हैदरपोरा मुठभेड़ में मारे गए तीसरे नागरिक का शव क़ब्र से निकालने की याचिका कोर्ट ने ख़ारिज की

नवंबर 2021 में श्रीनगर के हैदरपोरा में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए चार लोगों में से एक आमिर लतीफ़ माग्रे भी थे. मुठभेड़ की प्रमाणिकता को लेकर जनाक्रोश के कुछ दिन बाद जम्मू कश्मीर प्रशासन ने दो मृतकों के शव उनके परिजनों को सौंपे थे, जिसके बाद माग्रे के परिवार ने भी उनका शव सौंपे जाने की मांग की थी.

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हैदरपोरा मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबल (फोटोः पीटीआई)

नवंबर 2021 में श्रीनगर के हैदरपोरा में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए चार लोगों में से एक आमिर लतीफ़ माग्रे भी थे. मुठभेड़ की प्रमाणिकता को लेकर जनाक्रोश के कुछ दिन बाद जम्मू कश्मीर प्रशासन ने दो मृतकों के शव उनके परिजनों को सौंपे थे, जिसके बाद माग्रे के परिवार ने भी उनका शव सौंपे जाने की मांग की थी.

हैदरपोरा मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबल (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: श्रीनगर के हैदरपोरा में नवंबर 2021 में हुए एनकाउंटर में मारे गए आमिर माग्रे के परिजनों द्वारा उनका शव सौंपे जाने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (12 सितंबर) को खारिज कर दी. इस संबंध में लाइव लॉ ने अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी है.

जस्टिस सूर्य कांत और जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने माग्रे के पिता की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिनका दावा था कि उनके बेटे को धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक उचित तरीके से दफनाया नहीं गया था.

अदालत जम्मू कश्मीर प्रशासन के इस विचार से सहमत थी कि माग्रे के अंतिम रस्मो-रिवाज धार्मिक मान्यता के अनुसार किए गए थे, और ऐसा कुछ नहीं है जो दिखाता हो कि मृतक को सही तरीके से दफनाया नहीं गया था.

हालांकि, अदालत ने प्रशासन को मृतक के परिवार को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने और जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट के आदेशों के अनुरूप माग्रे की कब्र पर नमाज अदा करने की अनुमति देने का आदेश दिया.

बता दें कि जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने बीते 27 मई को प्रशासन को आदेश दिया था कि वह हैदरपोरा एनकाउंटर में मृत आमिर के अवशेषों को उनके पिता मोहम्मद लतीफ़ माग्रे की मौजूदगी में निकाले. हालांकि छह जून को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस पर रोक लगा दी थी, लेकिन खंडपीठ ने मुआवजे का आदेश दे दिया था क्योंकि परिवार को गलत तरह से माग्रे को दफनाने से वंचित किया गया था.

लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘एक शव दफनाए जाने के बाद उसे कानून की हिरासत में माना जाता है. दफनाए जाने की क्रिया अदालती कानून के तहत होती है. एक बार दफनाए जाने के बाद शव को परेशान नहीं करना चाहिए. एक अदालत दफनाए गए शव को बाहर निकालने का आदेश तब तक नहीं दे सकती है, जब तक कि यह नहीं पेश किया जाता कि शव को बाहर निकालना न्याय के हित में है.’

अदालत ने कहा कि वह माग्रे के पिता की भावनाओं की कद्र करती है, लेकिन भावनाओं के आधार पर मामले की फैसला नहीं कर सकते, फैसला केवल कानून के अनुसार होता है.

बता दें कि 15 नवंबर 2021 को श्रीनगर के हैदरपोरा में पुलिस गोलीबारी में चार लोग मारे गए थे. मुठभेड़ का मुद्दा उस समय विवादों में आ गया जब यह आरोप लगाए गए कि गोलीबारी के दौरान एक नागरिक को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया गया था. मृतकों में माग्रे भी शामिल थे और पुलिस ने दावा किया था कि वह एक संदिग्ध पाकिस्तानी आतंकवादी का सहयोगी थे. माग्रे के परिवार का कहना है कि वह निर्दोष था, आतंकवादी नहीं था जैसा कि पुलिस दावा कर रही है.

हालांकि, जम्मू कश्मीर प्रशासन याचिकाकर्ता की ओर से किए गए दावों को खारिज करते हुए माग्रे को आतंकवादी बताता रहा है.

जम्मू कश्मीर प्रशासन ने याचिकाकर्ता द्वारा किए गए दावों का खंडन किया. जम्मू कश्मीर की ओर से पेश अधिवक्ता अर्धेंदुमौली प्रसाद ने कहा कि वह आतंकवादी थे.

उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई विवाद नहीं है कि ऐसे कुछ लोग और भी हैं जिन्हें दफनाया गया और उन्हें जानबूझकर उनके अपने स्थानों पर इसलिए नहीं दफनाया गया क्योंकि इससे उनका महिमामंडन होता… युवा बहक जाते हैं… आतंकवादी आते हैं और वे बहुत अच्छी-अच्छी बातें कहते हैं और युवाओं का मन आतंकवाद की ओर खिंचा चला जाता है. यही कारण है जिससे कि सरकार जानबूझकर उन्हें उनके कस्बे या गांव में नहीं दफनाती है.’

इस पर याचिकाकर्ता के हवाले से अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा, ‘राज्य मेरे बेटे के अंतिम संस्कार करने के पवित्र अधिकार को मुझसे नहीं छीन सकता है. धार्मिक लोगों की भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए.’

इसके जवाब में राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा, ‘लेकिन बड़ी संख्या में आतंकवादियों के ऐसे एनकाउंटर किए जा रहे हैं. अगर इसे अनुमति दी जाती है तो हाईकोर्ट इसी प्रकार की याचिकाओं से भर जाएगा, जिनमें अंतिम क्रियाएं संपन्न करने की मांग की गई हो… हम सभी ने देखा कि जब कुछ साल पहले शव दे दिया गया था तो क्या हुआ था?.

राज्य के वकील 2016 में आतंकवादी बुरहान वानी की हत्या और अंतिम संस्कार का संदर्भ दे रहे थे.

मालूम हो कि 15 नवंबर 2021 की शाम श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में गोलीबारी हुई थी. इस दौरान पुलिस, सेना और अर्धसैनिक बलों की एक संयुक्त टीम ने आतंकवादियों की मौजूदगी की सूचना मिलने पर एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की घेराबंदी की थी.

इस मुठभेड़ में एक पाकिस्तानी आतंकवादी और तीन अन्य व्यक्ति मारे गए थे और पुलिस ने दावा किया था कि मारे गए सभी लोगों के आतंकवाद से संबंध थे. तीनों के परिवारों ने उनके निर्दोष होने का दावा किया था, जिसके बाद पुलिस को जांच के आदेश देने पड़े थे.

मुठभेड़ के दौरान तीन व्यक्तियों- व्यापारी मोहम्मद अल्ताफ़ भट (शॉपिंग कॉम्प्लेक्स मालिक), दंत चिकित्सक डॉ. मुदसिर गुल (इमारत से कॉल सेंटर चलाने वाले व्यक्ति) और आमिर माग्रे (गुल के साथ कथित तौर पर काम करने वाला लड़का) की मौत हो गई थी.

पुलिस ने एनकाउंटर में मारे गए तीनों लोगों को कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा इलाके में दफना दिया था, लेकिन एनकाउंटर की प्रमाणिकता को लेकर जन आक्रोश और कई दिनों के विरोध के बाद भट और गुल के शव तीन दिन बाद उनके परिवारों को वापस कर दिए गए थे.

इसके बाद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 18 नवंबर को इस मामले में मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए थे. इसके अलावा इस एनकाउंटर के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने इसे लेकर एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन भी किया था.

दिसंबर 2021 में एसआईटी ने हैदरपोरा एनकाउंटर में सुरक्षाबलों की किसी साजिश से इनकार कर दिया था. एसआईटी के प्रमुख उपमहानिरीक्षक सुजीत के. सिंह ने एक प्रकार से सुरक्षाबलों को क्लीनचिट दे दी थी, लेकिन यह भी कहा था कि यदि कोई अन्य सबूत सामने आता है तो यह दल अपने निष्कर्ष पर पुनर्विचार करने को तैयार है.

इतना ही नहीं, एनकाउंटर पर सवाल उठाने को लेकर इस साल जनवरी में जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह ने कहा था कि कुछ लोग आतंकवाद का चतुराई से समर्थन करके ‘नरम अलगाववाद’ में लिप्त हैं.

सिंह ने हैदरपोरा एनकाउंटर को ‘साफ-सुथरा’ करार दिया और सुरक्षा बलों को दी गई ‘क्लीनचिट’ पर सवाल उठाने वाले नेताओं को जांच दल के समक्ष सबूत पेश करने के लिए कहा था. सिंह ने कहा था कि वह कश्मीर में नेताओं के एक वर्ग के गैर-जिम्मेदाराना बयानों से आहत हैं.