अस्पताल कंपनियों जैसे चलाए जा रहे हैं, डॉक्टर कॉरपोरेट-चिकित्सीय हित में संतुलन बनाएं: सीजेआई

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि अस्पताल कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं, जहां मुनाफ़ा कमाना समाज की सेवा से अधिक महत्वपूर्ण है. इसके कारण डॉक्टर और अस्पताल समान रूप से मरीजों की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं.

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प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना. (फोटो: पीटीआई)

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि अस्पताल कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं, जहां मुनाफ़ा कमाना समाज की सेवा से अधिक महत्वपूर्ण है. इसके कारण डॉक्टर और अस्पताल समान रूप से मरीजों की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं.

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने मंगलवार को कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं का अनियंत्रित कॉरपोरेटाइजेशन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में असमानताओं को बढ़ा रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई ने कहा कि बहुत तेज दर से निजी अस्पताल खोले जा रहे हैं, जरूरी नहीं कि यह एक बुरी चीज है, लेकिन संतुलन बनाने की सख्त जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि अस्पताल कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं, जहां मुनाफा कमाना समाज की सेवा से अधिक महत्वपूर्ण है. इसके कारण, डॉक्टर और अस्पताल समान रूप से मरीजों की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं. वे उनके लिए सिर्फ संख्या होते हैं. इस प्रवृत्ति ने एकाधिकार भी फैलाया है और यह स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में असमानताओं को गहरा कर रही है.’

सीजेआई नई दिल्ली में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एनएएमएस) में आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे.

सीजेआई ने आगे कहा, ‘मैं जानता हूं कि विभिन्न अस्पतालों के बोर्ड में कई ऐसे डॉक्टर हैं जिन पर चिकित्सा हित के साथ कॉरपोरेट हित में संतुलन बैठाने की जिम्मेदारी है. अब, कॉरपोरेट बोर्डों के बढ़ते हस्तक्षेप के साथ डॉक्टरों की व्यक्तिगत स्वायत्तता खत्म हो रही है.’

डॉक्टरों को आधारहीन मुकदमेबाजी से बचाने पर सीजेआई ने कहा कि अगर डॉक्टर द्वारा सही इरादे से सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए गए हैं तो नतीजा चाहे जो भी रहा हो, उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘इसने (सुप्रीम कोर्ट ने) स्पष्ट तौर पर कहा था कि डॉक्टरों को आधारहीन और अन्यायपूर्ण मुकदमेबाजी से बचाने की जरूरत है. समय के साथ इस अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा कि निर्णय लेने में गलती या दुर्घटना, एक चिकित्सा पेशेवर की ओर से की गई लापरवाही का प्रमाण नहीं है. वह केवल तभी उत्तरदायी होगा जहां उनका आचरण क्षेत्र के उचित प्रतिस्पर्धी डॉक्टर के मानकों से गिर जाए. हालांकि, इन मुद्दों पर प्रत्येक मामले के विशेष तथ्यों को देखते हुए निर्णय लेने की जरूरत होती है. अगर डॉक्टर द्वारा सही इरादे से सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए गए हैं तो नतीजा चाहे जो भी रहा हो, उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए. आखिरकार, डॉक्टर भी तो इंसान होते हैं.’

साथ ही, उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के दौरान डॉक्टरों को डराने-धमकाने, हमला करने, गालियां देने आदि को देखकर उन्हें बुरा महसूस हुआ. इसके बावजूद भी डॉक्टर अपना काम करते रहे. उनके प्रति यह रवैया दुर्भाग्यपूर्ण था.

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