एल्गार परिषद: नज़रबंदी के लिए चुने गए परिसर की ‘सुरक्षा चिंताओं’ के कारण नवलखा की रिहाई में देरी

एल्गार परिषद मामले में आरोपी 70 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बीते 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए नज़रबंद रखने की अनुमति देते हुए कहा था कि उसके आदेश का क्रियान्वयन 48 घंटे के अंदर किया जाना चाहिए.

सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा. (फोटो: पीटीआई)

एल्गार परिषद मामले में आरोपी 70 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बीते 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए नज़रबंद रखने की अनुमति देते हुए कहा था कि उसके आदेश का क्रियान्वयन 48 घंटे के अंदर किया जाना चाहिए.

गौतम नवलखा (फोटो: यूट्यूब)

मुंबई/नई दिल्ली: एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में आरोपी कार्यकर्ता गौतम नवलखा की रिहाई में बुधवार को एक बार फिर देरी हुई, क्योंकि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने नवी मुंबई में एक परिसर के बारे में सुरक्षा चिंताओं को उठाया, जहां उन्होंने अपनी नजरबंदी के दौरान रहने का प्रस्ताव रखा था.

अभिनेत्री सुहासिनी मुले बुधवार दिन में एनआईए के विशेष न्यायाधीश राजेश कटारिया के समक्ष पेश हुईं और नवलखा के लिए जमानतदार बनीं, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया.

न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, ‘क्योंकि अभियुक्त की सुरक्षा के कारण अभियुक्त को परिसर में रखने के लिए अभियोजन पक्ष (एनआईए) की ओर से कड़ी आपत्ति है, इसलिए आरोपी को उनके द्वारा बताए गए परिसर में नजरबंद रखना उचित नहीं होगा.’

अदालत ने कहा कि इसके अलावा जैसा कि विशेष लोक अभियोजक ने यह भी दलील दी है कि अभियोजन पक्ष उच्चतम न्यायालय में परिसर के मूल्यांकन की एक रिपोर्ट दायर करने जा रहा है और शीर्ष अदालत के अगले निर्देश तक आरोपी को वहां स्थानांतरित करना उचित नहीं होगा.

70 वर्षीय नवलखा का दावा है कि वह अप्रैल 2020 से जेल में हैं और अनेक रोगों से जूझ रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर को उन्हें कुछ शर्तों के साथ नजरबंद रखने की अनुमति देते हुए कहा था कि उसके आदेश का क्रियान्वयन 48 घंटे के अंदर किया जाना चाहिए. लेकिन वह अब भी जेल में हैं, क्योंकि रिहाई की औपचारिकताएं पूरी नहीं हो सकीं.

‘भुवन शोम’, ‘हू तू तू’ ‘लगान’, ‘दिल चाहता है’, ‘पेज 3’, ‘सहर’, जैसी फिल्मों में काम कर चुकीं 71 वर्षीय अभिनेत्री सुहासिनी मुले एनआईए के मामलों के लिए विशेष न्यायाधीश कटारिया के समक्ष पेश हुईं और कहा कि वह नवलखा के लिए जमानतदार के रूप में प्रस्तुत हुई हैं.

जमानत में यह जिम्मेदारी ली जाती है कि जेल से रिहा होने वाला व्यक्ति निर्देश मिलने पर अदालत में पेश होगा.

मुले ने कहा कि वह 30 साल से ज्यादा समय से नवलखा को जानती हैं, क्योंकि नवलखा दिल्ली से हैं, जहां वह कुछ समय रही हैं.

मुले ने अदालत में यह भी कहा कि वह अतीत में पहले किसी के लिए जमानतदार के रूप में प्रस्तुत नहीं हुईं और यह अदालत में उनकी पहली पेशी है.

सुप्रीम कोर्ट जांच एजेंसी की याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई करेगा

इस बीच बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय गौतम नवलखा की ओर से दायर एक नई याचिका को शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने को तैयार हो गया.

शीर्ष अदालत के निर्देश के बावजूद नवलखा को उनके घर में नजरबंद करने के लिए स्थानांतरित नहीं किया गया है.

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने नवलखा की तरफ से पेश शीर्ष अधिवक्ता की इस दलील का संज्ञान लिया कि उनके मुवक्किल को घर में नजरबंद करने के शीर्ष अदालत के निर्देश पर अभी तक अमल नहीं किया गया है.

एनआईए की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय से कहा कि आरोपी ने अपने घर का पता देने के बजाय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय का पता दिया है और इस संबंध में एक अलग याचिका भी दाखिल की जाएगी.

इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी और आरोपी, दोनों की याचिकाएं जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष एक साथ सूचीबद्ध की जाएंगी.

गौरतलब है कि नवलखा के खिलाफ मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है. पुलिस का दावा है कि इसकी वजह से अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के निकट हिंसा हुई थी.

पुणे पुलिस के अनुसार, प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) समूह से जुड़े लोगों ने कार्यक्रम का आयोजन किया था.

मामले के 16 आरोपियों में से केवल दो आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगू कवि वरवरा राव फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.

आरोपियों में शामिल फादर स्टेन स्वामी की पांच जुलाई 2021 को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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