पीएफआई पर पाबंदी न्यायोचित है या नहीं, इस पर निर्णय के लिए केंद्र ने अधिकरण गठित किया

केंद्र सरकार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर यूएपीए के तहत पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया है. यूएपीए के तहत एक बार किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा 30 दिनों के भीतर यह देखने के लिए एक न्यायाधिकरण गठन किया जाता है कि संगठन को ग़ैर क़ानूनी घोषित करने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं.

हैदराबाद में पीएफआई का सील हुआ कार्यालय. (फोटो: पीटीआई)

केंद्र सरकार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर यूएपीए के तहत पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया है. यूएपीए के तहत एक बार किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा 30 दिनों के भीतर यह देखने के लिए एक न्यायाधिकरण गठन किया जाता है कि संगठन को ग़ैर क़ानूनी घोषित करने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं.

हैदराबाद में पीएफआई का सील हुआ कार्यालय. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को एक अधिकरण का गठन किया जो इस बात पर निर्णय लेगा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर लगाई गई पाबंदी न्यायोचित है या नहीं. अधिकरण फैसला करेगा कि पीएफआई और इसके आठ अन्य सहयोगी समूहों को प्रतिबंधित करने के पर्याप्त आधार मौजूद है या नहीं.

अधिकरण में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा को शामिल किया गया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी करके अधिकरण के गठन का ऐलान किया.

अधिसूचना में कहा गया कि, ‘केंद्र सरकार ने एक गैर कानूनी गतिविधि (प्रतिषेध) अधिकरण गठित किया है जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा शामिल हैं. इस अधिकरण का मकसद यह निर्णय लेना है कि पीएफआई और इसके सहयोगी संगठनों को प्रतिबंधित घोषित करने का प्रर्याप्त कारण मौजूद है या नहीं. पीएफआई के सहयोगी संगठनों में रिहेब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कंफेडेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट ऑर्गेनाइजेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल विमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट और इंपावर इंडिया फाउंडेशन एंड रिहेब फाउंडेशन, केरल शामिल हैं.’

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, इससे पहले कानून मंत्रालय में न्याय विभाग ने गृह मंत्रालय को एक संदेश भेजा था जिसमें बताया गया था कि जस्टिस शर्मा न्यायाधिकरण के प्रमुख होंगे.

कानून मंत्रालय में न्याय विभाग द्वारा 3 अक्टूबर को जारी एक कार्यालय ज्ञापन में कहा गया है कि न्यायाधिकरण के प्रमुख के रूप में जस्टिस शर्मा की अवधि को उनकी ‘वास्तविक सेवा’ के हिस्से के रूप में गिना जाएगा.

जस्टिस शर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एससी शर्मा ने नामित किया था.

ज्ञापन में कहा गया है, ‘दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने जज जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा को पीएफआई और उसके सहयोगियों संगठनों पर गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) तहत प्रतिबंध के मामले में न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में नियुक्त करने के लिए नामित किया है.’

यूएपीए के तहत एक बार किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा 30 दिनों के भीतर एक न्यायाधिकरण गठन किया जाता है यह देखने के लिए कि गैरकानूनी संघ घोषित कने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं.

न्यायाधिकरण 30 दिनों के भीतर संगठन से जवाब मांगेगा और बाद में जांच करेगा. पूरी कवायद छह महीने में खत्म होनी चाहिए.

प्रक्रिया के अनुसार, गृह मंत्रालय कानून मंत्रालय से उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश को न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में नामित करने का अनुरोध करता है. उसके बाद कानून मंत्री संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से न्यायाधिकरण के प्रमुख के लिए एक न्यायाधीश की सिफारिश करने का अनुरोध करते हैं. न्याय विभाग द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन के बाद गृह मंत्रालय द्वारा औपचारिक अधिसूचना जारी की जाती है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 28 सितंबर को इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकवादी समूहों से ‘संबंध’ रखने और देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश का आरोप लगाते हुए आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए के तहत पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था.

राजपत्रित अधिसूचना के अनुसार, पीएफआई के आठ सहयोगी संगठनों- रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन, नेशनल विमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल के नाम भी यूएपीए यानी गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किए गए संगठनों की सूची में शामिल हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)