गुजरात में अहमदाबाद नगर निगम ने अपनी सीमा के भीतर आने वाले एकमात्र बूचड़खाने को जैन धर्म के पर्यूषण पर्व के दौरान बंद करने का आदेश दिया था, जिसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी.
नई दिल्ली: जैन धर्म के लोगों के पर्यूषण पर्व के दौरान अहमदाबाद के एकमात्र बूचड़खाने को बंद करने के खिलाफ याचिका लगाने वाले याचिकाकर्ता से गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि वे ‘एक या दो दिनों के लिए’ खुद को मांस खाने से ‘रोक’ सकते हैं.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद नगर निगम ने त्योहार की अवधि के लिए अपनी सीमा के भीतर आने वाले एकमात्र बूचड़खाने को बंद करने का निर्णय लिया था, जिसे पलटने की मांग लेकर कुल हिंद जमीयत-अल कुरेश एक्शन कमेटी गुजरात ने हाईकोर्ट का रुख किया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, निगम की स्थायी समिति ने 18 अगस्त को एक प्रस्ताव में 24 से 31 अगस्त के बीच पर्यूषण पर्व और 5 से 9 सितंबर के बीच संबंधित त्योहारों के दौरान बूचड़खाने को बंद रखने का आदेश दिया था. इस प्रकार कुल 13 दिनों तक बूचड़खाने को बंद करने की जरूरत होती.
हालांकि, जस्टिस संजीव भट्ट की पीठ अदालत का रुख करने के लिए याचिकाकर्ता को सजा देती हुई प्रतीत हुई. जस्टिस भट्ट ने उन्हें किसी भी प्रकार की अंतरिम राहत देने से भी इनकार कर दिया और मामले को 2 सितंबर के लिए स्थगित कर दिया.
लाइव लॉ के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘आप अंतिम समय में क्यों दौड़-भाग कर रहे हैं, हम इस पर सुनवाई नहीं करेंगे. हर साल आप अदालत आते हैं. आप खुद को एक-दो दिन (मांस) खाने से रोक सकते हैं.’
दानिश कुरैशी रजावाला के प्रतिनिधित्व वाली समिति ने जवाब में कहा कि उनका मुद्दा यह नहीं है कि क्या खुद को रोका जा सकता है, बल्कि उनका मसला मौलिक अधिकारों को लेकर है.
रजावाला ने कहा, ‘बात संयम रखने की नहीं है, बात नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर है और हम हमारे देश की कल्पना इस तरह नहीं कर सकते कि जहां हमारे मौलिक अधिकारों पर एक मिनट की भी रोक हो. अन्य पिछले मौकों पर भी बूचड़खाने बंद कर दिए गए थे.’
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि दिसंबर 2021 में इसी हाईकोर्ट ने अहमदाबाद नगर निगम से लोगों की ‘भोजन की आदतों को नियंत्रित’ नहीं करने के लिए कहा था.
उस समय, जस्टिस बीरेन वैष्णव 20 स्ट्रीट वेंडरों द्वारा दर्ज याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. उन्होंने स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का नियमन) अधिनियम-2014 को चुनौती दी थी.
सुनवाई करते हुए जस्टिस वैष्णव ने अहमदाबाद नगर निगम को स्ट्रीट वेंडरों को मांसाहारी खाना बेचने से रोकने पर कड़ी फटकार लगाई थी.
पीठ ने तब पूछा था, ‘आपको मांसाहारी भोजन पसंद नहीं है, यह आपका मसला है. आप यह कैसे तय कर सकते हैं कि बाहर लोगों को क्या खाना चाहिए? आप लोगों को वह खाने से कैसे रोक सकते हैं, जो वे चाहते हैं.’
इस संबंध में अहमदाबाद नगर निगम की ओर से पेश हुए वकील सत्यम छाया ने दावा किया था कि याचिकाकर्ताओं को कुछ गलतफहमी हो गई है, क्योंकि ‘सभी मांसाहारी ठेले आदि को हटाने का कोई अभियान नहीं चल रहा है. ये सड़क पर अतिक्रमण करने वालों के लिए है, जिससे सार्वजनिक यातायात या पैदल चलने वालों को बाधा होती है.’
इस पर न्यायालय ने पूछा था कि क्या मांसाहार विक्रेताओं को निशाना बनाने के लिए अतिक्रमण हटाने का स्वांग रचा जा रहा है, क्योंकि जो पार्टी सत्ता में है, उसने कहा है कि अंडे नहीं बिकने चाहिए और आप लोगों को हटाने लगे.
मालूम हो कि नवंबर 2021 में गुजरात के वडोदरा, राजकोट और भावनगर के बाद अहमदाबाद नगर निगम के नेताओं ने खुले में मांस बिक्री पर बैन लगाने की मांग की थी, जिसके बाद कथित तौर पर मांसाहारी व्यंजन बेचने वालों को हटाने का अभियान शुरू हो गया था. राज्य के सभी आठ नगर निगमों पर भाजपा का शासन है.
बहरहाल हाईकोर्ट की वर्तमान टिप्पणी पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, ‘गुजरात में एक और मीट बैन. जब मांस व्यापारियों द्वारा चुनौती दी गई, तो माननीय लॉर्डशिप ने कहा, ‘अपने आप को 1-2 दिनों के लिए मांस खाने से रोकें.’ बहुत सम्मानपूर्वक और ईमानदारीके साथ कहना चाहूंगा कि अदालत के सामने सवाल व्यवसाय के मौलिक अधिकार के बारे में था, न कि मांस खाने के बारे में था.’
Hon’ble HC could have paid attention to its own observations dated December 9 earlier where it had said "You don't like non-veg food, it is your lookout. How can you decide what people should eat outside? How can you stop people from eating what they want” https://t.co/q2XlU3BD7l
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 31, 2022