सरकार ने इन तीन कोयला खदान परियोजना से संबंधित सारी प्रक्रियाएं रोक दी हैं, लेकिन प्रदर्शनकारी इस परियोजना को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं.

हसदेव अरण्य क्षेत्र में जारी आदिवासियों का प्रदर्शन. (फोटो साभार: ट्विटर/@citizen_shweta)

रायपुर: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान परियोजनाओं को मंजूरी देने के खिलाफ इस साल मार्च से ही विरोध प्रदर्शन चल रहा है. सरगुजा जिले के ग्रामीण भीषण गर्मी के बावजूद अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं और अब वे मानसून में भी अपने विरोध को जारी रखने के लिए तैयार हैं.

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कोई उनके मनोबल को डिगा नहीं सकता, क्योंकि वे अपनी जमीन के लिए लड़ाई रहे हैं, जहां पर वे पीढ़ियों से रह रहे हैं. उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मान ली जातीं, तब तक वे अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे.

सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर से 60 किलोमीटर दूर हरिहरपुर गांव में तीन कोयला खदानों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन रविवार को 111वें दिन में प्रवेश कर गया.

हालांकि, राज्य सरकार ने इन तीन कोयला खदान परियोजना से संबंधित सारी प्रक्रियाएं रोक दी हैं, लेकिन प्रदर्शनकारी इस परियोजना को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं. ये खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को आवंटित किए गए हैं.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की इस साल मार्च में छत्तीसगढ़ के समकक्ष भूपेश बघेल से मुलाकात के बाद राज्य सरकार ने सरगुजा और सूरजपुर जिलों की 841.538 हेक्टेयर वन भूमि परसा खदान के लिए और सरगुजा जिले में पीईकेकेबी फेज-II खदान के लिए 1,136.328 हेक्टयर जमीन का इस्तेमाल गैर-वानिकी कार्य के लिए करने की अनुमति दे दी थी.

वहीं, आरआरवीयूएनएल को हसदेव अरण्य क्षेत्र में आवंटित केंटे एक्सटेंशन कोयला खदान पर जनसुनवाई लंबित है.

अक्टूबर 2021 में ‘अवैध’  भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोगों द्वारा रायपुर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा की गई थी और प्रस्तावित खदान के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था.

इस प्रदर्शन के बाद भी जब राहत नहीं मिली तो परियोजना से प्रभावित साल्ही, फतेहपुर, हरिहरपुर और घाटबर्रा गांव के निवासियों ने हरिहरपुर में डेरा डाल दिया और अनिश्चिकालीन प्रदर्शन शुरू कर दिया.

हरिहरपुर प्रदर्शन का केंद्र बन गया है, जहां पर प्रदर्शनकारी सूखा राशन अपने-अपने घरों से लाते हैं और प्रदर्शन स्थल पर ही खाना पकाकर साथ खाते हैं.

साल्ही गांव के निवासी रामलाल करियाम ने कहा, ‘हम पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं और जंगलों को संरक्षित कर रहे हैं. हमारी जिंदगी इस पर निर्भर है. हम सरकार से बस इतना चाहते हैं कि कोयले के लिए वह इसे नष्ट नहीं करे.’

करियाम स्थानीय लोगों के समूह हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति का हिस्सा है. उनके परिवार में नौ सदस्य हैं, जिनमें उनके तीन बच्चे शामिल हैं, जो एक-एक कर प्रदर्शन में हिस्सा लेते हैं.

उन्होंने कह कि गर्मी हो या बरसात वे मांगें पूरी होने तक प्रदर्शन स्थल को खाली नहीं करेंगे.

घाटबर्रा गांव के सरपंच जयनंदन पोर्टे ने भी इसी तरह की भावना व्यक्त की और सवाल किया कि सरकार क्यों पर्यावरण और वनवासियों के जीवन से खेल रही है.

उन्होंने कहा, ‘सरकार ने खदान का काम रोक दिया है, लेकिन ऐसा लगता है कि महज प्रदर्शन को शांत करने की कोशिश है. हम चाहते हैं कि दी गई मंजूरी को रद्द किया जाए.’

प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि पीईकेबी फेज-II और परसा खदान को ग्राम सभा के फर्जी सहमति दस्तावेज के आधार पर मंजूरी दी गई.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा, ‘प्रभावित गांवों की ग्रामसभाओं ने पहले ही इन खनन परियोजनाओं का विरोध किया है और उन्हें किसी भी तरह की मंजूरी संविधान की पांचवीं अनुसूची, पेसा अधिनियम 1996, वन अधिकार मान्यता अधिनियम 2006 और भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के प्रावधानों का उल्लंघन है.’

उन्होंने कहा कि पिछले साल भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ हसदेव अरण्य कोलफील्ड में किए गए जैव विविधता अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि घने जंगल के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए खनन के लिए कोयला क्षेत्रों की सिफारिश नहीं की जा सकती है.

सरकार ने वाणिज्यिक कोयला खदान नीलामी के दूसरे चरण में 67 ब्लॉक की पेशकश की है.

उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र हसदेव नदी का एक जलग्रहण क्षेत्र भी है, जो महानदी की एक सहायक नदी है, जो इससे होकर बहती है और बांगो बांध, जो तीन लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि की सिंचाई में मदद करता है.’

उन्होंने कहा कि सभी कोयला खनन परियोजनाओं को रद्द किए जाने तक आंदोलन जारी रहेगा.

उन्होंने कहा कि वर्तमान में दो कोयला खदानें- चोटिया और पीईकेबी फेज-I, हसदेव अरण्य क्षेत्र में काम कर रही हैं.

वन विभाग ने इस साल अप्रैल में परसा कोयला खनन परियोजना की शुरुआत का मार्ग प्रशस्त करने के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी, जिसका स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया, जिन्होंने 300 पेड़ों को काटे जाने के बाद अधिकारियों को अपनी कार्रवाई रोकने के लिए मजबूर किया.

ऐसा ही नजारा पिछले महीने पीईकेबी फेज- II के लिए पेड़ों की कटाई के दौरान देखने को मिला था.

सरगुजा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव प्रदर्शनकारियों के समर्थन में सामने आए थे.

यहां तक कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस महीने की शुरुआत में कैम्ब्रिज दौरे के दौरान कहा था कि उन्हें हसदेव अरण्य में खनन को मंजूरी देने के फैसले से दिक्कत है.

हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.

हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था.

हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.

केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी. परसा आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है.

खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने बीते छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दे दी थी.

यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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