नेपाल की राष्ट्रपति ने नागरिकता अधिनियम में संशोधन विधेयक समीक्षा के लिए संसद को वापस भेजा

नेपाल की संसद ने बीते 13 जुलाई को देश का पहला नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया था, जिस पर दो साल से अधिक समय से चर्चा चल रही थी, क्योंकि राजनीतिक दल इस पर आम सहमति बनाने में विफल रहे थे.

/
राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी. (फोटो: रॉयटर्स)

नेपाल की संसद ने बीते 13 जुलाई को देश का पहला नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया था, जिस पर दो साल से अधिक समय से चर्चा चल रही थी, क्योंकि राजनीतिक दल इस पर आम सहमति बनाने में विफल रहे थे.

राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी. (फोटो: रॉयटर्स)

काठमांडू: नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने नागरिकता अधिनियम पर संशोधन विधेयक संसद को समीक्षा के लिए वापस लौटा दिया है.

संसद के दोनों सदनों (नेशनल असेंबली और प्रतिनिधि सभा) द्वारा इसका समर्थन करने के बाद स्पीकर ने बीते 31 जुलाई को इस विधेयक को प्रमाणीकरण के लिए शीतल निवास (राष्ट्रपति भवन) को भेज दिया था.

राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, राष्ट्रपति ने रविवार को समीक्षा के लिए विधेयक को वापस सदन में भेज दिया.

द काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता सागर आचार्य द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 113 (3) के अनुसार नागरिकता अधिनियम पर संशोधन विधेयक प्रतिनिधि सभा (संसद का निचला सदन) को भेजा है, जिसमें कहा गया है कि इसकी समीक्षा की जरूरत है.’

दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की मुहर के बाद ही कानून बनता है. राष्ट्रपति द्वारा विधेयक को प्रमाणित करने में देरी ने लोगों के एक वर्ग के बीच चिंता पैदा कर दी थी.

हालांकि संविधान राष्ट्रपति को विधेयक को मंजूरी देने या समीक्षा के लिए वापस भेजने से पहले इसका अध्ययन करने के लिए 15 दिनों तक का समय लेने की अनुमति देता है.

राष्ट्रपति भवन के सूत्रों ने पिछले हफ्ते द काठमांडू पोस्ट को बताया था कि राष्ट्रपति भंडारी विशेषज्ञों और जनता के सदस्यों के साथ परामर्श कर रही थीं.

पार्टियों के बीच चिंता थी कि नेपाली पुरुषों से शादी के तुरंत बाद विदेशी महिलाओं को नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए और इसके लिए एक समयसीमा होनी चाहिए. हालांकि, बाद में संसद में लगभग सभी दलों ने इस विधेयक पर सहमति जताई और इसका समर्थन कर दिया था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, नेपाल की संसद ने बीते 13 जुलाई को देश का पहला नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया था, जिस पर दो साल से अधिक समय से चर्चा चल रही थी, क्योंकि राजनीतिक दल इस पर आम सहमति बनाने में विफल रहे थे.

प्रतिनिधि सभा में इस विधेयक पर 2020 से चर्चा चल रही थी, लेकिन कुछ प्रावधानों पर राजनीतिक दलों के बीच मतभेदों के कारण इसे समर्थन नहीं मिल पाया था. इनमें से एक प्रावधान नेपाली पुरुषों से विवाहित विदेशी महिलाओं के लिए प्राकृतिक नागरिकता प्राप्त करने के लिए सात साल की प्रतीक्षा अवधि था.

2018 में तत्कालीन केपी शर्मा ओली सरकार ने संसद सचिवालय में इस विधेयक को दर्ज कराया था, हालांकि विभिन्न दलों के बीच मतभेदों के कारण इसे कभी भी समर्थन के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया.

द काठमांडू पोस्ट की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, यह विधेयक जन्म से नागरिकता प्राप्त करने वाले माता-पिता के हजारों बच्चों के लिए वंश द्वारा नागरिकता प्राप्त करने का द्वार खोलता है. अधिनियम में 12 अप्रैल, 1990 से पहले नेपाली क्षेत्र में पैदा हुए सभी लोगों को जन्म से नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति का प्रावधान किया गया है.

हालांकि, उनके (जन्म से नागरिकता प्राप्त करने वाले माता-पिता) बच्चों को कानून के अभाव में वंश के आधार पर नागरिकता नहीं मिली है, क्योंकि संविधान में कहा गया है कि उन्हें नागरिकता देने का प्रावधान एक संघीय कानून द्वारा निर्देशित होगा. अब तक करीब 190,000 लोगों ने जन्म से नागरिकता हासिल कर ली है.

पहली बार विधेयक अनिवासी नेपालियों के लिए नागरिकता हासिल करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है. हालांकि वे राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारों का आनंद लेने के पात्र नहीं होंगे. यह प्रावधान केवल उन लोगों पर लागू होगा, जो दक्षिण एशियाई क्षेत्र से बाहर रहते हैं.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25