मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2-3 दिसंबर की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से ज़हरीली गैस के रिसाव के चलते हजारों लोगों की मौत हो गई थी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के माध्यम से अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त मुआवज़े की मांग की है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार से भोपाल गैस त्रासदी से संबंधित एक याचिका पर रुख स्पष्ट करने के लिए कहा.
अदालत ने सरकार से पूछा कि क्या वह 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए अमेरिका में स्थित यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त धनराशि के रूप में 7,844 करोड़ रुपये की मांग करने वाली अपनी उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) पर आगे बढ़ना चाहती है.
जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को निर्देश लेने के लिए कहा और मामले की सुनवाई 11 अक्टूबर को तय की.
पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी भी शामिल थे.
पीठ ने कहा, ‘सरकार को अपना रुख तय करना होगा कि वह उपचारात्मक याचिका पर आगे बढ़ेगी या नहीं.’
पीड़ितों की ओर से पेश अधिवक्ता करुणा नंदी ने कहा कि अदालत को सरकार के फैसले से परे प्रभावित पक्षों को सुनना चाहिए.
द हिंदू के मुताबिक, लेकिन अदालत ने कहा कि वह क्यूरेटिव पिटीशन के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए केंद्र की प्रतीक्षा करेगी.
जस्टिस कौल ने कहा, ‘हम देखेंगे कि क्या आपको बिल्कुल भी सुना जाना आवश्यक है. अगर सरकार इस पर (क्यूरेटिव पिटीशन) जोर देती है, तो शायद आपका काम आसान हो जाएगा.’
पीड़ितों के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि प्रभावित लोगों की संख्या पांच गुना बढ़ गई है और सुनवाई शुरू होनी चाहिए.
प्रतिवादी कंपनी की ओर से पेश वकीलों में से एक ने इस पर सहमति व्यक्त की कि मुकदमे को अंतिम रूप दिया जाना चाहिए. समीक्षा याचिका पर फैसला होने के 19 साल बाद क्यूरेटिव याचिका दायर की गई थी.
नंदी ने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी जैसे दुर्लभ मामलों में अपवाद होते हैं.
जस्टिस कौल ने वकील से पूछा, ‘जब तक सरकार द्वारा क्यूरेटिव पिटीशन दायर नहीं की गई, तब तक आपको कोई क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने की आवश्यकता नहीं दिखी?’
अपनी क्यूरेटिव पिटीशन में केंद्र ने तर्क दिया है कि 1989 में निर्धारित मुआवजा वास्तविकता से परे था.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के 4 मई 1989 और उसके बाद 3 अक्टूबर 1991 के आदेशों पर फिर से विचार करने की मांग की थी, जिसमें कहा गया था कि 1989 का समझौता वास्तविकता में सही नहीं था.
सरकार ने कंपनी से 7,400 करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त धनराशि मांगी है.
अब ‘डॉव केमिकल्स’ के स्वामित्व वाली यूसीसी ने भोपाल गैस त्रासदी मामले में 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (1989 में निपटान के समय 715 करोड़ रुपये) का मुआवजा दिया था.
उल्लेखनीय है कि 2 और 3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ गैस रिसने के बाद 5,000 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 5.68 लाख लोग प्रभावित हुए थे. इसके अलावा पशुधन की हानि हुई और लगभग 5,478 व्यक्तियों की संपत्ति का नुकसान हुआ था.
इस त्रासदी में जिन लोगों की जान बची वे जहरीली गैस के रिसाव के कारण बीमारियों का शिकार हो गए. वे पर्याप्त मुआवजे और उचित चिकित्सा उपचार के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं.
केंद्र ने मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दाखिल की थी.
सात जून 2010 को भोपाल की एक अदालत ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के सात अधिकारियों को दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी.
यूसीसी के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन मामले में मुख्य आरोपी थे, लेकिन मुकदमे के लिए उपस्थित नहीं हुए थे. एक फरवरी 1992 को भोपाल सीजेएम अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया था.
भोपाल की अदालतों ने 1992 और 2009 में दो बार एंडरसन के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था. सितंबर 2014 में उनकी मृत्यु हो गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)