सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को संविधान संशोधन की अनुमति दी, जय शाह और गांगुली पदों पर बने रहेंगे

2016 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस लोढ़ा समिति की सिफ़ारिशों को लागू किया गया था, जिनके तहत एक पदाधिकारी के 3 साल के कार्यकाल के बाद 3 साल का ब्रेक लेने का प्रावधान था. 2018 में इसे संशोधित कर छह साल के बाद ब्रेक लेने की बात कही गई. अब कहा गया है कि एक पदाधिकारी राज्य संघ और बीसीसीआई में कुल 12 साल बिता सकता है.

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Mumbai: BCCI's new President Saurav Ganguly with Secretary Jai Shah after a press conference at BCCI headquarters in Mumbai, Wednesday, Oct. 23, 2019. (PTI Photo/Shashank Parade) (PTI10_23_2019_000105A)

2016 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस लोढ़ा समिति की सिफ़ारिशों को लागू किया गया था, जिनके तहत एक पदाधिकारी के 3 साल के कार्यकाल के बाद 3 साल का ब्रेक लेने का प्रावधान था. 2018 में इसे संशोधित कर छह साल के बाद ब्रेक लेने की बात कही गई. अब कहा गया है कि एक पदाधिकारी राज्य संघ और बीसीसीआई में कुल 12 साल बिता सकता है.

बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली (दाएं) और सचिव जय शाह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के संविधान में संशोधन की अनुमति दे दी, जिससे इसके अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह के अनिवार्य ब्रेक (कूलिंग ऑफ पीरियड) पर जाए बगैर ही अपने-अपने पद पर बने रहने का रास्ता साफ हो गया है.

बीसीसीआई ने अपने प्रस्तावित संशोधनों में अपने पदाधिकारियों के लिए कूलिंग-ऑफ पीरियड में ढील देने की मांग की थी, जिससे गांगुली और शाह 30 सितंबर 2022 के बाद भी अगले तीन साल के कार्यकाल के लिए अध्यक्ष और सचिव के पद पर बने रहें. भारत के पूर्व कप्तान गांगुली और शाह अक्टूबर 2019 से बीसीसीआई में शीर्ष पदों पर हैं.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि एक पदाधिकारी का लगातार 12 साल का कार्यकाल हो सकता है, जिसमें राज्य संघ में छह साल और बीसीसीआई में छह साल शामिल हैं, लेकिन इसके बाद तीन साल के ब्रेक पर जाना होगा.

पीठ ने कहा कि एक पदाधिकारी बीसीसीआई और राज्य संघ दोनों स्तरों पर लगातार दो कार्यकाल के लिए एक विशेष पद पर काम कर सकता है, जिसके बाद उसे तीन साल का ब्रेक लेना होगा.

पीठ ने कहा, ‘ब्रेक की अवधि का उद्देश्य अवांछित एकाधिकार नहीं बनने देना है.’

इससे पहले जस्टिस आरएम लोढ़ा की अगुवाई वाली समिति ने बीसीसीआई में सुधारों की सिफारिश की थी, जिसे करीब छह वर्ष पहले शीर्ष अदालत ने स्वीकार किया था. जिसमें 2018 में संशोधन किया गया.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत बीसीसीआई के संविधान के अनुसार राज्य क्रिकेट संघ या बीसीसीआई में तीन-तीन साल के लगातार दो कार्यकाल के बाद किसी भी व्यक्ति का तीन साल के ब्रेक पर जाना अनिवार्य था.

बीसीसीआई  में पद ग्रहण करते समय गांगुली जहां बंगाल क्रिकेट संघ में पदाधिकारी थे तो वहीं शाह गुजरात क्रिकेट संघ से जुड़े थे.

इस फैसले के बाद बोर्ड के अंदर कई मुद्दों पर चर्चा शुरू हो गई है. इसमें सबसे अहम है कि क्या गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष के रूप में बने रहेंगे? या वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी पेश करेंगे? ऐसे में क्या जय शाह को बीसीसीआई के सदस्य अध्यक्ष के रूप में पदोन्नत करेंगे?

बीसीसीआई के अंदर इस बात की भी चर्चा है कि जल्द ही चुनाव हो सकते है.

बोर्ड के एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘बोर्ड में एजीएम (वार्षिक आम बैठक) के बाद चीजें बदल सकती हैं. जब तक नामांकन पत्र दाखिल नहीं हो जाते, तब तक आप कुछ नहीं कह सकते. यह कहना जल्दबाजी होगी कि एजीएम के बाद क्या होगा. हां, न्यायालय का फैसला वर्तमान पदाधिकारियों के पक्ष में है.’

शीर्ष अदालत ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील पर गौर किया कि मौजूदा धाराओं के तहत एक पदाधिकारी अगर राज्य संघ की सेवा के बाद बीसीसीआई में सेवा देता है तो अनिवार्य रूप से तीन साल के अनिवार्य ब्रेक से गुजरना होगा, जिससे उसे अपनी योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए काफी कम समय मिलेगा.

मेहता ने कहा, ‘एक पदाधिकारी के लिए अपनी योजना को अंजाम देने के लिए तीन साल बहुत कम होते हैं और इसलिए काम के उचित निष्पादन के लिए लगातार दो कार्यकाल दिए जाने की आवश्यकता है.’

पीठ ने कहा कि बीसीसीआई की वार्षिक आम बैठक में तीन-चौथाई बहुमत से सर्वसम्मति से विचार किया गया है और उन्होंने संविधान में संशोधन का प्रस्ताव दिया है, जिसमें अध्यक्ष और सचिव के पद के लिए अनिवार्य ब्रेक की बारे में भी कहा गया है.

न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) मनिंदर सिंह ने कहा कि कूलिंग ऑफ पीरियड की आवश्यकता केवल बीसीसीआई के अध्यक्ष और सचिव तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि सभी पदाधिकारियों के लिए भी होनी चाहिए. यह सभी राज्य क्रिकेट संघों पर भी लागू होनी चाहिए.

स्पोर्ट्स स्टार की खबर के मुताबिक, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत किए गए बीसीसीआई के संविधान के अनुसार, ‘किसी राज्य संघ या बीसीसीआई (या दोनों में संयुक्त तौर पर) में किसी पद पर लगातार दो कार्यकाल पूरे करने के बाद एक पदाधिकारी बिना तीन साल का ब्रेक (कूलिंग ऑफ)) कोई भी चुनाव लड़ने के योग्य नहीं होगा. ‘

लेकिन अब, एक व्यक्ति पहले तीन-तीन साल के दो कार्यकाल राज्य संघ में बिता सकता है और फिर कूलिंग ऑफ अवधि में जाए बिना ही दो कार्यकालों के लिए सीधा बीसीसीआई के सदस्य के रूप में चुना जा सकता है.

इससे पहले मंगलवार को पीठ ने मौखिक तौर पर कहा था कि सिर्फ एक कार्यकाल के बाद तीन साल की कूलिंग ऑफ अवधि लागू करना बहुत कठोर होगा.

वहीं, स्पोर्ट्स स्टार के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने छह साल पुरानी जस्टिस लोढ़ा समिति की सिफारिशों में एक और संशोधन किया है, जिससे कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला को राहत मिलेगी. वे फिलहाल बीसीसीआई उपाध्यक्ष हैं.

नए संसोधन में सुप्रीम कोर्ट ‘लोक सेवकों’ को पुन: परिभाषित करने पर सहमत हो गया, जिन पर कि बीसीसीआई में कोई पद ग्रहण को लेकर प्रतिबंध था. अब केवल मंत्रियों, सरकारी कर्मचारियों को लोक सेवक माना जाएगा और सांसद-विधायक जो पहले इसके तहत आते थे, वे अब नहीं आएंगे.

सुधार समिति के प्रमुख जस्टिस लोढ़ा बोले- संशोधन के लिए बीसीसीआई सही समय के इंतजार में था

भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश जस्टिस आरएम लोढ़ा भारतीय क्रिकेट प्रशासन में सुधार हेतु गठित सुप्रीम कोर्ट की समिति के अध्यक्ष थे, छह साल पहले उन्होंने ही बीसीसीआई के संविधान में ‘कूलिंग ऑफ’ अवधि को जोड़ा था.

उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि कूलिंग ऑफ नियम क्रिकेट प्रशासकों के लिए ‘बर्फीले पहाड़’ जैसा था, जिसे पार करने के लिए वे ‘मौसम बदलने का इंतजार’ कर रहे थे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बुधवार को उन्होंने कहा, ‘क्रिकेट प्रशासकों के लिए कूलिंग ऑफ नियम बर्फीले पहाड़ की तरह था, जिससे पार निकलना उनके लिए मुश्किल हो रहा था, इसलिए उन्होंने मौसम बदलने का इंतजार किया. 2016, 2018 से यह इसी तरह हो रहा है और अब 2022 में भी यही हुआ.’

गौरतलब है कि 2013 में आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग कांड और उसके बाद क्रिकेट प्रशासकों में ‘हितों के टकराव’ के मामले ने तूल पकड़ा था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोढ़ा समिति का गठन करके 2016 में उसकी सिफारिशों को लागू किया था.

सिफारिशों के तहत बीसीसीआई अधिकारियों के लिए कूलिंग ऑफ पीरियड का प्रावधान किया गया था, जिसके तहत तीन साल के एक कार्यकाल के बाद ब्रेक लेना अनिवार्य था.

तब से ही बीसीसीआई इस प्रावधान का बार-बार विरोध करता रहा है. उसकी याचिका पर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान में ढील देते हुए कूलिंग ऑफ पीरियड पर जाने से पहले बीसीसीआई के पदाधिकारियों को लगातार दो कार्यकाल- राज्य इकाई का कार्यकाल मिलाकर कुल छह साल- की अनुमति दे दी थी.

लेकिन, बोर्ड लगातार केस लड़ता रहा और अब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य संघ और बीसीसीआई में लगातार 12 साल बिताने की छूट दे दी है.

नवीनतम आदेश के बारे में पूछे जाने पर जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी समझ से जो सही था, वो किया. उसने पाया होगा कि पुराना आदेश मौलिक तौर पर गलत था और सोचा होगा कि पदाधिकारियों का निरंतर अपने पद पर बने रहना अंतिम फैसले से अधिक महत्वपूर्ण है.

हालांकि, साथ ही उन्होंने कहा, ‘अगर आप निरंतरता के तत्व को लागू करना चाहते हैं तो 12 साल भी क्यों? अगर निरंतरता ही सबसे महत्वपूर्ण है और इसके सामने बाकी सब मायने नहीं रखता है तो कूलिंग-ऑफ लगाना ही क्यों? क्यों 6, 9 या 12 साल….’

उन्होंने अपनी समिति द्वारा हर तीन साल में ब्रेक के नियम को लागू करने के कारण बताते हुए कहा कि इससे कुछ लोगों का एकाधिकार पैदा होने का खतरा समाप्त हो जाता और प्रशासन में नए लोग आते.

उन्होंने कहा, ‘जब सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई 2016 को अपना पहला आदेश पारित किया तो हमारी रिपोर्ट में कोई दोष नहीं पाया गया, विचार को स्वीकार किया गया और कूलिंग ऑफ पीरियड को औपचारिक रूप दिया गया. इसलिए ऐसा नहीं है कि हम गलत थे या हमारी रिपोर्ट बेतुकी थी. पहली सुनवाई में उन्होंने हमारी रिपोर्ट को पूरी तरह स्वीकर कर लिया और कूलिंग-ऑफ के प्रावधान को भी. बाद में, इसे अगस्त 2018 के आदेश में बदल दिया गया. हो सकता है कि अब उन्हें लगता हो कि इसे फिर से बदलना सही है.’

उन्होंने तत्कालीन हालात का हवाला देते हुए कहा, ‘वास्तव में उस पृष्ठभूमि को देखना होगा जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के मामलों में हस्तक्षेप किया था. बार-बार समान लोग पद ग्रहण कर रहे थे. इसके अलावा, आस-पास घट रहीं अन्य चीजों पर भी अदालत ने गौर किया. हमें (बोर्ड के) संविधान और संरचना को देखने को कहा गया. कई लोगों से मुलाकात के बाद हमने पाया कि सुशासन से संबंधित कुछ मूलभूत शिकायतें थें. यह मांग थी कि शीर्ष पर बैठे कुछ लोगों का एकाधिकार रोका जाए.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)