भारतीयों को ‘तानाशाही ग़ुरूर’ के चलते एकता को कमज़ोर नहीं होने देना चाहिए: मनमोहन सिंह

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखे एक आलेख में कहा कि विभाजनकारी राजनीति तात्कालिक फ़ायदा भले पहुंचाए लेकिन यह देश की प्रगति में बाधा खड़ी करती है.

//
मनमोहन सिंह. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखे एक आलेख में कहा कि विभाजनकारी राजनीति तात्कालिक फ़ायदा भले पहुंचाए लेकिन यह देश की प्रगति में बाधा खड़ी करती है.

मनमोहन सिंह. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक लेख में कहा कि भारतीय नागरिकों को संकल्प करना चाहिए कि वे ‘तानाशाही अहंकार’ द्वारा उन्हें मिली स्वतंत्रता नहीं छिनने देंगे और न ही नफरत से एकता को कमजोर करने दिया जाएगा.

द हिंदू में प्रकाशित इस आलेख में पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘जब हर भारतीय गर्व से तिरंगे को सलामी देगा, तिरंगा हमें उस समग्र संस्कृति की भी याद दिलाएगा जो हमें दुनिया का एक विशेष महान लोकतंत्र बनाती है.’

सिंह ने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम ने अलग-अलग पहचान रखने वाले भारतीयों को एकजुट किया और ‘यह एकता को सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी, भाषाई रूप से अतिवादी, जातिवादी और लिंग असंवेदनशील अभियानों से नष्ट नहीं होनी चाहिए.’

उन्होंने कहा कि इस तरह की चालें अस्थायी राजनीतिक फायदा तो दे सकती हैं, लेकिन देश की प्रगति के मार्ग में बाधा का काम करेंगी.

कांग्रेस नेता ने कहा कि समृद्धि का लाभ कुछ चुनिंदा कारोबारियों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद गरीबी कम करना और आर्थिक विषमताओं को पाटना सार्वजनिक नीति का एक प्रमुख सिद्धांत बन गया. जब हम समावेशी आर्थिक विकास के रास्ते पर बढ़ रहे हैं, हमें देश के कुछ चुनिंदा कारोबारियों को ही इसका लाभ नहीं लेने देना चाहिए जबकि आय में अंतर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है.’

उन्होंने साथ ही जोड़ा कि किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए बिना रोजगार के वृद्धि अच्छी बात नहीं है. बेरोजगारी न केवल हमारे मानव संसाधनों के अधिकतम उपयोग को सीमित करती है बल्कि सामाजिक कलह और विभाजनकारी राजनीति के लिए माकूल जमीन भी तैयार करती है.

उन्होंने आगे कहा कि सांप्रदायिक और भाषाई अवरोधों के चलते नागरिकों की देशभर में आवाजाही में मुश्किलें आएंगी और इसका विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

सिंह ने कहा, ‘भारतीय उद्योगों के अगुवा लोगों को इन खतरों को समझना चाहिए और ऐसे में जब विभाजनकारी राजनीति देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन गई है तब मूकदर्शक बने रहने की राष्ट्रीय एकता के लिए आवाज उठानी चाहिए.

उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर देने की सलाह देते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा अगर हमारे वैज्ञानिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों और शोध निकायों को कामचलाऊ नेतृत्व के हाथों सौंपकर कमजोर कर दिया जाए. वो नेतृत्व, जिसकी प्राथमिकता अकादमिक अखंडता की कीमत पर सांस्कृतिक पुनरुत्थानवाद को आगे बढ़ाना है.

उन्होंने कहा कि देश में भारत की प्राचीन काल से वैज्ञानिक परंपरा रही है, लेकिन छद्म-विज्ञान का ऐसा छलावा तैयार नहीं किया जाना चाहिए जिससे हमारे वैज्ञानिक समुदाय की बदनामी हो.

इसके आगे उन्होंने युवाओं की अच्छी सेहत सुनिश्चित करने की बात कही. हालिया एनएफएचएस सर्वे का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण हमें ध्यान दिलाता है कि प्रजनन आयुवर्ग के बच्चों और महिलों में बड़े पैमाने पर अल्पपोषण, वृद्धि रुकना और एनीमिया देखा गया है. उनके लिए पोषण आधारित योजनाएं शुरू की जानी चाहिए.

उन्हें इस बात का जिक्र भी किया कि किस तरह कोविड-19 महामारी ने हमारी स्वास्थ्य-व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है. उन्होंने कहा कि सभी नागरिकों को पर्याप्त वित्तीय सुरक्षा के साथ आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का लक्ष्य होना चाहिए और इसे पूरे देश में समान रूप से हासिल किया जाना चाहिए.

उन्होंने देश की आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर अपने युवावस्था के अनुभव साझा करते हुए कहा, ‘एक 14 साल के एक युवा लड़के के बतौर मैंने उस समय प्राप्त हुई नई-नई आज़ादी के उत्साह के साथ देश के विभाजन के चलते हुई दर्दनाक त्रासदियों का भी अनुभव किया. मुझे उम्मीद थी कि भारत उस तरह की किसी फूट का सामना किए बिना एक राष्ट्र के रूप में मजबूत होगा. आज भारत ने जो कुछ भी हासिल किया है उस पर मुझे नाज़ है और मैं इस महान देश  के भविष्य को लेकर आशान्वित हूं. लेकिन सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले सांप्रदायिक नारों और गालियों को लेकर मैं चिंतित हूं जो लोगों को बांट रहे हैं.’

दस साल देश के प्रधानमंत्री रहे सिंह ने आगे ‘लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की रक्षा करने वाली संस्थाओं के कमजोर हो जाने’ के बारे में चिंता व्यक्त की और कहा कि चुनावी राजनीति को धन बल और इनकी मददगार बन रही सरकारी एजेंसियों से बचाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘यह देश के नागरिकों पर है कि वे कड़ी मेहनत से पाई गई आजादी से मिले लाभों को बचाकर रखें.’

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25