तमिलनाडु: हाईकोर्ट ने राज्य के सभी मंदिरों में मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक लगाई

मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के सभी मंदिरों के अंदर मोबाइल फोन इस्तेमाल करने को प्रतिबंधित करते हुए कहा कि यह क़दम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि पूजा की शालीनता और मंदिर की शुचिता बनी रहे.

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तिरुचेंदूर का सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के सभी मंदिरों के अंदर मोबाइल फोन इस्तेमाल करने को प्रतिबंधित करते हुए कहा कि यह क़दम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि पूजा की शालीनता और मंदिर की शुचिता बनी रहे.

तिरुचेंदूर का सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने शुक्रवार को तमिलनाडु के सभी मंदिरों के अंदर मोबाइल फोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कोर्ट ने कहा ऐसा इसलिए किया गया है ताकि मंदिर में शुद्धता और पवित्रता बनाए रखी जा सके.

जस्टिस आर. महादेवन और जे. सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि ‘श्रद्धालुओं के लिए अड़चनें रोकने’ के लिए देश भर के अन्य कई मंदिरों में इसी तरह का प्रतिबंध सफलतापूर्वक लागू है.

अदालत ने एम. सीतारमण द्वारा दायर एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें तूतीकोरिन जिले के तिरुचेंदूर में सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर के अंदर मोबाइल फोन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. अपनी याचिका में सीतारमण ने कहा कि श्रद्धालु अपने फोन से मूर्तियों और पूजा की तस्वीरें ले रहे हैं.

याचिकाकर्ता ने कहा कि सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर एक प्राचीन मंदिर था और आगम नियम (जो देवताओं की तस्वीरें रिकॉर्ड करने या शूट करने के लिए कैमरों के उपयोग पर रोक लगाते हैं) ने मंदिर की पूजा और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने कहा कि परिणामस्वरूप मंदिर के कर्मचारियों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है.

उन्होंने यह भी जोड़ा कि मोबाइल फोन के उपयोग से मंदिर और इसके कीमती सामानों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है. साथ ही उन्होंने यह आशंका भी व्यक्त की कि ‘महिला श्रद्धालुओं की सहमति के बिना उनकी तस्वीरें लेने के संभावित अवसर हैं, जिनका दुरुपयोग हो सकता है.’

अपने आदेश में अदालत ने कहा, ‘… यह ध्यान रखना उचित है कि मंदिर महान संस्थान हैं और वे परंपरागत रूप से हर किसी के जीवन के केंद्र में रहे हैं. यह न केवल पूजा का स्थान है बल्कि लोगों के सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन का अभिन्न अंग भी है. यह एक जीवित परंपरा है जो अभी भी सैकड़ों हजारों भक्तों को आकर्षित करती है जो मंदिर द्वारा प्रदान की जाने वाली दिव्यता और आध्यात्मिकता का अनुभव करना चाहते हैं. जो व्यवस्था और संरचनाएं इस अनुभव का समर्थन करती हैं, उसके हिसाब से मंदिर को अपनी स्वयं की प्रबंधन आवश्यकताएं हैं.’

जजों ने इस बारे में भी गौर किया कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत सभी व्यक्ति स्वतंत्र रूप से धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार के हकदार हैं. उन्होंने कहा, ‘हालांकि ऐसी स्वतंत्रता मंदिर के परिसर के अंदर नियमों के अधीन हो सकती है.’

पीठ ने कहा, ‘आगमों ने मंदिर में पूजा सेवाओं में पालन किए जाने वाले अनुष्ठानों के बारे में नियम निर्धारित किए हैं. उसी के अनुसार, मंदिर के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पूजा की शालीनता और मंदिर की शुचिता बनी रहे.’

तमिलनाडु मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम, 1947 के नियमों के अनुसार, ट्रस्टी या मंदिर के प्रभारी कोई भी प्राधिकरण परिसर में आदेश और सजावट के रखरखाव के लिए नियम बना सकते हैं. साथ ही, नियम यह भी कहते हैं कि नियमों को उन अधिकारों और सुविधाओं के प्रति पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए जो आमतौर पर उपासक करते थे.

कोर्ट ने अपने आदेश में गुरुवायुर के श्रीकृष्ण मंदिर, मदुरै के मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर और तिरुपति के श्री वेंकटेश्वर मंदिर में मोबाइल फोन पर प्रतिबंध का हवाला दिया. इनमें से प्रत्येक मंदिर में परिसर में प्रवेश करने से पहले मोबाइल फोन जमा करने के लिए अलग-अलग सुरक्षा काउंटर बनाए गए  हैं.

पीठ ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के आयुक्त को तमिलनाडु के सभी मंदिरों में उसके निर्देशों का पालन करने का आदेश दिया है.