पेंशन घोटाला: एमपी सरकार ने 17 साल तक नहीं दी मुकदमे की मंज़ूरी, विजयवर्गीय के ख़िलाफ़ केस बंद

मध्य प्रदेश कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के इंदौर के महापौर रहते के दौरान नगर निगम द्वारा अपात्रों, काल्पनिक नाम वाले लोगों और मृतकों तक को पेंशन का बेजा लाभ दिए जाने से सरकारी ख़जाने को 33 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

कैलाश विजयवर्गीय. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मध्य प्रदेश कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के इंदौर के महापौर रहते के दौरान नगर निगम द्वारा अपात्रों, काल्पनिक नाम वाले लोगों और मृतकों तक को पेंशन का बेजा लाभ दिए जाने से सरकारी ख़जाने को 33 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

कैलाश विजयवर्गीय. (फोटो: पीटीआई)

इंदौर: मध्य प्रदेश में इंदौर की विशेष अदालत ने वर्ष 2005 के कथित पेंशन घोटाले में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ दायर शिकायत पर कार्यवाही खत्म कर दी है, क्योंकि 17 साल का लंबा अरसा बीतने के बावजूद राज्य सरकार ने उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी.

प्रदेश कांग्रेस इकाई के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने 33 करोड़ रुपये के इस कथित घोटाले को लेकर यह शिकायत दायर की थी.

विशेष न्यायाधीश मुकेश नाथ ने राज्य सरकार द्वारा विजयवर्गीय और अन्य तत्कालीन लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के अभाव का हवाला देते हुए शिकायत की कार्यवाही खत्म करने का आदेश 29 अगस्त (सोमवार) को जारी किया.

आदेश में कहा गया कि अभियोजन स्वीकृति की प्रत्याशा में शिकायत पर आगामी कार्यवाही नहीं की जा सकती है और मामले को अनंतकाल तक लंबित भी नहीं रखा जा सकता.

विशेष अदालत ने हालांकि अपने आदेश में जोड़ा कि अगर शिकायतकर्ता को प्रदेश सरकार की अभियोजन स्वीकृति प्राप्त होती है, तो वह इस मामले में अदालती कार्यवाही बहाल कराने के लिए स्वतंत्र है.

गौरतलब है कि विजयवर्गीय साल 2000 से 2005 के बीच इंदौर के महापौर रहे थे और तब से लेकर अब तक नगर निगम में भाजपा की सत्ता चल रही है.

कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने शुक्रवार को से कहा, ‘प्रदेश सरकार द्वारा इंदौर नगर निगम के पेंशन घोटाले में 17 साल तक अभियोजन स्वीकृति नहीं दिया जाना साफ दिखाता है कि वह भ्रष्टाचारियों को बचा रही है.’

उन्होंने आरोप लगाया कि विजयवर्गीय के इंदौर के महापौर रहते नगर निगम ने निराश्रितों, विधवाओं और दिव्यांगों को शहर की सहकारी साख संस्थाओं के जरिये सरकारी पेंशन बांटी, जबकि कायदों में मुताबिक इस पेंशन का भुगतान राष्ट्रीयकृत बैंकों या डाक घरों के जरिये किया जाना था.

मिश्रा का आरोप है कि नगर निगम द्वारा अपात्रों, काल्पनिक नाम वाले लोगों और मृतकों तक को पेंशन का बेजा लाभ दिए जाने से सरकारी खजाने को 33 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

उनके वकील विभोर खंडेलवाल ने बताया कि कथित पेंशन घोटाले में प्रदेश सरकार द्वारा अभियोजन स्वीकृति नहीं दिए जाने को लेकर हाईकोर्ट की इंदौर पीठ में उनके मुवक्किल की याचिका पहले से विचाराधीन है.

उन्होंने बताया, ‘हमने इस याचिका में हाईकोर्ट से गुजारिश की है कि प्रदेश सरकार को पेंशन घोटाले में अभियोजन स्वीकृति के हमारे आवेदन पर जल्द कोई भी निर्णय लेने के लिए निर्देशित किया जाए.’

मध्य प्रदेश कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा, ‘बीजेपी ने अपने नेता को बचाया. कैलाश विजयवर्गीय के पेंशन घोटाले में सरकार ने अभियोजन की अनुमति नहीं दी, केस खत्म. शिवराज जी, ऐसे लड़ोगे भ्रष्टाचारियों से? शवराज का जंगलराज.’

इस संबंध में दैनिक भास्कर से बातचीत में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि पेंशन घोटाला कोई घोटाला ही नहीं था. अंत भला सो सब भला. सत्यमेव जयते. इसके पीछे बड़ा षड्यंत्र था. इसमें कांग्रेस के लोग शामिल थे और उनकी मदद ऐसे लोगों ने की, जिनके बारे में अभी बोलना ठीक नहीं है.

दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश सरकार ने बीपीएल परिवारों के बुजुर्गों (महिला-पुरुष) के लिए 500 रुपये महीने की पेंशन देने की योजना शुरू की थी. तत्कालीन महापौर (विजयवर्गीय) समेत निगम के अफसरों पर आरोप लगा था कि तमाम सक्षम परिवारों को योजना का लाभ दे दिया गया था.

सरकार ने 2005-06 में हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के रिटायर जज एन. जैन को मामले की जांच सौंपी थी. जैन आयोग ने तकरीबन 10 साल सुनवाई की थी. इसकी रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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