हिंदी में मेडिकल शिक्षा देने के निर्णय में भाषा संबंधी कई पहलुओं को नज़रअंदाज़ किया गया है

मध्य प्रदेश सरकार के मेडिकल शिक्षा का पाठ्यक्रम हिंदी में शुरू करने के निर्णय में ऐसा करने में सक्षम शिक्षकों, इसके लिए ज़रूरी किताबों, मेडिकल जर्नल और सम्मेलनों की उपलब्धता से जुड़े सवालों पर कोई जवाब नहीं है.

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मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ हिंदी में मेडिकल की किताबें जारी करते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

मध्य प्रदेश सरकार के मेडिकल शिक्षा का पाठ्यक्रम हिंदी में शुरू करने के निर्णय में ऐसा करने में सक्षम शिक्षकों, इसके लिए ज़रूरी किताबों, मेडिकल जर्नल और सम्मेलनों की उपलब्धता से जुड़े सवालों पर कोई जवाब नहीं है.

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ हिंदी में मेडिकल की किताबें जारी करते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

प्राथमिक विद्यालय में हमें सिखाया गया था कि भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते हैं.  मुझे नहीं पता था कि यह परिभाषा समय की कसौटी पर खरी नहीं उतरेगी. जब मैंने वास्तविक दुनिया में कदम रखा तो मुझे पता चला कि यह सबसे शक्तिशाली राजनीतिक अस्त्र है. गुजरात में केम छो, बंगाल में खेला होबे और तमिलनाडु में वनक्कम, इन सभी का गहरा अर्थ है.

ग्रामीण हिंदी हार्टलैंड से होने के कारण मेरे लिए पहले दस वर्षों तक हिंदी मीडियम के स्कूल जाना स्वाभाविक था. 2016 में मैंने एम्स, नई दिल्ली में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की. न तो मेरे सहपाठियों और न ही मैंने अपने साढ़े पांच साल की पढ़ाई के दौरान कभी यह सोचा कि हमारा यह पाठ्यक्रम हिंदी में उपलब्ध क्यों नहीं था. लेकिन नीति निर्माता इससे सहमत नहीं हैं. क्या यह कदम आवश्यक है, या यह सिर्फ असल मुद्दों से भ्रमित करने का प्रयास है?

एमबीबीएस आधुनिक चिकित्सा यानी मॉडर्न मेडिसिन, जिसके लिए सटीक शब्द ‘साक्ष्य-आधारित चिकित्सा’ है, का एक स्नातक पाठ्यक्रम है. ‘साक्ष्य-आधारित चिकित्सा का अर्थ है कि हमारा हर कदम ऐसे वैज्ञानिक तर्क पर आधारित होना चाहिए जिसे हमारे साथियों ने मान्यता दी है.  हमें दुनिया भर के चिकित्सा पेशेवरों के एक समुदाय की आवश्यकता है जो लाखों तरीकों और प्रक्रियाओं के प्रमाण को उजागर करने के लिए ‘स्वतंत्र रूप से संवाद और अपनी राय व्यक्त’ कर सकें. यही वजह है कि देश के सभी मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा की भाषा अंग्रेजी है.

हिंदी में स्कूली शिक्षा पूरी करने वाले छात्रों के भाषा संबंधी बाधाओं के कारण एमबीबीएस कार्यक्रम छोड़ने के बेहद दुर्लभ उदाहरण ही सुनने में आए हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि शिक्षा का माध्यम बदलना चुनौतीपूर्ण है (मैंने खुद इसका सामना किया) लेकिन चिकित्सा शब्दावली न तो हिंदी है और न ही सामान्य अंग्रेजी, इसलिए पृष्ठभूमि की भाषा की परवाह किए बिना सभी को उन्हें समझने में कठिनाई होती है; फिर भी, अंग्रेजी पृष्ठभूमि वाले छात्रों के पास प्रत्येक विषय पर गुणवत्तापूर्ण प्रकाशनों की पुस्तकों और लेखों से अधिक से अधिक मदद मिलने की सुविधा होती है, जबकि हिंदी माध्यम के छात्रों के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं होता है.

हम इस असमानता को कैसे खत्म कर सकते हैं? कैसे हम सभी भाषाओं के विद्यार्थियों को  समान स्तर पर ला सकते हैं? एम्स ने मेरे बैच के गैर-अंग्रेजी छात्रों की सहायता के लिए विशेष अंग्रेजी कक्षाएं शुरू कीं थी. यह कई विकल्पों में से एक है, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार एक बहुत ही अचंभित कर देने वाली नीति लेकर आई है: मेडिकल शिक्षा के पाठ्यक्रम को हिंदी में उपल्ब्ध कराना.

डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी चिकित्सा हिंदी प्रकोष्ठ- वह पैनल जिसने हिंदी पुस्तकें तैयार की हैं, के एक सदस्य हैं. उन्होंने कहा, ‘शिक्षक द्विभाषी मोड में कक्षाएं संचालित करेंगे और इससे छात्रों को प्रभावी ढंग से चीजों को सीखने में मदद मिलेगी. हिंदी और अंग्रेजी में एमबीबीएस पढ़ने वाले छात्र एक ही कक्षा में बैठेंगे और उन्हें अपनी भाषा में पेपर लिखने की सुविधा होगी।’

कुछ भी सीखने के लिए जिन दो सबसे महत्वपूर्ण साधनों की आवश्यकता होती है, वे हैं – 1. शिक्षक 2. पुस्तकें. हमें नए डॉक्टरों को प्रशिक्षित करने के लिए अनुभवी डॉक्टरों की जरूरत है;  क्या हमारे पास कोई मौजूदा दिग्गज हैं जो हिंदी में पढ़ा सकते हैं? क्या शिक्षकों के लिए भी हिंदी प्रशिक्षण केंद्र बनाए जाएंगे? आधुनिक चिकित्सा कुछ सीमित पुस्तकों से नहीं सीखी जा सकती; प्रत्येक विषय पर असीमित संख्या में पुस्तकें हैं और हमें उन सभी की आवश्यकता है. क्या हम एक अलग अनुवाद विभाग बनाने के लिए अपने जीडीपी का 2% हिस्सा व्यय करने के लिए तैयार है?  या हम छात्रों को नाममात्र के लिए 1-2 किताबें सौंपने जा रहे हैं?

आधुनिक चिकित्सा में दिन-प्रतिदिन सामने आने वाले नए साक्ष्यों को प्रसारित करने के लिए वैज्ञानिक पत्रिकाओं (जर्नल) और सम्मेलन या कॉन्फ्रेंस महत्वपूर्ण हैं. क्या हिंदी में एमबीबीएस करने वालों के लिए अलग-अलग वैज्ञानिक सम्मेलन होंगे, या उन्हें अनिवार्य तौर पर मौजूदा सम्मेलनों में ही भाग लेने लेना होगा, जहां वे भाषा न समझ पाने के कारण महज दर्शक की भूमिका में सीमित रह जाएंगे? क्या सभी मेडिकल जर्नल का उनके आने के साथ ही अनुवाद करना संभव है?

इस नई योजना के इर्द-गिर्द कई अनसुलझे सवाल हैं, फिर भी मध्य प्रदेश प्रशासन ने इस कार्यक्रम को ऐसे प्रचारित किया है जैसे कि यह कोई सामान्य घोषणा हो. लेकिन यह शिक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू है और इसके बारे में सुस्पष्ट विचार-विमर्श और चिंतन की आवश्यकता है,  क्योंकि यह हमारे देश के कई मेहनती युवाओं के भविष्य के बारे में है. यह किसी ऐसे व्यक्ति को प्रशिक्षित करने के बारे में है जिसके कंधों पर देश और देशवासियों को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी होगी.

मेरा मानना ​​है कि एमबीबीएस पाठ्यक्रम हिंदी में उपलब्ध कराना समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं है. हम उम्मीद करते हैं कि हमारे डॉक्टर विज्ञान और चिकित्सा से जुड़ी खोजों में विश्व में अग्रणी रहें. इसके लिए अंग्रेजी में दक्षता आवश्यक है.

यह रणनीति हिंदी स्कूली शिक्षा से पूरी तरह से अंग्रेजी एमबीबीएस पाठ्यक्रम में जाने के लिए एक सेतु का काम कर सकती है जिससे कि सभी बच्चे अपना पाठ्यक्रम पूर्ण होने से पहले अंग्रेजी में पारंगत हो सकें.

आशा करते हैं कि यहां भाषा का उपयोग विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में किया जा रहा है न कि किसी राजनीतिक हथियार के रूप में. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा अख़बारों में पूरे पृष्ठ के विज्ञापन देना और किसी राजनीतिक रैली की तर्ज पर किताबों का उद्घाटन कार्यक्रम आयोजित करना केवल आशंकाओं को बढ़ा ही रहा है. उम्मीद है कि हम अपने देश की स्वास्थ्य प्रणाली में एक नई जाती संरचना न बना रहे हों, जिसमें अंग्रेजी, हिंग्लिश और हिंदी डॉक्टरों के बीच में ही भेदभाव पैदा होने लगे.

(लेखक एम्स, नई दिल्ली से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद नई दिल्ली के मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज से पीडियाट्रिक्स में एमडी कर रहे हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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