सुप्रीम कोर्ट ने मामला तीन सदस्यीय पीठ को सौंपने की भी बात कही है. नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि यह संविधान के मूल ढांचे के विपरीत है और इसका उद्देश्य मुसलमानों से स्पष्ट रूप से भेदभाव करना है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को चुनौती देने वाली 220 याचिकाओं पर सुनवाई 31 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी है.
द हिंदू की खबर के मुताबिक, उच्चतम न्यायालय ने साथ ही कहा है कि वह मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को सौंपेगा.
याचिकाओं पर कई महीनों के अंतराल के बाद सुनवाई सोमवार (12 सितंबर) को हुई. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) यूयू ललित और जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट की पीठ ने सुनवाई की.
सीजेआई ललित ने केंद्र समेत सभी पक्षों से मामले में शामिल मुद्दों पर एक रोड मैप तैयार करने को कहा.
गौरतलब है कि सीएए के तहत 31 दिसंबर 2014 को या फिर उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने 18 दिसंबर 2019 को संबंधित याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
संशोधित कानून में 31 दिसंबर 2014 को या फिर उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जनवरी 2020 के दूसरे सप्ताह तक जवाब दाखिल करने को कहा था.
हालांकि, कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंधों के कारण यह मामला सुनवाई के लिए नहीं आ सका, क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में वकील और वादी शामिल थे.
याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए न्यायालय ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से नागरिकों को कानून के बारे में जागरूक करने के लिए ऑडियो-विजुअल माध्यम का सहारा लेने पर विचार करने का निर्देश दिया था.
शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘हम इस पर रोक नहीं लगाने जा रहे हैं.’
सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को धर्म के आधार पर नागरिकता देने का इरादा रखता है.
सीएए के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हुए थे और आलोचकों का कहना है कि यह मुसलमानों के साथ पक्षपात करता है.
हालांकि इसके बावजूद संसद की मंजूरी के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता (संशोधन) विधेयक-2019 पर दस्तखत कर उसे कानून की शक्ल दे दी थी. हालांकि, इसका कार्यान्वयन अटका हुआ है, क्योंकि अभी तक नियम नहीं बनाए गए हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अधिवक्ता पल्लवी प्रताप के माध्यम से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग द्वारा दायर याचिका में सीएए और विदेशी संशोधन (आदेश), 2015 और पासपोर्ट (नियमों में प्रवेश) संशोधन नियम, 2015 के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार का सीएए संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है और इसका उद्देश्य मुसलमानों के खिलाफ स्पष्ट रूप से भेदभाव करना है, क्योंकि अधिनियम ने केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को लाभ दिया है.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम संविधान के तहत परिकल्पित मूल मौलिक अधिकारों पर एक ‘बेरहम हमला’ है और ‘बराबरी को असमान’ मानता है.
अपनी याचिका में रमेश ने कहा है कि भारत में नागरिकता प्राप्त करने या अस्वीकार करने में धर्म एक कारक हो सकता है, सहित कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न अदालत के विचार के लिए उठता है, क्योंकि यह नागरिकता अधिनियम, 1955 में साफ तौर पर असंवैधानिक संशोधन है.
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं.
कई अन्य याचिकाकर्ताओं में मुस्लिम निकाय जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू), पीस पार्टी, सीपीआई, गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’ और सिटीजन अगेंस्ट हेट, अधिवक्ता एमएल शर्मा और कानून के छात्रों ने भी शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है.