मोरबी पुल हादसा: नगर पालिका को हाईकोर्ट की फटकार, कहा- जवाब दाख़िल करें या जुर्माना भरें

मोरबी पुल हादसे पर स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज की गई याचिका की सुनवाई में मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी नगर पालिका से पूछा था कि पुल के संचालन और रखरखाव का ठेका बिना निविदा निकाले क्यों दिया गया था. 

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मोरबी में माच्छू नदी पर पुल के टूट जाने के बाद जारी राहत और बचाव कार्य. (फोटो: पीटीआई)

मोरबी पुल हादसे पर स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज की गई याचिका की सुनवाई में मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी नगर पालिका से पूछा था कि पुल के संचालन और रखरखाव का ठेका बिना निविदा निकाले क्यों दिया गया था.

मोरबी में माच्छू नदी पर पुल के टूट जाने के बाद जारी राहत और बचाव कार्य. (फोटो: पीटीआई)

अहमदाबाद/नई दिल्ली: गुजरात उच्च न्यायालय ने बुधवार (16 नवंबर) को लगातार दूसरे दिन मोरबी पुल हादसे में स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मोरबी नगर पालिका को फिर आड़े हाथों लिया. नगर पालिका ने दो नोटिसों के बावजूद 140 लोगों की मौत की घटना पर अब तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल नहीं की है.

एनडीटीवी के अनुसार, कोर्ट ने कहा, ‘कल आप चालाक बन रहे थे और आज मामले को हल्के में ले रहे हैं. इसलिए या तो बुधवार शाम तक अपना जवाब दायर करें या एक लाख रुपये का जुर्माना भरें.’

इसके जवाब में नगर पालिका ने दावा किया कि देरी के लिए निकाय के प्रमुख- डिप्टी कलेक्टर जिम्मेदार हैं, जिनकी चुनाव में ड्यूटी लगी हुई है.

लाइव लॉ के मुताबिक, नगर पालिका के वकील ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए 24 नवंबर तक का समय मांगा था, जिससे चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की पीठ ने इनकार कर दिया.

इससे पहले मंगलवार को अदालत ने नोटिस दिए जाने के बावजूद सुनवाई में अधिकारियों के उपस्थित न होने को लेकर फटकार लगाई थी. साथ ही राज्य सरकार से पूछा था कि ब्रिटिश काल की इस संरचना के संरक्षण एवं संचालन के लिए किस आधार पर रुचि पत्र (letter of interest) के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और बिना निविदा निकाले ही किसी व्यक्ति विशेष पर ‘कृपा क्यों की गई.’

ज्ञात हो कि बीते 30 अक्टूबर को गुजरात के मोरबी शहर में माच्छू नदी पर बने केबल पुल के अचानक टूटने से क़रीब 141 लोगों की मौत हो गई थी. पुल के रखरखाव, रेनोवेशन व संचालन का ठेका ओरेवा समूह की अजंता मैन्युफैक्चरिंग के पास था.

मंगलवार को स्वत: संज्ञान के आधार पर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने जानना चाहा था कि क्या राज्य सरकार ने अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (ओरेवा समूह) के साथ 16 जून, 2008 के समझौता ज्ञापन (एमओयू) और वर्ष 2022 के समझौते में फिटनेस प्रमाणपत्र के संबंध में किसी तरह की शर्त लगाई थी, यदि ऐसा था तो इसे करने के लिए सक्षम प्राधिकार कौन था?

मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री ने कहा था, ‘यह समझौता सवा पन्ने का है जिसमें कोई शर्त नहीं है. यह समझौता एक ‘सहमति’ के रूप में है. राज्य सरकार की यह उदारता 10 साल के लिए है, कोई निविदा नहीं निकाली गई, किसी तरह की रुचि की अभिव्यक्ति (expression of interest) नहीं है.’

अदालत ने पूछा, ‘15 जून, 2017 को अवधि बीतने के बाद राज्य सरकार और मोरबी नगर पालिका द्वारा निविदा निकालने के लिए कौन से कदम उठाए गए? क्यों अभिव्यक्ति की रुचि के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और कैसे बिना निविदा निकाले किसी व्यक्ति विशेष पर कृपा की गई.’

अदालत ने कहा कि 15 जून, 2017 को अवधि बीतने के बावजूद अजंता (ओरेवा समूह) को पुल के रखरखाव और प्रबंधन का काम बिना किसी समझौते के जारी रखने के लिए कहा गया. कंपनी के साथ वर्ष 2008 में एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे जिसकी अवधि वर्ष 2017 में समाप्त हुई.

उच्च न्यायालय ने जानना चाहा कि क्या यह अवधि समाप्त होने के बाद संचालन और रखरखाव के उद्देश्य से निविदा निकालने के लिए स्थानीय प्राधिकारियों ने कोई कदम उठाए?

नगरपालिका के दस्तावेजों के अनुसार, मोरबी में घड़ी और ई-बाइक बनाने वाली कंपनी ‘ओरेवा ग्रुप’ को शहर की नगर पालिका ने पुल की मरम्मत करने तथा संचालित करने के लिए 15 साल तक का ठेका दिया था.

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ओरेवा समूह ने यह ठेका एक अन्य फार्म को दे दिया था, जिसने रेनोवेशन के लिए आवंटित दो करोड़ रुपये में से मात्र 12 लाख ख़र्चे थे.

पुलिस ने मामले में अब तक नौ लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से चार लोग ‘ओरेवा ग्रुप’ से हैं. पुल के रखरखाव और संचालन की जिम्मदारी संभालने वाली कंपनियों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है.

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने सात नवंबर को कहा था कि इसने एक खबर के आधार पर पुल हादसा मामले में स्वत: संज्ञान लिया था और इसे जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया था.

अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि गुजरात सरकार (जिसका प्रतिनिधित्व मुख्य सचिव करते हैं), राज्य के गृह विभाग, नगर पालिका आयुक्त, मोरबी नगरपालिका, जिला कलेक्टर और राज्य मानवाधिकार आयोग को पक्षकार बनाया जाए.

कांग्रेस ने पूछा- मोरबी हादसे पर एसआईटी की रिपोर्ट कहां है 

इसी बीच, कांग्रेस ने मंगलवार को सवाल उठाया कि मोरबी पुल हादसे से जुड़ी विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट राज्य उच्च न्यायालय द्वारा कहे जाने के बावजूद 14 नवंबर को पेश क्यों नहीं की गई.

पार्टी प्रवक्ता अंशुल अविजित ने यह सवाल भी किया कि एसआईटी रिपोर्ट कहां हैं? उन्होंने संवाददाताओं से बातचीत में आरोप लगाया, ‘गुजरात के जिस विकास मॉडल की बात होती है, वो विकृत है, विनाशक है.’

अविजित ने कहा, ‘गुजरात उच्च न्यायालय ने एक सप्ताह पहले मोरबी हादसे का स्वत: संज्ञान लेते हुए 14 नवंबर को रिपोर्ट मांगी थी. हमारा सवाल है कि मोरबी हादसे में एसआईटी की रिपोर्ट पेश क्यों नहीं हुई? यह रिपोर्ट कहां है? एसआईटी किसलिए है?’

उन्होंने दावा किया कि संस्थाओं को सरकार ने अपना हथियार बना दिया है, जो अनैतिक पूंजीवाद का परिचायक है.

उनके अनुसार, ‘ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. कोविड काल में गुजरात में वेंटिलेटर घोटाला हुआ था. उस समय उच्च न्यायालय ने फटकारा था, लेकिन सरकार पर कोई असर नहीं हुआ. यह बात अलग है कि भाजपा ने बाद में पूरी सरकार ही बदल दी.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)