एनएचआरसी ने केंद्र, छह राज्यों को नोटिस जारी करके देवदासी प्रथा पर रिपोर्ट मांगी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा कि देवदासी प्रथा की शिकार ज़्यादातर महिलाओं का यौन शोषण किया जा रहा है, जब वे गर्भवती हो जाती हैं तो उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ दिया जाता है.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा कि देवदासी प्रथा की शिकार ज़्यादातर महिलाओं का यौन शोषण किया जा रहा है, जब वे गर्भवती हो जाती हैं तो उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ दिया जाता है.

(फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्र और छह राज्यों को नोटिस जारी कर विभिन्न मंदिरों, विशेष रूप से भारत के दक्षिणी हिस्सों में देवदासी प्रथा के निरंतर जोखिम पर विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है.

एनएचआरसी ने कहा कि उसने इस प्रथा को लेकर एक मीडिया रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया है.

आयोग ने कहा, ‘देवदासी प्रथा की कुरीतियों को रोकने के लिए अतीत में कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन यह (कुरीति) अब भी प्रचलन में है. शीर्ष अदालत ने भी युवा लड़कियों को देवदासी के रूप में समर्पित करने की कुरीतियों की निंदा की है और कड़ा रुख अपनाया है.’

इस प्रथा को यौन शोषण और वेश्यावृत्ति के माध्यम से महिलाओं के साथ की गई बुराई बताते हुए शीर्ष अदालत ने इसे महिलाओं के जीने के अधिकार तथा सम्मान एवं समानता के अधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा बताया है.

एनएचआरसी की ओर से उल्लेखित मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश पीड़िता गरीब परिवारों और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लड़की को देवदासी बनाने की प्रक्रिया में किसी भी मंदिर के देवता से उसकी शादी कर दी जाती है और वह अपना शेष जीवन पुजारी और मंदिर के दैनिक अनुष्ठानों की देखभाल करने में बिताती है.’

आयोग के अनुसार, ‘इस कुप्रथा की शिकार ज्यादातर पीड़ितों का यौन शोषण किया जा रहा है. उनका पुरुषों द्वारा यौन शोषण किया जाता है, जब वे गर्भवती हो जाती हैं तो उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ दिया जाता है.’

आयोग ने कहा है, ‘हालांकि, कथित तौर पर, 70,000 से अधिक महिलाएं अकेले कर्नाटक में देवदासी के रूप में अपना जीवन जी रही हैं. जस्टिस रघुनाथ राव की अध्यक्षता में गठित एक आयोग ने माना था कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 80,000 देवदासी हैं.’

एनएचआरसी ने आगे कहा कि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने क्रमश: 1982 और 1988 में इस प्रथा को अवैध घोषित किया था.

एनएचआरसी ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के सचिवों और कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किए हैं.

उन्हें छह सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है.

एनएचआरसी ने कहा कि रिपोर्ट में देवदासी प्रथा को रोकने और देवदासियों के पुनर्वास और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए अधिकारियों द्वारा उठाए गए/उठाए जाने वाले कदमों का उल्लेख करते हुए अपेक्षित डेटा होना चाहिए, जिससे वे सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकें.

इसमें यह भी उल्लेख होना चाहिए कि क्या इस तरह की सामाजिक बुराई को रोकने के लिए राज्यों में कोई स्थानीय कानून बनाए गए हैं और यदि नहीं तो इसे खत्म करने के लिए क्या कदम उठाए जाने का प्रस्ताव किया गया है.

नोटिस जारी करते हुए आयोग ने पाया कि कुछ साल पहले आयोग को तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश राज्यों में देवदासी के कदाचार के बारे में एक शिकायत मिली थी. आयोग के नोटिस के जवाब में राज्य सरकारों ने आरोपों से इनकार किया था.

इसमें कहा गया है कि देवदासी प्रथा को रोकने के लिए अतीत में विभिन्न कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन यह अभी भी प्रचलित है, जैसा कि समाचार रिपोर्ट इंगित करती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)