उत्तराखंड: प्रशासन ने पतंजलि की पांच दवाओं और उनके विज्ञापनों पर रोक लगाई

ख़बरों  के अनुसार, उत्तराखंड की आयुर्वेदिक और यूनानी सेवाओं के अधिकारियों द्वारा जारी पत्र में रामदेव की पतंजलि दिव्य फार्मेसी को इसकी पांच दवाओं का उत्पादन और विज्ञापन बंद करने को कहा गया है. इससे पहले भी कंपनी द्वारा कोविड-19 का 'इलाज' बताई गई कोरोनिल समेत कुछ दवाओं को लेकर सवाल उठ चुके हैं.

बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

ख़बरों  के अनुसार, उत्तराखंड की आयुर्वेदिक और यूनानी सेवाओं के अधिकारियों द्वारा जारी पत्र में रामदेव की पतंजलि दिव्य फार्मेसी को इसकी पांच दवाओं का उत्पादन और विज्ञापन बंद करने को कहा गया है. इससे पहले भी कंपनी द्वारा कोविड-19 का ‘इलाज’ बताई गई कोरोनिल समेत कुछ दवाओं को लेकर सवाल उठ चुके हैं.

बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: गुरुवार, 10 नवंबर को उत्तराखंड के अधिकारियों द्वारा योग गुरु रामदेव द्वारा स्थापित पतंजलि दिव्य फार्मेसी को इसके पांच उत्पादों का उत्पादन और विज्ञापन को रोकने के आदेश की खबरें सामने आने के बाद कंपनी ने ऐसा कोई नोटिस मिलने से इनकार किया है और ‘आयुर्वेद विरोधी माफिया’ की साजिश का आरोप लगाया है.

रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड की आयुर्वेदिक और यूनानी सेवाओं के अधिकारियों ने गुरुवार को कंपनी को एक पत्र जारी कर पांच उत्पादों- दिव्य मधुग्रित, दिव्य आईग्रिट गोल्ड, दिव्या थायरोग्रिट, दिव्या बीपीग्रिट और दिव्या लिपिडोम का उत्पादन और विज्ञापन बंद करने को कहा है.

पतंजलि का दावा है कि ये उत्पाद मधुमेह, आंखों के संक्रमण, थायराइड, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के इलाज में मदद करते हैं.

पत्र में लाइसेंस अधिकारी डॉ. जीसीएस जंगपांगी ने कहा है कि आयुर्वेद नियामक द्वारा गठित एक टीम उपरोक्त दवाओं की फॉर्मूलेशन शीट की समीक्षा करेगी और भविष्य में पतंजलि के स्वामित्व वाली दिव्य फार्मेसी के किसी भी विज्ञापन को मंजूरी देने की भी जरूरत होगी.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, यदि इस मंजूरी के बिना विज्ञापन चलते रहते हैं, तो कंपनी ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के नियम 170, जो विशेष रूप से आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध उत्पादों के संबंध में भ्रामक विज्ञापनों और अतिरंजित दावों से संबंधित है, के तहत शुल्क वसूल करेगी.

जंगपांगी का पत्र केरल में एक नेत्र रोग विशेषज्ञ ने पतंजलि के खिलाफ राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (एसएलए) में एक विज्ञापन के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने के बाद आया है, जिसमें कंपनी ने दावा किया था कि इसके आईड्रॉप्स का उपयोग मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और अन्य आंखों के मुद्दों के इलाज में उपयोगी हो सकता है.

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. केवी. बाबू ने अखबार को बताया था कि अगर इन स्थितियों का इलाज नहीं किया जाए, तो वे घातक साबित हो सकती हैं और इस प्रकार के विज्ञापन ‘मानव जीवन के लिए खतरा’ हैं.

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पतंजलि ने इसके बाद जारी एक बयान में कहा है कि उसे जंगपांगी के पत्र की प्रति नहीं मिली थी,  लेकिन साथ ही आरोप लगाया कि यह ‘साजिशन लिखा गया और मीडिया के बीच प्रसारित’ किया गया.

एनडीटीवी के मुताबिक, इसमें आगे पतंजलि ने कहा, ‘पतंजलि द्वारा बनाए गए सभी उत्पादों और दवाओं को बनाने में आयुर्वेद परंपरा में उच्चतम अनुसंधान और गुणवत्ता के साथ सभी वैधानिक प्रक्रियाओं और अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हुए 500 से अधिक वैज्ञानिकों की मदद से निर्धारित मानकों का पालन किया जाता है.’

रामदेव की कंपनी ने प्रशासन से कथित साजिशकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हुए कहा कि ऐसा नहीं हुआ तो वे उसे हुए ‘संस्थागत नुकसान’ की भरपाई के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करेंगे.

इससे पहले जुलाई महीने में पतंजलि योगपीठ की इकाई दिव्य फार्मेसी कपंनी पर इसके आयुर्वेदिक उत्पादों के भ्रामक विज्ञापन जारी करने के चलते आयुर्वेद एवं यूनानी सेवा (उत्तराखंड) के लाइसेंसिंग अधिकारी ने हरिद्वार के ड्रग इंस्पेक्टर को दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे.

उल्लेखनीय है कि बीते साल रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि ने अपनी दवा ‘कोरोनिल’ के कोविड-19 के इलाज में कारगर होने संबंधी दावे किए थे. साथ ही एलोपैथी और एलोपैथी डॉक्टरों के ख़िलाफ़ अपमानजनत टिप्पणियां की थीं, जिसके ख़िलाफ़ डॉक्टरों के विभिन्न संघों ने अदालत का रुख किया था.

इस साल जुलाई में रामदेव की कंपनी ने अदालत को बताया था कि वह कोरोनिल के इम्युनिटी बूस्टर, न कि बीमारी का इलाज होने को लेकर सार्वजनिक स्पष्टीकरण जारी करने के लिए तैयार है. हालांकि, अगस्त की सुनवाई में उसने जो स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया, उसमें लिखा था:

‘यह स्पष्ट किया जाता है कि कोरोनिल एक इम्युनिटी बूस्टर होने के अलावा, विशेष रूप से श्वांस नली से संबंधित और सभी प्रकार के बुखार के लिए, कोविड-19 के प्रबंधन में एक साक्ष्य-आधारित सहायक है.’

इसमें यह भी कहा गया था… ‘कोरोनिल का परीक्षण कोविड-19 के लक्षण वाले (Symptomatic) रोगियों पर किया गया, जिसका नतीजा उन पर सफल रहा. इसे उस पृष्ठभूमि में देखें कि कोरोनिल को इलाज कहा गया था. हालांकि, बाद में यह स्पष्ट किया गया कि कोरोनिल कोविड-19 के लिए केवल एक पूरक उपाय है.’

अदालत ने इसे ख़ारिज करते हुए कहा था कि यह ‘स्पष्टीकरण के बजाय अपनी पीठ थपथपाने जैसा है.’

इसके आगे की सुनवाइयों में अदालत ने कंपनी को फटकारते हुए कहा था कि वह अपने उत्पाद को कोविड का इलाज बताकर गुमराह कर रही है.

इसके बाद अगस्त के आखिरी सप्ताह में एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एलोपैथी और एलोपैथिक चिकित्सकों की आलोचना करने के लिए रामदेव से अप्रसन्नता जताते हुए कहा था कि उन्हें डॉक्टरों के लिए अपशब्द बोलने से परहेज करना चाहिए.

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार को रामदेव को झूठे दावे और एलोपैथी चिकित्सकों की आलोचना करने से रोकना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि मई 2021 में सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक वीडियो का हवाला देते हुए आईएमए ने कहा था कि रामदेव कह रहे हैं कि ‘एलोपैथी एक स्टुपिड और दिवालिया साइंस है’.

उन्होंने यह भी कहा था कि एलोपैथी की दवाएं लेने के बाद लाखों लोगों की मौत हो गई. इसके साथ ही आईएमए ने रामदेव पर यह कहने का भी आरोप लगाया था कि भारत के औषधि महानियंत्रक द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए मंजूर की गई रेमडेसिविर, फैबीफ्लू तथा ऐसी अन्य दवाएं कोविड-19 मरीजों का इलाज करने में असफल रही हैं.

एलोपैथी को स्टुपिड और दिवालिया साइंस बताने पर रामदेव के खिलाफ महामारी रोग कानून के तहत कार्रवाई करने की डॉक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) व डॉक्टरों के अन्य संस्थाओं की मांग के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने रामदेव को एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि वे अपने शब्द वापस ले लें.

इसके बाद रामदेव ने एलोपैथिक दवाओं पर अपने बयान को वापस लिया था.

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