उत्तर प्रदेश: 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की अधिसूचना रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2016 और 2019 में जारी अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली याचिका को स्‍वीकार करते हुए उन्हें रद्द कर दिया. याचिका डॉ. बीआर आंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण, गोरखपुर और अन्य ने दायर की थी.  

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इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर. (फाइल फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2016 और 2019 में जारी अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली याचिका को स्‍वीकार करते हुए उन्हें रद्द कर दिया. याचिका डॉ. बीआर आंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण, गोरखपुर और अन्य ने दायर की थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर. (फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) की श्रेणी में रखने संबंधी राज्‍य सरकार की अधिसूचना को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निरस्‍त किए जाने के बाद राजनीतिक हलचल शुरू हो गई है.

प्रदेश के मुख्‍य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) ने इन 18 पिछड़ी जातियों के ‘हक’ की लड़ाई लड़ने का इरादा जताया है, वहीं कांग्रेस ने सत्‍तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर इन जातियों के वोट लेकर उन्‍हें धोखा देने का आरोप लगाया है.

भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी ने अदालत के इस आदेश का स्‍वागत करते हुए कहा है कि राज्‍य सरकार द्वारा 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने संबंधी राज्‍य सरकार की पूर्व में जारी अधिसूचनाएं त्रुटिपूर्ण और ‘असंवैधानिक’ थीं.

हालांकि निषाद समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने वाली निषाद पार्टी ने स्‍पष्‍ट किया है कि वह इस मामले को लेकर संघर्ष जारी रखेगी. निषाद पार्टी के रुख से ऐसा लगता है कि उसे अब भी उम्‍मीद है कि भाजपा इस दिशा में कुछ करेगी.

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल करने के लिए राज्‍य सरकार द्वारा 2016 और 2019 में जारी अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली याचिका को स्‍वीकार करते हुए उन्हें रद्द कर दिया था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, यह जनहित याचिका डॉ. बीआर आंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण, गोरखपुर और अन्य ने दायर की थी.

तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने 22 दिसंबर, 2016 को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें 18 ओबीसी जातियों को एससी श्रेणी में शामिल करने का प्रावधान था. हालांकि हाईकोर्ट ने 24 जनवरी, 2017 को इन 18 ओबीसी जातियों को एससी सर्टिफिकेट जारी करने पर रोक लगा दी थी.

उसके बाद योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने वर्ष 2019 में 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल करने से संबंधित अधिसूचना जारी की थी, लेकिन उनके कार्यान्वयन पर अदालत ने रोक लगा दी थी.

इससे पहले भी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार ने 2005 में एक आदेश जारी कर इन पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने की कोशिश की थी, लेकिन उस पर भी हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. दो साल बाद मायावती की बसपा सरकार ने इस आदेश को रद्द कर दिया था.

हालांकि बाद में मायावती ने केंद्र को पत्र लिखकर इनमें से कुछ जातियों को अनुसूचित की श्रेणी में शामिल करने को अपना समर्थन दिया था.

मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ जाति के लोगों की संख्‍या कुल मिलाकर राज्य की अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लोगों की आबादी की लगभग 50 फीसदी है और उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से ज्‍यादातर का नतीजा इनके वोटों पर निर्भर करता है.

राजनीतिक पार्टियां 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां कर रही हैं. ऐसे में इन जातियों का सियासी रुख काफी मायने रख सकता है.

आमतौर पर यादव बिरादरी में आधार रखने वाली समाजवादी पार्टी अब अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाताओं के बीच अपने प्रभाव का विस्तार करने की इच्छुक है. इसके लिए उसने छोटी जाति केंद्रित पार्टियों- अपना दल (कमेरावादी), महान दल और जनवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है.

वहीं, सत्तारूढ़ भाजपा उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से गैर-यादव अन्‍य पिछड़ी जातियों का समर्थन हासिल करने पर काम कर रही है. अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी अब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी हैं.

विपक्षी दलों ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है कि वे 18 पिछड़ी जातियों के इस मामले को अगले लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे.

सपा नेता राजपाल कश्यप ने परोक्ष रूप से आरोप लगाया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिस याचिका पर इन 18 जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की अधिसूचनाएं रद्द कीं, उनके पीछे भाजपा सरकार थी. योगी आदित्यनाथ सरकार अन्‍य पिछड़े वर्ग के लोगों के अधिकारों को छीन रही है.

उन्‍होंने कहा, ‘हमारे नेता अखिलेश यादव ने 2016 में बहुत चर्चा के बाद 18 जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की अधिसूचना जारी करवाई थी. भाजपा ने इन जातियों के लिए वादा तो किया लेकिन उसे निभाया नहीं. यह इन सबसे पिछड़ी जातियों के साथ पूर्ण विश्वासघात है.’

कश्‍यप ने कहा, ‘वे भाजपा नेता और उनके सहयोगी नेता कहां हैं, जो पिछड़ी जातियों की राजनीति करते हैं? भाजपा सरकार को इसके पिछड़े विरोधी कदम का जवाब देने की जरूरत है.’

कांग्रेस ने भी भाजपा पर हमला करते हुए दावा किया कि सत्तारूढ़ दल ने इन 18 पिछड़ी जातियों को धोखा दिया है.

कांग्रेस प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने इस मुद्दे पर कहा कि हाईकोर्ट के आदेश से यह साफ हो गया है कि भाजपा ने चुनाव में वोट लेने के लिए इन 18 जातियों के लोगों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का भरोसा दिलाया और उनके वोट लेने के बाद उन्हें धोखा दे दिया.

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ-साथ केंद्र में भी भाजपा की सरकार है, अगर यह पार्टी (भाजपा) इन 18 जातियों कि वाकई हितैषी होती तो संसद में कानून लाकर इनको अनुसूचित जातियों में शामिल करने की प्रक्रिया को संवैधानिक रूप दे सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं करके एक बार फिर इन्हें धोखा दिया है.

निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने कहा कि राज्य सरकार के रद्द किए गए आदेश में एक तकनीकी खामी थी.

उन्‍होंने कहा, ‘हम मझवार के आरक्षण के लिए लड़ना जारी रखेंगे, जिसके तहत निषाद, केवट, मल्लाह और बिंद सहित सात जातियां आती हैं और इस संबंध में एक हस्ताक्षर अभियान शुरू करेंगे. हम इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिलेंगे.’

गौरतबल है कि साल 2019 में केंद्र सरकार ने 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का योगी सरकार का आदेश असंवैधानिक बताया था.

बता दें कि साल 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे जांच और नियमों के अनुसार दस्तावेजों पर आधारित 17 ओबीसी जातियों को एससी प्रमाण-पत्र जारी करें.

योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा जारी निर्देश में जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की बात कही गई थी, उनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी व मछुआ शामिल थे.

इससे पहले इस बारे में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने भी इसे असंवैधानिक कहा था. उन्होंने कहा था कि प्रदेश सरकार इस आदेश के बाद उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग नहीं मानेगी.

वहीं, इन बिरादरियों को अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ इसलिए नहीं मिलेगा, क्योंकि कोई भी सरकार मात्र आदेश जारी करके न तो उन्हें किसी सूची में डाल सकती है और न ही हटा सकती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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