आईआईएम में पीएचडी दाखिलों व फैकल्टी भर्ती में आरक्षण नियमों का उल्लंघन हो रहा है: आरटीआई

एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़, नौ आईआईएम के पीएचडी दाखिले के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच सालों में एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणी के तहत आए छात्रों का अनुपात औसतन पांच फीसदी से कम रहा है. वहीं, सभी आईआईएम में ओबीसी और एससी फैकल्टी के लिए आरक्षित 60 फीसदी और एसटी फैकल्टी के 80 फीसदी से अधिक पद ख़ाली रहते हैं.

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आईआईएम अहमदाबाद. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़, नौ आईआईएम के पीएचडी दाखिले के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच सालों में एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणी के तहत आए छात्रों का अनुपात औसतन पांच फीसदी से कम रहा है. वहीं, सभी आईआईएम में ओबीसी और एससी फैकल्टी के लिए आरक्षित 60 फीसदी और एसटी फैकल्टी के 80 फीसदी से अधिक पद ख़ाली रहते हैं.

आईआईएम अहमदाबाद. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: एपीपीएससी आईआईटी बॉम्बे द्वारा दायर एक हालिया आरटीआई से प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि आईआईएम पीएचडी दाखिलों और मिशन मोड पर होने वाली फैकल्टी भर्ती में अनिवार्य आरक्षण के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं.

आरक्षण नियमों के मुताबिक, 15 फीसदी सीटें अनुसूचित जाति (एससी), 7.5 फीसदी सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 27 फीसदी सीटें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रखीं जानी चाहिए.

हालांकि, आरटीआई से सामने आए 9 आईआईएम में पीएचडी दाखिले से संबंधित आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच सालों में, एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणी के तहत दाखिल छात्रों का अनुपात क्रमश: 5.4 फीसदी, 1.8 फीसदी और 16.7 फीसदी था.

लगभग 70 एससी, 42 एसटी और 76 ओबीसी छात्रों को उनके हक की सीटों से वंचित कर दिया गया और इन सीटों को सामान्य वर्ग के छात्रों द्वारा भरा गया.

आरटीआई डेटा अब सार्वजनिक रूप से एपीपीएससी की वेबसाइट पर उपलब्ध है, जो आईआईएम में दलित बहुजन आदिवासी (डीबीए) उम्मीदवारों के संरचनात्मक बहिष्कार का इतिहास बताता है.

आरटीआई में 2007-2022 के बीच 15 आईआईएम में पीएचडी दाखिलों का डेटा शुमार है, जो बेहद खराब तस्वीर पेश करता है.

पिछले 16 वर्षों के दौरान केवल 73 एससी (1.3%), 22 एसटी (1.3%) और 183 ओबीसी (10.8%) को दाखिला दिया गया.

कुल मिलाकर 564 सीटें जो एससी (182), एसटी (106) और ओबीसी (277) उम्मीदवारों को मिलनी चाहिए थीं, वह उन्हें न देकर सामान्य श्रेणी के छात्रों से भर दी गईं.

तालिका में 2007-2022 के बीच 4 आईआईएम में पीएचडी दाखिलों का आरटीआई से प्राप्त डेटा है.

तालिका से पता चलता है कि अधिकांश आईआईएम ने 2007-2022 से अधिकांश शैक्षणिक वर्षों में एक भी एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवारों की भर्ती नहीं की. आईआईएम बेंगलुरु ने पिछले 16 वर्षों में पीएचडी के लिए एक भी एसटी उम्मीदवार को प्रवेश नहीं दिया है, जबकि आईआईएम तिरुचिरापल्ली और आईआईएम रोहतक की स्थापना के बाद से उनमें कोई एसटी पीएचडी छात्र नहीं आया है.

वहीं, 2022 के पीएचडी आवेदनों के आंकड़ों से पता चलता है कि पर्याप्त आवेदक होने के बावजूद भी आईआईएम ने एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों को शॉर्टलिस्ट या चयनित नहीं किया.

आईआईएम में डीबीए छात्रों की इतनी कम संख्या का प्राथमिक कारण मुख्य रूप से एससी, एसटी, ओबीसी श्रेणियों से आने वाली फैकल्टी की कमी है.

आईआईएम में ओबीसी और एससी फैकल्टी मेंबर के लिए आरक्षित 60 फीसदी से अधिक पद खाली रहते हैं, और यह संख्या एसटी फैकल्टी के लिए आरक्षित फैकल्टी पदों के मामले में 80 फीसदी से अधिक है.

बता दें कि जनवरी 2020 में, 20 आईआईएम ने केंद्र सरकार से फैकल्टी पदों पर आरक्षण लागू करने से छूट देने के लिए कहा था.

आंकड़े बताते हैं कि आईआईएम संस्थानों में उनकी स्थापना के बाद से कभी भी आरक्षण लागू नहीं हुआ है.

2021 में सरकार ने सभी आईआईएम को आरक्षित फैकल्टी के खाली पदों को तुरंत भरने के लिए मिशन मोड पर भर्ती (एमएमआर) शुरू करने का आदेश दिया था.

एपीपीएससी, एमएमआर पर नजर बनाए हुए है और उनका डेटा बताता है कि सरकार के स्पष्ट आदेशों के बावजूद एमएमआर के तहत बहुत कम उम्मीदवारों को नियुक्ति दी जा रही हैं.

10 आईआईएम के डेटा से पता चलता है कि उन्हें 2,073 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से 254 को शॉर्टलिस्ट किया गया लेकिन केवल 49 को ही भर्ती किया गया.

आईआईएम कोझिकोड, बेंगलुरू, अमृतसर, नागपुर, तिरुचिरापल्ली, जम्मू, उदयपुर और रांची ने एक भी एसटी फैकल्टी की भर्ती नहीं की.

जबकि, आईआईएम रांची, तिरुचिरापल्ली, अमृतसर और बेंगलुरू ने पर्याप्त आवेदक होने के बावजूद भी किसी एससी फैकल्टी की भर्ती नहीं की.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

(लेखक आईआईटी बॉम्बे में पीएचडी के छात्र हैं)

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