नियंत्रण रेखा और सीमा के 100 किलोमीटर के भीतर राजमार्ग परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी से छूट

केंद्र सरकार ने ​‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन​’ नियमों में संशोधन किया है. इस संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार, सीमावर्ती राज्यों में रक्षा और सामरिक महत्व से संबंधित राजमार्ग परियोजनाएं प्रकृति के लिहाज़ से संवेदनशील हैं और कई मामलों में रणनीतिक, रक्षा तथा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकता के आधार पर अनुमति लेने से छूट दी जाती है.​

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

केंद्र सरकार ने ​‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन​’ नियमों में संशोधन किया है. इस संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार, सीमावर्ती राज्यों में रक्षा और सामरिक महत्व से संबंधित राजमार्ग परियोजनाएं प्रकृति के लिहाज़ से संवेदनशील हैं और कई मामलों में रणनीतिक, रक्षा तथा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकता के आधार पर अनुमति लेने से छूट दी जाती है.​

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र ने पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन (ईआईए) संबंधी नियमों में संशोधन करते हुए नियंत्रण रेखा या सीमा के 100 किलोमीटर के भीतर रक्षा तथा सामरिक महत्व से संबंधित राजमार्ग परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता से छूट देने की घोषणा की है.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, हवाई अड्डों पर टर्मिनल भवनों के विस्तार (हवाई अड्डे के मौजूदा क्षेत्र में विस्तार के बिना) से संबंधित परियोजनाओं के लिए अब अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी.

इसमें बायोमास-आधारित बिजली संयंत्रों की छूट सीमा को भी बढ़ाया गया है, जो कोयले, लिग्नाइट या पेट्रोलियम उत्पादों जैसे सहायक ईंधन का 15 प्रतिशत तक उपयोग करते हैं.

अधिसूचना के अनुसार, ​‘सीमावर्ती राज्यों में रक्षा और सामरिक महत्व से संबंधित राजमार्ग परियोजनाएं प्रकृति के लिहाज से संवेदनशील हैं और कई मामलों में रणनीतिक, रक्षा तथा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकता के आधार पर अनुमति लेने से छूट दी जाती है.​’

अधिसूचना में कहा गया है कि नियंत्रण रेखा या सीमा के 100 किलोमीटर के भीतर सभी राजमार्ग परियोजनाओं को छूट दी जाएगी.

गौरतलब है कि पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने सीमा परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी से छूट देने के लिए अप्रैल में पेश किए गए मसौदे का विरोध करते हुए कहा था कि इससे पर्यावरण को नुकसान होगा.

संशोधित नीति लागू होने के बाद उत्तराखंड में चार धाम परियोजना के कुछ हिस्से, हिमालय तथा पूर्वोत्तर की ऐसी कई परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी की जरूरत नहीं होगी, जो नियंत्रण रेखा या सीमा के 100 किलोमीटर के भीतर हैं.

बता दें कि विवादित चार धाम परियोजना मामले की सुनवाई फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में चल रही है, जिसने मामले की जांच के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 14 दिसंबर के अपने आदेश में 900 किलोमीटर लंबी सड़क परियोजना के 70 फीसदी काम की निगरानी का काम एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली निरीक्षण समिति को सौंप दिया था.

केंद्र की इस महत्वकांक्षी 12,000 करोड़ रुपये की राजमार्ग विस्तार परियोजना की परिकल्पना 2016 में की गई थी, जिसमें ऊपरी हिमालय में चार धाम सर्किट- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में सभी मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए 889 किलोमीटर पहाड़ी सड़कों को चौड़ा किया गया था.

पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन (ईआईए) एक प्रस्तावित परियोजना या विकास के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों के मूल्यांकन की प्रक्रिया है. यह मूल्यांकन प्रस्तावित परियोजना क्षेत्र में रहने वाले समुदाय के मानव स्वास्थ्य और उस पर पड़ने वाले सामाजिक आर्थिक प्रभाव को भी ध्यान में रखता है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 जुलाई को प्रकाशित अपने नवीनतम संशोधनों में मंत्रालय ने पर्यावरण मंजूरी पाने के लिए कई छूट दी हैं.

मंत्रालय ने कहा कि बंदरगाहों पर मछुआरों की आजीविका सुरक्षा और अन्य की तुलना में इन बंदरगाहों की कम प्रदूषण क्षमता को ध्यान में रखते हुए इनकी सीमा बढ़ाने को भी पर्यावरणीय मंजूरी से छूट होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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