सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला आज़म ख़ान की हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ याचिका ख़ारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा नेता आज़म ख़ान के बेटे अब्दुल्ला आज़म ख़ान का 2017 में यूपी विधानसभा के लिए चुनाव रद्द करने का आदेश दिया था क्योंकि उस समय उनकी उम्र 25 वर्ष से कम थी. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने आज़म ख़ान को विधानसभा में अयोग्य ठहराने के ख़िलाफ़ याचिका पर यूपी सरकार व निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है.

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सपा सांसद आजम खान के साथ उनके बेटे मोहम्मद अब्दुल्लाह आजम खान. (फोटो साभार: फेसबुक)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा नेता आज़म ख़ान के बेटे अब्दुल्ला आज़म ख़ान का 2017 में यूपी विधानसभा के लिए चुनाव रद्द करने का आदेश दिया था क्योंकि उस समय उनकी उम्र 25 वर्ष से कम थी. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने आज़म ख़ान को विधानसभा में अयोग्य ठहराने के ख़िलाफ़ याचिका पर यूपी सरकार व निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है.

आजम खान के साथ उनके बेटे मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान. (फाइल फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी जिसमें समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान के बेटे मोहम्मद अब्दुल्ला आज़म खान का 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव रद्द करने का आदेश दिया गया था.

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अब्दुल्ला आज़म की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमने याचिका खारिज कर दी है.’

शीर्ष अदालत ने इस मामले में 20 सितंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था.

दिसंबर 2019 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अब्दुल्ला आज़म को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया था, क्योंकि उनकी उम्र 25 वर्ष से कम थी. उन्होंने 2017 में स्वार निर्वाचन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दायर किया था.

यह मामला अब्दुल्ला आज़म के दो जन्म प्रमाणपत्रों से संबंधित है. खान ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र दायर करते समय कथित तौर पर गलत जन्मतिथि बताई थी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बसपा प्रत्याशी नवाब काज़िम अलीक की याचिका पर अदालत ने चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया.

अब्दुल्ला आजम खान के खिलाफ चुनावी याचिका में काज़िम खान ने तर्क दिया था कि निर्वाचित विधायक की वास्तविक जन्मतिथि 1 जनवरी, 1993 थी, न कि 30 सितंबर, 1990, जैसा कि नामांकन पत्र में दावा किया गया था.  इसलिए, जब उन्होंने 25 जनवरी, 2017 को नामांकन पत्र दाखिल किया, चुनाव लड़ने का पात्र होने के लिए उन्हें 25 वर्ष की आयु तक पहुंचना बाकी था.

इसके बाद रामपुर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता आकाश सक्सेना ने तीन जनवरी, 2019 को गंज थाने में खान के खिलाफ अलग-अलग तारीखों के साथ दो जन्म प्रमाण पत्र हासिल करने में धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करवाई थी. पुलिस ने उक्त मामले के संबंध में अप्रैल में आरोपपत्र दायर किया था.

उत्तर प्रदेश की रामपुर अदालत ने आज़म खान और उनकी पत्नी को अब्दुल्ला आजम के लिए जाली जन्म प्रमाण पत्र, जिसके आधार पर उन्होंने चुनाव लड़ा था, हासिल करने में उनकी कथित भूमिका के चलते जेल भेज दिया था, .

आरोपपत्र के मुताबिक, रामपुर नगर पालिका द्वारा जारी एक जन्म प्रमाण पत्र में अब्दुल्ला आज़म की जन्मतिथि एक जनवरी 1993 बताई गई थी. दूसरे प्रमाण पत्र में कहा गया था कि उनका जन्म 30 सितंबर 1990 को लखनऊ में हुआ था.

अब्दुल्ला आज़म 2017 में स्वार विधानसभा से जीते थे, लेकिन कम उम्र के होने के कारण उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था. इसके बाद 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में दोबारा से इस निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए.

अदालत ने आजम खान को अयोग्य ठहराने के खिलाफ याचिका पर सरकार, निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को राज्य विधानसभा की सदस्यता के प्रति अयोग्य ठहराए जाने के खिलाफ सपा नेता आजम खान की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और भारतीय निर्वाचन आयोग से जवाब तलब किया.

मालूम हो कि सपा नेता को भड़काऊ भाषण देने के मामले में दोषी ठहराने और उन्हें तीन साल जेल की सजा सुनाए जाने के बाद उन्हें सदन की सदस्यता के प्रति अयोग्य ठहराया गया है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद को खान की याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा. पीठ ने प्रसाद से उनकी याचिका को निर्वाचन आयोग के स्थायी अधिवक्ता तक भी पहुंचाने के लिए कहा.

अदालत ने प्रसाद से कहा, ‘उन्हें अयोग्य ठहराने की क्या जल्दी थी? आपको कम से कम उन्हें कुछ मोहलत देनी चाहिए थी.’ इसके जवाब में प्रसाद ने कहा कि अयोग्य ठहराना शीर्ष अदालत के उस निर्देश के अनुरूप है जिसे उसने अपने एक फैसले में दिया था.

खान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी/ चिदंबरम ने कहा कि मुजफ्फरनगर जिले की खतौली विधानसभा से भाजपा विधायक विक्रम सैनी को भी 11 अक्टूबर को दोषी ठहराया गया था और दो साल की सजा दी गई थी, लेकिन उनकी अयोग्यता को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया.

चिदंबरम ने कहा कि इस मामले में तात्कालिकता यह है कि रामपुर सदर सीट पर उपचुनाव के ऐलान को लेकर भारतीय निर्वाचन आयोग 10 नवंबर को गजट अधिसूचना जारी करने जा रहा है.

उन्होंने कहा कि सत्र न्यायालय के न्यायाधीश कुछ दिनों के लिए अवकाश पर हैं और इलाहाबाद उच्च न्यायालय बंद है, इसलिए खान खुद को दोषी ठहराए जाने और सजा के खिलाफ वहां नहीं जा सके.

पीठ ने प्रसाद से पूछा कि खतौली विधानसभा सीट के मामले में कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 नवंबर की तारीख तय की और प्रसाद से कहा कि वह निर्देश प्राप्त कर अपना जवाब दाखिल करें.

गत 27 अक्टूबर को खान को भड़काऊ भाषण मामले में दोषी ठहराया गया था और रामपुर अदालत ने उन्हें तीन साल जेल की सजा सुनाई थी.

रामपुर स्थित एमपी-एमएलए (सांसद-विधायक) अदालत ने वर्ष 2019 के मामले में विधायक को जमानत भी दे दी. गत 28 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने खान को सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराने का ऐलान किया था.

उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव ने कहा था कि विधानसभा सचिवालय ने रामपुर सदर सीट को रिक्त घोषित कर दिया है.

गौरतलब है कि बीते 27 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश में रामपुर की एमपी/एमएलए अदालत ने सपा नेता एवं विधायक आजम खान को भड़काऊ भाषण देने के मामले में दोषी करार देते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई थी. उसके बाद आजम खान की उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी.

आजम खान पर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मिलक कोतवाली इलाके के खातानगरिया गांव में जनसभा को संबोधित करने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को लेकर अपमानजनक भाषा का इस्‍तेमाल करने और जिला प्रशासन के वरिष्‍ठ अधिकारियों को भला-बुरा कहने पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था. खान के इस बयान का वीडियो भी वायरल हुआ था.

भड़काऊ भाषण देने के मामले में विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने आजम खां को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 153-क (धार्मिक भावनाएं भड़काना), 505-क (विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करने के आशय से असत्य कथन) और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 (चुनाव के सिलसिले में विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य बढ़ाना) के तहत दोषी करार देते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई थी.

गौरतलब है कि 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से आजम खान के खिलाफ चोरी से लेकर भ्रष्टाचार तक के 87  मामले दर्ज किए गए.

जमीन कब्जाने से संबंधित मामले में वे करीब दो सालों तक जेल में रहे थे. इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट अंतरिम जमानत मिलने के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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