क़ानून मंत्री रिजिजू ने फिर साधा न्यायपालिका पर निशाना, कहा- राजद्रोह क़ानून पर रोक से दुखी था

मई माह के एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून की समीक्षा किए जाने तक इसके तहत मामले दर्ज करने और कार्रवाई पर रोक लगा दी थी. क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि सरकार ने पहले ही कह दिया था कि वह क़ानून की समीक्षा कर रही है तो शीर्ष अदालत को आदेश नहीं देना चाहिए था, यह ‘अच्छी बात’ नहीं थी. 

किरेन रिजिजू (बीच में). (फोटो साभार: फेसबुक)

मई माह के एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून की समीक्षा किए जाने तक इसके तहत मामले दर्ज करने और कार्रवाई पर रोक लगा दी थी. क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि सरकार ने पहले ही कह दिया था कि वह क़ानून की समीक्षा कर रही है तो शीर्ष अदालत को आदेश नहीं देना चाहिए था, यह ‘अच्छी बात’ नहीं थी.

किरेन रिजिजू (बीच में). (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि वे इस साल के शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के फैसले से दुखी थे.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार (4 नवंबर) को मुंबई में आयोजित इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में बोलते हुए रिजिजू कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि सरकार ने अदालत को सूचित कर दिया था कि वह कानून में बदलाव पर विचार कर रही है, सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को स्थगित करने का फैसला किया.

कानून मंत्री सुप्रीम कोर्ट के 11 मई के आदेश के संदर्भ में बात कर रहे थे. उक्त आदेश में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने कानून की समीक्षा तक राजद्रोह मामलों की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी.

पीठ ने कहा था, ‘हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी एफआईआर को दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124ए के तहत जबरदस्ती कदम उठाने से तब तक परहेज करेंगी, जब तक कि यह पुनर्विचार के अधीन है. यह उचित होगा कि इसकी समीक्षा होने तक कानून के इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए.’

बहरहाल, कानून मंत्री रिजिजू ने आगे कहा कि अगर सरकार इस विषय पर अड़ी होती तो न्यायपालिका ने उसे कड़ी फटकार लगाई होती, हालांकि जब सरकार ने पहले ही कह दिया था कि वह कानून की समीक्षा कर रही है तो शीर्ष अदालत को आदेश नहीं देना चाहिए था, क्योंकि यह ‘अच्छी बात नहीं थी.’

उन्होंने आगे कहा कि हर किसी के लिए एक लक्ष्मण रेखा होती है और उसे राष्ट्रहित में लांघना नहीं चाहिए.

लाइव लॉ के मुताबिक, इस साक्षात्कार में उन्होंने यह भी विचार रखा कि न्यायपालिका को कार्यपालिका के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, क्योंकि भारतीय संविधान के अनुसार उन्हें ऐसा नहीं करना है. संविधान में स्पष्ट रूप से सरकार की तीन इकाइयों के कार्य क्षेत्रों का सीमांकन किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘अगर न्यायपालिका यह तय करने लगे कि कहां सड़कें बनाईं जानी चाहिए, अगर यह सेवा नियमों में दखल देने लगे, तो सरकार किसलिए है? कोविड के समय, दिल्ली हाईकोर्ट ने कोविड मामलों के संचालन के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था, तो हमने अपने सॉलिसिटर जनरल से कोर्ट से यह कहने के लिए कहा कि यह उनका (कोर्ट का) काम नहीं है.आप यह नहीं कर सकते. ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार ही श्रेष्ठ है… क्या मैंने कभी न्यायपालिका के कार्य में दखल दिया है? मैं नहीं देता… मैं न्यायपालिका को एक मजबूत संस्था बनाने में मदद करता हूं.’

ज्ञात हो कि केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने बीते माह भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का ‘मुखपत्र’ माने जाने वाले ‘पांचजन्य’ की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका के लिए समान शब्दों का इस्तेमाल किया था और कहा था कि न्यायपालिका कार्यपालिका में हस्तक्षेप न करे.

साथ ही, उन्होंने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर निशाना साधते हुए यह भी कहा था कि जजों की नियुक्ति सरकार का काम है. उन्होंने न्यायपालिका में निगरानी तंत्र विकसित करने की भी बात कही थी.

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