सुप्रीम कोर्ट तीस्ता सीतलवाड़ की ज़मानत अर्ज़ी पर 30 अगस्त को सुनवाई करेगा

तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में ‘निर्दोष लोगों को फंसाने’ के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के लिए जून में गिरफ्तार किया गया था. बीते 30 जुलाई को अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने मामले में सीतलवाड़ तथा पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार की जमानत याचिकाएं खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें यह जांचना होगा कि क्या उसे कैद की जरूरत है.

तीस्ता सीतलवाड़. (फोटो: पीटीआई)

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में ‘निर्दोष लोगों को फंसाने’ के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के लिए बीते जून महीने में गिरफ़्तार किया गया था. बीते 30 जुलाई को अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने मामले में सीतलवाड़ तथा पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार की ज़मानत याचिकाएं ख़ारिज कर दी थीं.

तीस्ता सीतलवाड़. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में ‘बेगुनाहों’ को फंसाने के लिए कथित रूप से साक्ष्य गढ़ने के मामले में गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत अर्जी पर 30 अगस्त को सुनवाई करेगा.

गुजरात राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि सीतलवाड़ की याचिका पर जवाब तैयार है, लेकिन कुछ सुधारों की जरूरत है.

पीठ ने कहा कि याचिका पर जवाब 27 अगस्त तक दाखिल किया जाए. पीठ में जस्टिस एसआर भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया भी शामिल हैं.

पीठ ने कहा, ‘उनका (मेहता का) कहना है कि याचिका पर जवाब तैयार है, लेकिन और सुधारों की जरूरत है. उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया है कि रविवार को या उससे पहले जवाब दाखिल कर दिया जाएगा. अगर कोई प्रत्युत्तर होगा तो सोमवार (29 अगस्त तक) दाखिल किया जाए.’

उसने कहा कि 30 अगस्त को पहले मामले के रूप में इसे सुनवाई के लिए लिया जाएगा.

मेहता ने जवाब देने के लिए समय मांगा, जिस पर पीठ ने कहा कि बात यह है कि सीतलवाड़ जेल में हैं.

मेहता ने कहा कि वह कानून के अनुसार हिरासत में हैं और उन्होंने पीठ से अनुरोध किया कि आगामी सोमवार को मामले को सुनवाई के लिए लिया जा सकता है.

लाइव लॉ के मुताबिक, अदालत ने कहा, ‘हमें यह जांचना होगा कि क्या उन्हें कैद में रखने की जरूरत है. ’

सुप्रीम कोर्ट इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही लंबित होने के बावजूद गुरुवार को अंतरिम राहत के लिए सीतलवाड़ की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया था.

शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त को सीतलवाड़ की जमानत अर्जी पर गुजरात सरकार से जवाब मांगा था. सीतलवाड़ को 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में ‘निर्दोष लोगों को फंसाने’ के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के लिए जून में गिरफ्तार किया गया था.

गुजरात हाईकोर्ट ने तीन अगस्त को सीतलवाड़ की जमानत अर्जी पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और सुनवाई के लिए 19 सितंबर की तारीख तय की थी.

वहीं, 30 जुलाई को अहमदाबाद में एक सत्र अदालत ने मामले में सीतलवाड़ तथा पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार की जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए कहा था कि उनकी रिहाई से गलत काम करने वाले लोगों को संदेश जाएगा कि कोई भी आरोप लगा सकता है और सजा से बच सकता है.

अदालत ने जमानत याचिका खारिज करने के साथ ही कहा था कि आरोपियों ने साजिश रचकर राज्य को बदनाम किया है.

गौरतलब है कि मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया था कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल के इशारे पर की गई एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे.

वहीं, मामले में तीसरे आरोपी पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने जमानत के लिए अर्जी नहीं दी है. भट्ट को जब इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, तब वह एक अन्य आपराधिक मामले में पहले ही जेल में थे.

सीतलवाड़, श्रीकुमार और भट्ट के खिलाफ एफआईआर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीते 24 जून को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को 2002 के दंगा मामले में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दी गई क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को खारिज किए जाने के एक दिन बाद 25 जून को दर्ज हुई थी.

एफआईआर में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के एक हिस्से का हवाला दिया गया था, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘हमें यह प्रतीत होता है कि गुजरात राज्य के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का एक संयुक्त प्रयास खुलासे करके सनसनी पैदा करना था, जो उनके अपने ज्ञान के लिए झूठे थे. वास्तव में, प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए.’

परिणामस्वरूप, एफआईआर में तीनों पर झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया, ताकि कई लोगों को ऐसे अपराध में फंसाया जा सके जो मौत की सजा के साथ दंडनीय हो.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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