यूएपीए मामले में कोर्ट ने एनआईए से कहा, लगता है आपको किसी के अख़बार पढ़ने से भी समस्या है

झारखंड की एक कंपनी के जनरल मैनेजर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने माओवादियों से जुड़ाव रखने के आरोप में यूएपीए के तहत 2018 में गिरफ़्तार किया था. उन्हें हाईकोर्ट से दिसंबर 2021 में ज़मानत मिलने पर एनआईए ने ज़मानती आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसे शीर्ष अदालत ने ख़ारिज कर दिया.

(फोटो साभार: विकिपीडिया)

झारखंड की एक कंपनी के जनरल मैनेजर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने माओवादियों से जुड़ाव रखने के आरोप में यूएपीए के तहत 2018 में गिरफ़्तार किया था. उन्हें हाईकोर्ट से दिसंबर 2021 में ज़मानत मिलने पर एनआईए ने ज़मानती आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसे शीर्ष अदालत ने ख़ारिज कर दिया.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज एक मामले के आरोपी को झारखंड हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की याचिका गुरुवार (14 जुलाई) को खारिज कर दी.

शीर्ष अदालत ने जमानत निरस्त करने की दलील को स्वीकार नहीं करते हुए मौखिक रूप से कहा, ‘आप जिस तरह से काम कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि आपको किसी व्यक्ति के अखबार पढ़ने से भी समस्या है.’

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, यूएपीए के एक मामले में एक कंपनी के जनरल मैनेजर पर आरोप था कि वह जबरन वसूली के लिए तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी) नामक माओवादी गुट से जुड़े हुए हैं. मामले में मैनेजर को झारखंड हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी. हाईकोर्ट के जमानती आदेश के खिलाफ एनआईए सुप्रीम कोर्ट गई थी.

सुनवाई के दौरान एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने दलील दी थी कि आरोपी, जो एक कंपनी का जनरल मैनेजर है, भाकपा (माओवादी) से अलग हुए समूह टीपीसी के निर्देश पर धन वसूली करता था.

मामले की सुनवाई सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही थी, जिसमें जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली भी शामिल थे.

पीठ ने कहा कि उसे आरोपी को जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नजर नहीं आती.

सीजेआई ने कहा, ‘आप (एनआईए) जिस तरह से काम कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि आपको किसी व्यक्ति के अखबार पढ़ने से भी समस्या है. (याचिका) खारिज करते हैं.’

पीठ ने कहा, ‘केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल की दलीलें सुनने के बाद और उपलब्ध सामग्री का सावधानी से अध्ययन करने के बाद हमें इकलौते प्रतिवादी को जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नजर नहीं आती. इसलिए विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज की जाती है.’

हाईकोर्ट ने इस बात को संज्ञान में लेकर आरोपी को जमानत दी थी कि उसने अपने आवास पर तलाशी और जब्ती के दौरान जांच एजेंसी को सहयोग दिया और सभी जरूरी दस्तावेज मुहैया कराए.

मेसर्स आधुनिक पावर एंड नेचुरल रिसोर्सेज लिमिटेड के जनरल मैनेजर आरोपी संजय जैन को दिसंबर 2018 में इस आरोप में गिरफ्तार किया गया था कि वह वसूली रैकेट चलाने में टीपीसी के साथ करीब से जुड़े हुए हैं. वे अपनी गिरफ्तारी के समय से ही दिसंबर 2021 में जमानत मिलने तक हिरासत में रहे थे.

हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए पाया था कि टीपीसी द्वारा मांगी गई राशि उसे देने से प्रथमदृष्टया आरोपी पर यूएपीए का अपराध नहीं बनता है.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ‘हो सकता है कि टीपीसी आतंकी गतिविधियों में शामिल हो, लेकिन उगाही की राशि टीपीसी को देने या टीपीसी प्रमुख से मिलने के याचिकाकर्ता के कृत्य यूएपीए की धारा 17 और 18 के तहत नहीं आते हैं.’

अदालत ने कहा था कि टीपीसी प्रमुख से मिलने या उन्हें भुगतान करने से याचिकाकर्ता टीपीसी का सदस्य नहीं बन जाता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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