यह मामला दो अंतरधार्मिक विदेशी नागरिकों से जुड़ा है, जिन्होंने अपने इच्छित विवाह को विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत करवाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख़ किया है.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय बुधवार को दो विदेशी नागरिकों की उस याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया, जिसमें अंतरधार्मिक जोड़ों से संबंधित भारतीय विवाह कानून के तहत अपने इच्छित विवाह के आयोजन और पंजीकरण की मांग की गई है.
जस्टिस यशवंत वर्मा की एकल पीठ ने याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ दिल्ली सरकार को अपनी दलीलों का सारांश दाखिल करने की छूट देते हुए कहा कि सरकार के लिए किसी भी अंतरधार्मिक जोड़े को शादी करने से रोकना संभव नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ याचिकाकर्ताओं के यहां रहने की वजह से उन्हें विशेष विवाह अधिनियम के तहत लाभों का दावा करने का अधिकार है?
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल दो अलग-अलग धर्मों से ताल्लुक रखते हैं और छह महीने से अधिक समय से दिल्ली में रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपनी शादी रचाने और उसे पंजीकृत करने का इरादा रखते हैं, लेकिन इसके लिए वे ऑनलाइन आवेदन करने में असमर्थ हैं, क्योंकि वेबसाइट पर कम से कम एक पक्ष का भारतीय होना अनिवार्य है.
याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि उनका एक मुवक्किल भारतीय विदेशी नागरिकता (ओसीआई) रखता है और शादी करने का अधिकार याचिकाकर्ताओं के जीवन के अधिकार का हिस्सा है.
लाइव लॉ के अनुसार, 15 दिसंबर को मामले की सुनवाई सूचीबद्ध करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ दिल्ली सरकार के वकील को लिखित दलीलें दाखिल करने की स्वतंत्रता दी.
दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील शादान फरासत ने कहा कि वास्तविक मामलों में सैद्धांतिक रूप से ‘विवाह पर्यटन’ की अनुमति नहीं दी जा सकती है, लेकिन पर्याप्त समय से यहां रह रहे गैर-भारतीय पक्षों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी रचाने की अनुमति दी जा सकती है.
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वकील ऋषभ कपूर ने किया. याचिकाकर्ताओं में से महिला हिंदू कनाडाई नागरिक है, जिनके पास ओसीआई कार्ड है और पुरुष ईसाई अमेरिकी नागरिक हैं.
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा कि गैर-भारतीयों पर विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अपनी शादी रचाने और पंजीकृत कराने पर कोई रोक नहीं है, जब तक कि वे वैधानिक आवश्यकताओं का पालन करते हैं.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अधिनियम के तहत सहमति से दो बालिगों को विवाह करने से मना करना उनके विवाह के अधिकार का उल्लंघन है.
उन्होंने यह भी दावा किया कि उच्च न्यायालय ने समान तथ्यों और परिस्थितियों में पक्षकारों को अपने विवाह के पंजीकरण की सुविधा को सक्षम करने के लिए अपने दस्तावेज़ ऑफलाइन जमा करने की अनुमति दी है.
लाइव लॉ के अनुसार, याचिका में आर्यन एरियनफर एंड एएनआर बनाम दिल्ली सरकार मामले में पिछले साल दिए निर्देशों का जिक्र किया गया है. इसमें कोर्ट ने दिल्ली सरकार को उन दिशानिर्देशों में संशोधन के लिए कदम उठाने और अपने ई-पोर्टल में आवश्यक बदलाव करने का निर्देश करने का निर्देश दिया था, जिससे ऐसे विदेशी नागरिक, जिनकी शादी राष्ट्रीय राजधानी में होती है, वे अपनी शादी के पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकें.
इसे लेकर याचिका में कहा गया है कि उक्त आदेश के पारित होने के 16 महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद सरकार द्वारा ई-पोर्टल में परिवर्तन करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है. याचिका कहती है कि इस तरह प्रतिवादी इस माननीय न्यायालय के निर्देशों की अवमानना के दोषी हैं और उपरोक्त आदेश का समय पर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रतिवादी के खिलाफ आवश्यक निर्देश पारित किए जा सकते हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)