यूपी: गोरखपुर डीएम ने दुर्भावना में ग़ुंडा एक्ट लगाया, अदालत ने कहा- क़ानून का सम्मान नहीं

मामला गोरखपुर शहर के प्रमुख इलाके में स्थित एक संपत्ति से जुड़ा है, जिसमें वाणिज्य कर विभाग का कार्यालय हुआ करता था. अदालती कार्रवाई के बाद यह ज़मीन याचिकाकर्ता को मिल गई. तब तत्कालीन डीएम ने याचिकाकर्ता को गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई का नोटिस थमा दिया. अदालत ने डीएम कार्यालय पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

मामला गोरखपुर शहर के प्रमुख इलाके में स्थित एक संपत्ति से जुड़ा है, जिसमें वाणिज्य कर विभाग का कार्यालय हुआ करता था. अदालती कार्रवाई के बाद यह ज़मीन याचिकाकर्ता को मिल गई. तब तत्कालीन डीएम ने याचिकाकर्ता को गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई का नोटिस थमा दिया. अदालत ने डीएम कार्यालय पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

 इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते सोमवार (14 नवंबर) को गोरखपुर जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय पर 5 लाख रुपये का अर्थदंड लगाया. डीएम कार्यालय द्वारा एक व्यक्ति के खिलाफ यूपी गुंडा एक्ट के तहत की गई दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के चलते ऐसा किया गया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्रवाई उक्त व्यक्ति को उसके मालिकाना हक वाली संपत्ति जबरन खाली करने के लिए और जिला प्रशासन के पक्ष में छोड़ने के लिए विवश करने का प्रयास थी.

जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस सैयद वाइज मियां की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकार मामले की जांच कराए और गोरखपुर के तत्कालीन दोषी जिला मजिस्ट्रेट के. विजयेंद्र पांडियन के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच बैठाए.

मामला गोरखपुर शहर के प्रमुख इलाके ‘5 पार्क रोड’ स्थित 30,000 वर्गफीट में फैले एक बंगले से जुड़ा है. जिसका मालिकाना हक याचिकाकर्ता कैलाश जायसवाल के पास है. वर्ष 1999 में तत्कालीन डीएम ने विचाराधीन संपत्ति को फ्रीहोल्ड समझौते (डीड) के माध्यम से याचिकाकर्ता को हस्तांतरित कर दिया था.

फ्रीहोल्ड डीड के अमल में आने के समय वाणिज्य कर विभाग इमारत में किराये पर कब्जा किए हुए था और जब वह किराया नहीं चुका सका, तो याचिकाकर्ता ने बेदखली की मांग और अपने फंसे हुए किराये की वसूली के लिए एक सिविल मुकदमा दायर कर दिया.

मुकदमे में वाणिज्य कर विभाग को बेदखली का निर्देश दिया गया, हालांकि उसने परिसर खाली नहीं किया. इसके बाद याचिकाकर्ता हाईकोर्ट से एक महीने की अवधि के भीतर कार्रवाई को अमल में लाने का आदेश ले आए.

हालांकि, वाणिज्य कर विभाग विवाद को सुप्रीम कोर्ट में ले गया, लेकिन इसे मामले में कोई राहत नहीं मिली.

रिपोर्ट के मुताबिक, अंतत: 30 नवंबर 2010 को याचिकाकर्ता को परिसर पर कब्जा दे दिया गया और उन्होंने संपत्ति पर निर्माण करना शुरू कर दिया. तब जिला प्रशासन के अधिकारियों द्वारा इसका विरोध किया गया. याचिकाकर्ता ने फिर से हाईकोर्ट का रुख किया, जहां अदालत ने शहर मजिस्ट्रेट को संपत्ति के शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोक दिया.

मुकदमे के लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्ता के खिलाफ गोरखपुर वाणिज्य कर विभाग के उपायुक्त (प्रशासन) द्वारा आईपीसी की धारा 189, 332, 504, 506 के तहत एफआईआर दर्ज करा दी गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने उपायुक्त को धमकाया. हालांकि, इस एफआईआर में याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट से ‘जबरन कार्रवाई न करने’ संबंधी आदेश मिल गया.

इसके बाद 10 अप्रैल 2019 को रात करीब 10 बजे 10-12 पुलिस अधिकारी वर्दी में और 6-7 अधिकारी सादे कपड़ों में कथित तौर पर याचिकाकर्ता के घर पहुंचे और उसे फर्जी एनकाउंटर में मार गिराने की धमकी दी. यह पूरा घटनाक्रम सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया.

अगले ही सुबह गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ यूपी गुंडा एक्ट की धारा 3/4 के तहत एक नोटिस जारी किया गया. इसे चुनौती देते हुए उन्होंने रिट याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

सुनवाई के दौरान शुरू से ही हाईकोर्ट ने पाया कि जिला प्रशासन इस बात से असंतुष्ट था कि याचिकाकर्ता ने प्राइम लोकेशन की विवादित संपत्ति पा/खरीद ली थी और इसलिए जिला प्रशासन ने 2002 में 1999 की फ्रीहोल्ड लीज को रद्द करने के लिए मुकदमा भी किया.

अदालत ने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने (मई 2009 में) गोरखपुर डीएम को फ्रीहोल्ड डीड को रद्द करने की मांग करने वाला मुकदमा वापस लेने के लिए लिखा था. 2006 में भी यूपी सरकार ने मुकदमा वापस लेने के लिए डीएम को लिखा था, हालांकि ऐसा किया नहीं गया.

इस पृष्ठभूमि को देखते हुए कोर्ट ने पाया कि जिला मजिस्ट्रेट ने अपनी शक्तियों का पूरी तरह से दुरुपयोग किया है और राज्य सरकार द्वारा बार-बार दिए गए आदेशों का भी पालन नहीं किया.

कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘प्रथमदृष्टया हम आश्वस्त हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई न सिर्फ दुर्भावनापूर्ण है, बल्कि उसे प्रताड़ित करने के लिए भी है.’

अदालत ने संपत्ति का कानूनन मालिक याचिकाकर्ता को माना.

अदालत ने आगे कहा, ‘गोरखपुर जिला मजिस्ट्रेट ने साफ तौर पर यह दिखाया है कि उन्हें कानून के शासन के प्रति कोई सम्मान नहीं है और खुद ही कानून बन गए हैं. कानूनी प्रक्रिया के जरिये विवादित संपत्ति को हासिल करने में असफल होने पर उन्होंने याचिकाकर्ता पर यूपी गुंडा एक्ट लगा दिया. किसी भी तरह उनके आचरण को जायज नहीं ठहराया जा सकता है. उन्होंने सिविल और आपराधिक नतीजे भुगतने के लिए खुद को ही एक्सपोज कर दिया.’

इसके बाद अदालत ने डीएम द्वारा जारी गुंडा एक्ट के नोटिस को रद्द कर दिया और डीएम कार्यालय गोरखपुर पर 5 लाख रुपये का अर्थदंड लगाया और डीएम के खिलाफ जांच शुरू करने के आदेश दिए.