महाराष्ट्र: ग़लती से जेल में रखे गए नाइजीरियाई व्यक्ति को दो लाख रुपये मुआवज़ा देने का निर्देश

एक 27 वर्षीय नाइजीरियाई व्यक्ति रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट में टाइपिंग की गलतियों को लेकर एक साल से अधिक समय से जेल में है. उसे कथित तौर पर अपने पास मादक पदार्थ रखने को लेकर अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

एक 27 वर्षीय नाइजीरियाई व्यक्ति रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट में टाइपिंग की गलतियों को लेकर एक साल से अधिक समय से जेल में है. उसे कथित तौर पर अपने पास मादक पदार्थ रखने को लेकर अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मादक पदार्थ के एक मामले में गलती से जेल में रखे गए एक नाइजीरियाई व्यक्ति को दो लाख रुपये का मुआवजा देने का शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया.

नाइजीरियाई व्यक्ति रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट में टाइपिंग की गलतियों को लेकर एक साल से अधिक समय से जेल में है.

जस्टिस भारती डांगरे की पीठ 27 वर्षीय नाइजीरियाई व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसे कथित तौर पर अपने पास मादक पदार्थ रखने को लेकर अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था.

अभियोजन के मुताबिक, व्यक्ति के पास से 116.19 ग्राम कोकीन और केसरिया रंग की दिल के आकार वाली 40.73 ग्राम गोलियां तथा 4.41 ग्राम गुलाबी रंग की गोलियां बरामद की गई थीं.

उल्लेखनीय है कि रासायनिक विश्लेषण की रिपोर्ट आने पर यह पता चला कि यह कोकीन नहीं थी, बल्कि लिडोकेन, टेपेनटाडोल और कैफीन थी.

हालांकि, फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) के सहायक निदेशक की रिपोर्ट में कहा गया था कि लिडोकेन और टेपेनटाडोल द नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के दायरे में आते हैं.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इस रिपोर्ट के आधार पर ठाणे सत्र अदालत ने जून 2021 में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी.

वहीं, एक साल बाद क्षेत्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला, औरंगाबाद के सहायक निदेशक ने खेद जताया और विश्लेषण में सुधार किया तथा कहा कि यह सामग्री एनडीपीएस एक्ट के दायरे में नहीं आती.

इसके आधार पर अगस्त 2021 में आरोपी ने जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया.

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील एए टाकलकर ने कहा कि राज्य दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करेगा और वर्तमान में मुआवजा देने की कोई नीति नहीं है.

इस जस्टिस डांगररे ने कहा, ‘तो आप लोगों को सलाखों के पीछे रख सकते हैं और सिर्फ इसलिए मुआवजा नहीं दे सकते क्योंकि कोई नीति नहीं है? जब (किसी व्यक्ति के) मौलिक अधिकारों से वंचित करने की बात आती है, तो आपको एक नीति की आवश्यकता होती है?’

जब जस्टिस डांगरे ने कहा कि वह राज्य को मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश देंगी, तो टाकलकर ने कहा, ‘मुआवजा जांच के अधीन होना चाहिए.’

जस्टिस डांगरे ने पलटवार करते हुए कहा, ‘यह बहुत स्पष्ट है कि एक गलत रिपोर्ट दी गई थी. (एफएसएल) अधिकारी स्वीकार कर रहे हैं कि गलती हुई थी.’

टाकलकर ने कहा कि आरोपी का पूर्ववृत्त है और उसी रासायनिक विश्लेषक ने एनडीपीएस के एक अन्य मामले में रिपोर्ट दी थी, जिसमें वह जमानत पर बाहर है.

जस्टिस डांगरे ने कहा, ‘तो आपका सहायक निदेशक झूठा बयान दे रहा है? सौभाग्य से उसे 22 महीने के बाद इसका एहसास होता है.’

जस्टिस डांगरे ने कहा कि चूंकि नाइजीरियाई नागरिक के पास से बरामद पदार्थ न तो एक मादक दवा है और न ही एक मन:प्रभावी पदार्थ, वह जमानत पर अपनी रिहाई के योग्य है.

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता, जो अनुच्छेद 21 के तहत एक नागरिक के लिए उपलब्ध है, एक विदेशी नागरिक के लिए भी उपलब्ध है जब अनुचित कैद की बात आती है.

जस्टिस डांगरे ने आदेश दिया, ‘मैं गैरकानूनी कैद के लिए जुर्माना लगाना और राज्य को 6 सप्ताह के भीतर 2 लाख रुपये की राशि का भुगतान करके अपीलकर्ता को मुआवजा देने का निर्देश देना उचित समझती हूं.’

उन्होंने कहा कि राज्य जांच के समापन पर दोषी पाए गए अधिकारियों से राशि वसूल करने के लिए स्वतंत्र है.

जस्टिस डांगरे ने आदेश दिया कि आरोपी को 25,000 रुपये के मुचलके पर जमानत पर रिहा किया जाए और राज्य सरकार को छह सप्ताह के अंदर उसे मुआवजे के तौर पर दो लाख रुपये अदा करने का निर्देश दिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)