जस्टिस यूयू ललित देश के 49वें प्रधान न्यायाधीश नियुक्त

जस्टिस उदय उमेश ललित 27 अगस्त को सीजेआई का पदभार ग्रहण करेंगे. उनका कार्यकाल तीन माह से कम का होगा. वह आठ नवंबर को 65 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होंगे.

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सीजेआई यूयू ललित. (फोटो: पीटीआई)

जस्टिस उदय उमेश ललित 27 अगस्त को सीजेआई का पदभार ग्रहण करेंगे. उनका कार्यकाल तीन माह से कम का होगा. वह आठ नवंबर को 65 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होंगे.

जस्टिस यूयू ललित. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस उदय उमेश ललित को बुधवार को भारत का 49वां प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) नियुक्त किया. राष्ट्रपति ने उनके नियुक्ति आदेश पर हस्ताक्षर किए.

जस्टिस ललित 27 अगस्त को सीजेआई का पदभार ग्रहण करेंगे. निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना एक दिन पहले (26 अगस्त को) सेवानिवृत्त होंगे.

कानून मंत्रालय की ओर से जारी एक अधिसूचना में कहा गया है, ‘संविधान के अनुच्छेद 124 के उपबंध-दो के प्रावधानों के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश उदय उमेश ललित को भारत का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त करती हैं. उनकी नियुक्ति 27 अगस्त, 2022 से प्रभावी होगी.’

जस्टिस ललित का कार्यकाल तीन माह से कम का होगा. वह आठ नवंबर को 65 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होंगे.

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने बुधवार को जस्टिस उदय उमेश ललित को अपना उत्तराधिकारी और भारतीय न्यायपालिका का 49वां प्रमुख नियुक्त किए जाने पर उन्हें बधाई दी.

पिछले साल 24 अप्रैल को 48वें सीजेआई के रूप में शपथ लेने वाले जस्टिस रमना अपने 16 महीने का कार्यकाल पूरा करने के बाद 26 अगस्त को सेवानिवृत्त होंगे.

सीजेआई ने गत तीन अगस्त को कानून मंत्रालय से इस आशय का एक पत्र प्राप्त करने के बाद अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस ललित की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी.

सीजेआई ने जस्टिस ललित को भारत के प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शानदार कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं दीं.

बयान में कहा गया है, ‘जस्टिस रमना ने विश्वास व्यक्त किया कि जस्टिस ललित बार के साथ-साथ पीठ में अपने लंबे और समृद्ध अनुभव के साथ अपने सक्षम नेतृत्व से न्यायपालिका को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाएंगे.’

कई महत्वपूर्ण फैसले देने वाली पीठ का हिस्सा रहे हैं जस्टिस ललित

जस्टिस ललित का जन्म 9 नवंबर, 1957 को हुआ था. उन्होंने जून 1983 में एक वकील के रूप में काम करना शुरू किया और दिसंबर 1985 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की थी.

वह बाद में दिल्ली आकर वकालत करने लगे और अप्रैल 2004 में, उन्हें शीर्ष अदालत द्वारा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया. इससे पहले 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सुनवाई के लिए उन्हें सीबीआई का विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था.

उन्हें 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.

जस्टिस ललित उन पीठों का हिस्सा थे, जिन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए, जिनमें मुसलमानों के बीच तत्काल ‘तीन तलाक’ के जरिये तलाक की प्रथा को अवैध और असंवैधानिक माना गया.

एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार को केरल के ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रबंधन करने का अधिकार दिया था, जो कि सबसे अमीर मंदिरों में से एक है, यह मानते हुए कि मंदिर के ‘विरासत के नियम को सेवक के अधिकार से जोड़ा जाना चाहिए.’

जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था कि शरीर के यौन अंग को छूना या यौन इरादे से किया गया शारीरिक संपर्क का कोई भी अन्य कृत्य पॉक्सो कानून की धारा सात के अर्थ के तहत यौन उत्पीड़न होगा.

पॉक्सो अधिनियम के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट के विवादास्पद ‘त्वचा से त्वचा’ या स्किन टू स्किन टच के फैसले को खारिज करते हुए पीठ ने कहा था, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत बच्चों के खिलाफ यौन हमले के अपराध को परिभाषित करने वाले प्रावधान को पीड़ित के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और यदि कोई सेक्सुअल इरादा मौजूद है तो अपराध को ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क हुए बिना भी अपराध माना जाना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)