मध्य प्रदेश: राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के छात्र फीस वृद्धि के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट पहुंचे

जबलपुर के धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय ने कम उपस्थिति का हवाला देते हुए 120 छात्रों को परीक्षा में बैठने से रोक दिया था. छात्रों ने कम उपस्थिति का कारण उनका स्वास्थ्य ठीक न होना बताया था, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन 65 फीसदी अनिवार्य उपस्थिति पर अड़ा रहा.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: अभी शर्मा/CC BY 2.0)

जबलपुर के धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय ने कम उपस्थिति का हवाला देते हुए 120 छात्रों को परीक्षा में बैठने से रोक दिया था. छात्रों ने कम उपस्थिति का कारण उनका स्वास्थ्य ठीक न होना बताया था, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन 65 फीसदी अनिवार्य उपस्थिति पर अड़ा रहा.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: अभी शर्मा/CC BY 2.0)

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर स्थित धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (डीएनएलयू) के खिलाफ उसके 78 छात्रों ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया है.

उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर उपचारात्मक कक्षाओं (Remedial Classes; Extra Classes or Bonus Classes) के लिए भुगतान किए बिना पुन: परीक्षा लेने और उन व्याख्यानों (लेक्चर्स) के लिए विश्वविद्यालय द्वारा लगाए गए शुल्क को माफ करने की अनुमति मांगी है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रिट याचिका 16 अगस्त को दायर की गई थी और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सूचीबद्ध की जा चुकी है. इस पर सुनवाई होना अभी बाकी है.

विभिन्न बैच के छात्रों ने अपनी याचिका में उल्लेख किया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनमें से 120 के नामों के साथ तीन सूचियां प्रकाशित कीं और उन्हें पिछले सेमेस्टर की अंतिम परीक्षा में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया है.

धर्मशास्त्र विश्वविद्यालय ने पिछले सेमेस्टर की अंतिम परीक्षा 24 जून से जुलाई के अंत तक आयोजित की थी.

छात्रों की याचिका के अनुसार, प्रशासन ने यह भी घोषणा की है कि वह इन छात्रों के लिए रेमेडियल क्लास आयोजित करेगा और उन्हें प्रति विषय 7,500 रुपये का शुल्क देना होगा. इसमें आगे कहा गया है कि वापस ली जा रही परीक्षा (री-एग्जाम) में बैठने के लिए उन्हें रेमेडियल क्लास लेना अनिवार्य है.

याचिका में कहा गया है कि रेमेडियल क्लास के लिए विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित शुल्क बिना किसी पूर्व प्रावधान के मनमाना प्रकृति का है और संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करता है.

इसमें यह भी तर्क दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि हालांकि विश्वविद्यालय अपनी फीस स्वयं तय कर सकते हैं, लेकिन उन्हें फीस के मनमाने निर्धारण से बचना चाहिए.

रिट याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि पहले तो विश्वविद्यालय ने कम उपस्थिति वाले छात्रों के मेडिकल सर्टिफिकेट स्वीकार कर लिए, लेकिन फिर टर्म-एंड परीक्षा शुरू होने के बाद मनमाने और संदिग्ध तरीके से उन दस्तावेजों को खारिज कर दिया.

छात्रों ने यह भी आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा अनिवार्य प्रति सेमेस्टर 60 कक्षाओं की तुलना में बहुत कम कक्षाएं आयोजित की हैं.

धर्मशास्त्र विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने इन सभी आरोपों से इनकार किया है.

बहरहाल, छात्रों ने बीते बुधवार (17 अगस्त) को नए अकादमिक सत्र के पहले दिन छात्रों को परीक्षा में बैठने से रोकने और रेमेडियल क्लास के लिए अत्यधिक शुल्क लगाने के लिए अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन भी किया था.

छात्रों ने कहा कि जबलपुर पुलिस के बुधवार को परिसर में आने और उनके साथ बातचीत करने की कोशिश के बाद कुलपति वी. नागराज उनकी मांगों को लेकर एक बैठक आयोजित करने पर सहमत हुए.

पांचवें वर्ष के एक छात्र आदित्य बी. पुरी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘बैठक बिल्कुल भी मददगार साबित नहीं हुई. कुलपति विश्वविद्यालय की कार्रवाई को सही ठहराने की कोशिश करते रहे और कहा कि कुछ चीजें उनकी जानकारी के बिना हुई हैं.’

पुरी ने आगे कहा, ‘लेकिन हम चाहते हैं कि कुलपति कई कारणों से इस्तीफा दें. मांग पूरी होने तक हम अपना विरोध जारी रखेंगे.’

पांचवें वर्ष के छात्र शैलेश्वर यादव, जिन्हें एक विषय की परीक्षा नहीं देने दी गई थी, ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सूची परीक्षा से दो दिन पहले आई थी.

यादव ने कहा, ‘कई छात्रों को चिकित्सा संबंधी समस्याएं थीं, जिनके चलते वे कक्षाओं में उपस्थित नहीं हो पा रहे थे. अब तक हम मेडिकल सर्टिफिकेट देकर पुन:परीक्षा के लिए अपील कर पाते थे, लेकिन प्रशासन ने नया नियम बना दिया कि मेडिकल समस्या वाले छात्रों को भी परीक्षा में शामिल होने के लिए कम से कम 65 फीसदी उपस्थिति की आवश्यकता होगी.’

यादव ने बताया कि इससे पहले वे परीक्षा में बैठ सकते थे और मुफ्त में रेमेडियल क्लास में शामिल हो सकते थे. उन्हें 300 रुपये का भुगतान करके री-एग्जाम में बैठने की अनुमति होती थी.

उन्होंने कहा, ‘अब हमें पता लगा है कि विश्वविद्यालय ने रेमेडियल क्लास के लिए 7,500 रुपये प्रति विषय के हिसाब से फीस लेने का फैसला किया है. इसलिए अगर एक छात्र को सभी परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया गया तो उसे सिर्फ एक महीने की रेमेडियल क्लास और री-एग्जाम के लिए 40,000 रुपये से अधिक का भुगतान करना होगा.’

राजस्थान के अलवर के रहने वाले पांचवें वर्ष के एक अन्य छात्र नीलेश कुमार ने बताया कि उन्हें परीक्षाओं में नहीं बैठने दिया गया, जबकि उनकी किडनी फेल हो गई थीं और वे अस्पताल में थे.

इस संंबंध में विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन भी दिया था कि उन्हें परीक्षा में बैठने दिया जाएगा, लेकिन बाद में वे मुकर गए.

छात्रों द्वारा रिट याचिका दायर करने के बाद विश्वविद्यालय ने घोषणा की है कि रेमेडियल क्लास की फीस कम करके 5000 रुपये प्रति विषय की जाएगी.

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलसचिव जलज गोंटिया ने कहा कि विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार, 70 फीसदी से कम उपस्थिति वाले छात्र परीक्षाओं में नहीं बैठ सकते. अगर वे अपना मेडिकल सर्टिफिकेट भी पेश करते हैं तो भी उन्हें 65 फीसदी उपस्थिति की आवश्यकता होगी.

उन्होंने कहा कि इस साल हमारे कुलपति ने सभी छात्रों (चिकित्सा समस्या वालों समेत) के लिए 70 फीसदी उपस्थिति माफ करके 65 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य करके अपवाद पेश किया है.

वापस परीक्षा कराने में होने वाले खर्चों को गिनाते हुए उन्होंने छात्रों से फीस वसूले जाने को जायज ठहराया है.

उनका कहना है कि जो छात्र पिछली परीक्षाएं नहीं दे सके, उनका एक साल खराब हो जाएगा. कुलपति उनकी मदद करना चाहते थे और उन्हें एक साल बचाने का मौका दिया है, इसीलिए रेमेडियल क्लास आयोजित की जा रही हैं.

कुलसचिव ने कहा कि छात्रों ने रिट याचिका लगा दी है और मामला अदालत में विचाराधीन है, इसलिए अब उन्हें विरोध प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, क्योंकि विश्वविद्यालय वही करेगा जो कोर्ट आदेश देगा. उन्हें कक्षाओं में शामिल होना चाहिए और दूसरे छात्रों व शिक्षकों को परेशान नहीं करना चाहिए.

हालांकि, छात्र प्रदर्शन और कक्षाओं के बॉयकॉट की जिद पर अड़े हैं.

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