हिंदू अल्पसंख्यक दर्जा: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को राज्यों से परामर्श के लिए छह सप्ताह दिए

शीर्ष अदालत कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. इनमें दलील दी गई है कि हिंदू 10 राज्यों में अल्पसंख्यक हैं.

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(फोटो: रॉयटर्स)

शीर्ष अदालत कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. इनमें दलील दी गई है कि हिंदू 10 राज्यों में अल्पसंख्यक हैं.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या अन्य समुदायों से कम हो गई है, उन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र को राज्यों के विचार-विमर्श पूरा करने के लिए छह सप्ताह का और समय दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने केंद्र को अपने विचार प्रस्तुत नहीं करने वाले राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से भी आदेश प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर विचार प्रस्तुत करने कहा है.

इन परामर्शों की स्थिति के बारे में अदालत को सूचित करने वाले अपने नवीनतम हलफनामे में सरकार ने कहा कि उसे 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से टिप्पणियां मिली हैं और दूसरों को जल्द से जल्द अपने विचार भेजने के लिए रिमाइंडर भेजा गया है.

केंद्र ने कहा कि शेष 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की टिप्पणियां प्राप्त नहीं हुई हैं और चूंकि मामला ‘संवेदनशील प्रकृति’ का है और इसके ‘दूरगामी प्रभाव’ होंगे, इसलिए उन्हें अपने विचारों को अंतिम रूप देने के लिए कुछ और समय दिया जाना चाहिए.

शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. इसमें दलील दी गई है कि हिंदू 10 राज्यों में अल्पसंख्यक हैं.

याचिकाओं में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है और शीर्ष अदालत द्वारा 2002 के टीएमए पई केस में सुनाए फैसले को लागू करने की मांग की है. उक्त फैसले में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को राज्य स्तर पर पहचाने जाने की बात कही गई थी.

मंगलवार को सुनवाई के दौरान पई जजमेंट के अलावा उपाध्याय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2007 के एक और फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत सुरक्षा ऐसे अल्पसंख्यकों को दी गई थी, जो भारत के विभाजन के समय भारत में गैर-प्रमुख समूह थे और जिन्हें संविधान सभा ने आबादी और ताकत के आधार पर तीन समूह में वर्गीकृत किया था. पहला 1/2 प्रतिशत जनसंख्या और शक्ति वाले; दूसरे, जनसंख्या और शक्ति 1-1/2 प्रतिशत से कम होना और तीसरे, जनसंख्या और शक्ति 1-1/2 प्रतिशत से अधिक होना. यही अल्पसंख्यक के निर्धारण का आधार होगा.’

तदनुसार, हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘मुस्लिम अब भारत में और उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी और ताकत के आधार पर धार्मिक अल्पसंख्यक नहीं रह गए हैं.’

उपाध्याय ने कहा कि उक्त फैसले को अभी भी चुनौती नहीं दी गई है.

उपाध्याय ने सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग अधिनियम- 2004 की धारा 2(एफ) की वैधता को भी चुनौती दी है.

केंद्र को भारत में अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान करने और उन्हें अधिसूचित करने का अधिकार देने वाली अधिनियम की धारा 2(एफ) को  ‘स्पष्टत: मनमाना, तर्कहीन और अपमानजनक’ करार देते हुए उनकी याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह केंद्र को निरंकुश शक्ति देता है.

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि मंत्रालय ने 31 अक्टूबर को एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल की है. पीठ ने कहा, ‘आपने कहा है कि 14 राज्यों ने टिप्पणियां दी हैं.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि इन मुद्दों पर सावधानीपूर्वक गौर करने की आवश्यकता है और इस पर अचानक निर्णय नहीं किया जा सकता.

पीठ ने पूछा, ‘क्या अल्पसंख्यक का दर्जा जिलेवार तय किया जा सकता है? यह कैसे किया जा सकता है.’

खंडपीठ ने मामले की सुनवाई जनवरी में करना निर्धारित किया.

शीर्ष अदालत में दायर स्थिति रिपोर्ट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि केंद्र ने सभी राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और गृह, कानून एवं न्याय, शिक्षा मंत्रालय, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग सहित अन्य हितधारकों के साथ परामर्श बैठकें की हैं.

उसने कहा, ‘राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया गया था कि मामले की तात्कालिकता को देखते हुए वे इस संबंध में हितधारकों के साथ शीघ्रता से जुड़ें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य सरकार के विचारों को अंतिम रूप दिया जाए और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को जल्द से जल्द अवगत कराया जाए.’

स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि 14 राज्यों – पंजाब, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, ओडिशा, उत्तराखंड, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु – और तीन केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख, दादर एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव और चंडीगढ़ ने अपनी टिप्पणियां भेज दी हैं.

उसने कहा, ‘चूंकि मामले में शेष 19 राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों की टिप्पणियां/विचार अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं, इसलिए इन राज्यों को एक रिमाइंडर भेजा गया था, जिसमें उनसे अनुरोध किया गया था कि वे अपनी टिप्पणियों/विचारों को जल्द से जल्द प्रस्तुत करें, ताकि सुविचारित टिप्पणियों/विचारों को इस अदालत के समक्ष रखा जा सके.’

29 अगस्त को भी केंद्र ने एक हलफनामें में कहा था कि उसने आठ राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों के साथ चर्चा की है और हितधारकों से व्यापक विमर्श करने के लिए और समय मांगा था. अदालत ने अनुरोध मंजूर कर लिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)