बीते दो सालों में पुलिस हिरासत में 4,484 मौतें, उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक: केंद्र सरकार

लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि देश भर में साल 2020 में हिरासत में मौत के 1,940 और साल 2021 में 2,544 मामले दर्ज किए गए. सरकारी डेटा के अनुसार, साल 2020 में पुलिस एनकाउंटर में मौत के 82 और साल 2021 में 151 मामले दर्ज किए गए.

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(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि देश भर में साल 2020 में हिरासत में मौत के 1,940 और साल 2021 में 2,544 मामले दर्ज किए गए. सरकारी डेटा के अनुसार, साल 2020 में पुलिस एनकाउंटर में मौत के 82 और साल 2021 में 151 मामले दर्ज किए गए.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों में बताया कि देश में बीते दो सालों में पुलिस हिरासत में कुल 4,484 मौतें हुई हैं, वहीं इसी अवधि में कथित पुलिस मुठभेड़ों में 233 लोगों ने जान गंवाई.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सदन में बीते दो सालों में पुलिस हिरासत में हुई मौतों के राज्यवार आंकड़े पेश करते हुए बताया कि दोनों ही वर्षों में ऐसी सर्वाधिक मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं, जिसके बाद पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर रहा.

आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पिछले दो वर्षों में इस तरह के कुल 952 मामले (2020 में 451 और 2021 में 501) दर्ज किए गए. वहीं, बंगाल में समान अवधि के दौरान कुल 442 (2020 में 185 और 2021 में 257) मामले दर्ज हुए.

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सांसद अब्दुस्समद समदानी के सवालों के लिखित जवाब में राय ने बताया कि हिरासत में मौत के 396 मामलों के साथ बिहार इन दो वर्षों में हिरासत में मौत (2020 में 159 और 2021 में 237) के मामलों में तीसरे स्थान पर रहा है.

उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर साल 2020 में हिरासत में मौत के 1,940 और 2021 में 2,544 मामले दर्ज किए गए.

दक्षिणी प्रदेशों की बात करें तो तमिलनाडु में एक साल में इस तरह की मौतों में तेज उछाल देखा गया. मंत्री द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, जहां राज्य में साल 2020 में ऐसे 63 मामले दर्ज किए गए थे, 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 109 हो गया.

आंकड़ों के अनुसार, पूर्वोत्तर के राज्यों में पिछले दो वर्षों में हिरासत में होने वाली मौतों में कमी दर्ज की गई है. इस अवधि के दौरान मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में 10 से कम मामले दर्ज किए गए.

गोवा और कर्नाटक में इन दो वर्षों में 10 से अधिक मामले दर्ज नहीं हुए. वहीं, इन दो सालों में लक्षद्वीप, लद्दाख, दमन-दीव एवं दादर और नागर हवेली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस हिरासत में मौत के शून्य मामले दर्ज हुए.

इन आंकड़ों को लेकर विपक्ष ने यूपी सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर लिखा कि ‘आदित्यनाथ राज में थानों में मानवता दम तोड़ रही है.’


वहीं, उत्तर प्रदेश में हिरासत में हुई मौतों पर सरकार के आंकड़ों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, ‘हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पिछले पांच वर्षों से यही बात कह रहे हैं … हिरासत में हुई मौतों के मामलों में राज्य नंबर एक है. हम कहते रहे हैं कि यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार के राज में जंगलराज है. पुलिस हिरासत में बेगुनाह लोगों की हत्या की जा रही है.

पुलिस एनकाउंटर में मौत के मामलों में छत्तीसगढ़ शीर्ष पर

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने यह भी बताया कि पुलिस की मुठभेड़ में मौत के मामलों की बात करें, तो साल 2020 में 82 और 2021 में 151 मामले दर्ज किए गए.

राय के अनुसार, पिछले दो वर्षों में 54 मामलों के साथ छत्तीसगढ़ इस सूची में सबसे ऊपर रहा.

उन्होंने कहा कि इसके बाद जम्मू कश्मीर (2020 में पांच और 2021 में 50) दूसरे स्थान पर है, उसके बाद उत्तर प्रदेश (2020 में 16 और 2021 में 11) है.

मंत्री ने यह भी बताया कि उपरोक्त सभी आंकड़े राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के हैं.

राय ने कहा, ‘पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार राज्य के विषय हैं. यह मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे.’

उन्होंने जोड़ा, ‘हालांकि, केंद्र सरकार समय-समय पर सलाह जारी करती है और इसने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (पीएचआर), 1993 भी लागू किया है, जिसके तहत लोक सेवकों द्वारा कथित मानवाधिकार उल्लंघनों पर नजर रखने के लिए एनएचआरसी और राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना हुई है.’

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